Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 29
________________ होते ही नेक नामदार ए० जी० जी० साहब ने आज्ञा पत्र निकाला कि मूक प्राणी कोई गोली से या जहर की पिचकारी से नहीं मार सकेगा, विशेष में औषधालय बनवाने के लिए अच्छे स्थान पर जमीन भेंट स्वरूप प्रदान करदी, और जनता. के हितार्थ व मूक प्राणियों की दया कर आशीर्वाद लिया, और इस औषधालय को नगर सुधराई संस्था की ओर से तीन सौ रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया, इस तरह, राज आज्ञा, जमीन और रुपया पैसा तो मिलना कठिन बात नहीं है, परन्तु नेक नामदार ए० जी० जी० साहब का प्रेसीडेन्ट होना, राजा महाराजा और उच्च अधिकारी वर्ग का सदस्यता में नाम होना यह तो अति नहीं अत्यन्त गौरव तुल्य माना जायगा । अहिंसा प्रचार की संस्था एक जैनाचार्य के उपदेश से स्थापित हो और प्रभावी पुरुषों द्वारा संचालन हो यह तो जैन समाज के लिए गौरव का विषय है । अत: माननीय परम पूज्य योगिराज को धन्यवाद और अधिकारी अध्यक्ष आदि का आभार माना गया, साथ ही कई महान पुरुषों की ओर से इस संस्था को चिरस्थाई रहने की मंगल कामना के सन्देश आये, ऐसे महान पुरुषों का योग जैन धर्मानुयायी की ओर से स्थापित संस्था को प्राप्त होने का यह पहिला ही समय था, ऐसे योग की सराहना कहां तक करें। हम तो इस विषय को योग साधन की विभूति मानते हैं । योगिराज के उपदेश से ग्राम्य जनता प्रभावित होती थी एकदा "मार कुण्डेश्वर" के मेले पर आपको ले गए वहां हरिजन मंडल व कई जातियों के जनगण एकत्र हुए, और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com 1 नात हा

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