Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 9
________________ ॥ चमत्कारको नमस्कार ॥ देवीकी उस भावनाने इतना प्रौढ बल पकडा कि उस (देवी)की प्रार्थना उन (आचार्य)को माननी ही पड़ी। सूरिजीने गाममेंसे रुईकी एक पूनी मंगाई और उसका सांप बनाकर उसको हुकम दिया कि-"जैसे दयाधर्मकी वृद्धि हो वैसे तुम करो" __ अब वह सांप वहांसे आकाशके रस्ते उड़ा और सभामें बैठे राजकुमारको काटकर आकाशमें उड़ गया. सभामें हाहाकार मचगया । राजाने विषवैद्य, मंत्र, औषधि, जोगी, ब्राह्मण, विषापहारी मणि प्रमुख अनेक उपाय कराये परन्तु उससे लेशमात्रभी फायदा नहीं हुआ । आखीर सब हताश और निराश होगये । सबने रुदन करके राजाकी आज्ञा लेकर कुमारकी अन्त्यक्रिया की । लोग राजपुत्रके शरीरका अग्निसंस्कार करनेको चलेजाते थे कि इतनेमें गुरुमहाराजकी आज्ञासे चेलेने आकर उन सबकों रोका और कहा-"हमारे गुरुमहाराजका फरमान है लडका हमको विना दिखाये जलाया न जावे" इस बातको सुनकर राजा उपलदेवके मनमें कुछ आशाके अंकुर फिरसे प्रकट हुए । वह सब लोग वहांसे चलकर सूरिजीके पास पहुंचे और उनके चरणों में पडकर रोते हुए लाचारीसे बोले-"प्रभु! हम निराधारोंको आधार मात्र यह एक लडका है, आप दयालु दयासागर सर्व जगजीव वत्सल हैं, हम सेवकोंको पुत्रकी भिक्षा देकर सुखी करें हम आपके इस उपकारको कभी न भूलेंगे, हमारी तमाम प्रजा यावञ्चन्द्रदिवाकर आपके उपकारको न भूलेगी, आपके विना हमारा कोई नहीं। ___ आचार्य महाराजने कहा, तुम घबराओ मत । लडका जीता है !, बस कहना ही क्या था? लडके का जीना सुनतेही राजा प्रजा सब खुश हो गये । राजाने गुरुचरणों में सीस नमाकर कहा, प्रभु! मेरा लडका जीता रहेगा तो मैं यावज्जीव तक आपका ऋणी होकर आपकी आज्ञामें रहुंगा, आप मुझे जैसे फरमावेंगे मैं वैसेही करुंगा। ___ आचार्य महाराजने अपने योगबलसे उस सांपको बुलाया और आदेश दिया कि-"तुम अपने विषको चूसलो" इतना आदेश पातेही सांपने कुमारके शरीरमेंसे जहर चूसलिया । कुमार निराबाध उठके बैठ गया और हैरान होकर पिताको पूछने लगाकि येह सब लोग यहां एकडे क्यों हुए हैं ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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