Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 34
________________ भगवन्त परमात्मा चरम तीर्थाधिपति के समय में अनेक देशाधिपति राजा-महाराजा जैनधर्मी थे जैन धर्म पालते थे और शासन सेवा में कटिबद्ध रहते थे जिनका वर्णन जैनागमसूत्रों में प्रतिपादित है । (१) सम्राट् श्रेणिक - बिम्बसार यह नागवंशीय महाराजा प्रसन्नजीत के पुत्र थे, मगध देश की राजधानी राजग्रही नगरी इनकी राजधानी थी। आप बौद्ध धर्मोपासक थे, आपकी रानी चेलना जो महाराजा चेटक की पुत्री थी, यह दृढ़ जैन धर्मोपासिका थी, राजा बौद्ध रानी जैन होने से दम्पति के परस्पर विवाद होता था, संयोग से श्रेणिक को अनाथी मुनि जो राजपद छोड़ दोक्षा पाये आपसे भेंट हुई और वार्तालाप से प्रभावित हो आपने जैन धर्म स्वीकार किया, आप भगवन्त परमात्मा के पूर्ण भक्त थे आपके द्वारा जैनधर्म अधिक उन्नत हुआ जिसका वर्णन भगवती सूत्र व अन्योन्य कई ग्रन्थों में प्रतिपादित है । - ११ (२) महाराजा कोणिक यह महाराजा श्रेणिक के उत्तराधिकारी थे, आपकी राजधानी चम्पानगरी थी, जिसका वर्णन बौद्ध व जैन ग्रन्थों में मिलता है । • ( ३ ) महाराजा चेटक आपकी राजधानी विशाला नगरी थी, आप बहुत प्रभाविक बलधारी थे, आपकी शौर्यता के कारण काशी कौशल्य के अठारह राजवी आपकी आज्ञा मानते थे, आधीनता के नरेशों सहित चेटक महाराजा ने श्री महावीर भगवान के निर्वाण समय में पांवापुरी में पौषध व्रत ले रखा था जिसका वर्णन कल्पसूत्र में है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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