Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 16
________________ 1 उप्पण्णंम अनंते नमि य छाउमत्थिए नाणे राईए संपत्तो महसेणवर्णमि उज्जाणे ॥ ९ ॥ अमरनररायमहिओ पत्तो धम्मवरचक्कवट्टित्तं बीयंपि समोसरणं पावाए मज्झिमाए उ ॥ ५४० ॥ तत्थ किल सोमिलजत्ति माहणो तस्स दिक्लकालंमि पउरा जणजाणवया समागया जन्नवाडंमि ॥ १ ॥ एगंते य विवित्ते उत्तरपासंमि जनवाडस्स तो देवदाणविंदा करेंति महिमं जिविस्स ॥ २ ॥ भवणवइवाणमंतर जोइसवासी विमाणवासी य। सञ्चिड्डीए सपरिसा कासी नाणुप्पयामहिमं ॥ ११५ ॥ भा० । समुसरणे केवइय रूप पुच्छ वागरण सोयपरिणामे । दाणं च देवमाले मलाणयणे उवरि तित्थं ॥ ३ ॥ जत्य अपुडोसरणं जन्य व देवो महिदिओ एइ वाउदयपुप्फबद्दलपागारतियं च अभिओोगो ॥ ४ ॥ मणिकणगरयणचित्तं भूमीभागं समंतओ सुरभिं । आजोअणंतरेणं करेंति देवा विचित्तं तु ॥ ५॥ वेंटद्वाई सुरभिं जलथलयं दिवकुसुमणीहारिं पइरंति समंतेणं दसवणं कुसुमवासं ॥ ६ ॥ मणिकणगरयणचिते चउ. दिसिं तोरणे विउति सच्छत्तसालभंजियमयस्यचिघठाणे ॥ ७॥ तिचि य पागारवरे रयणविश्चित्ते तहिं सुरगणिंदा मणिकंचणकविसीसगविभूसिए ते बिउवेंति ॥ ८ ॥ अनंतर मज्झ बहि विमाणजोइसभवणाहिवकया । पागारा तिष्णि भवे रयणे कणगे य रथए । ९ ॥ मणिरयणमयाविय कविसीसा सहरयणिया दारा सवरयणामयश्चिय पडागधयतोरणविचित्ता ॥ ५५० ॥ ततो य समंतेणं कालागरुकुंदुरुकमी सेणं। गंधेण मणहरेणं धृवघडीओ विउर्धेति ॥ १ ॥ उक्कुद्विसीहणायं कलयलसद्देण सइओ सो तित्थगरपायमूले करेंति देवा णिवयमाणा ॥ २ ॥ चेइदुम पेढ छंदय आसण छत्तं च चामराओ य जं चऽण्णं करणिजं करेंति तं वाणमंतरिया ॥ ३ ॥ साहारणओसरणे एवं जस्थिद्धिमं तु ओसरह एक्कु चिय तं सर्व करेइ भयणा उ इयरेसिं ॥ ४ ॥ सूरोदय पच्छिमाए ओगाहन्तीएँ पुइज एई दोहिं पउमेहिं पाया मग्गेण य होन्ति सतने ॥ ५॥ आयाहिण पुत्रमहो तिदिसि पडिरूवगा उ देवकया। जगणी अण्णो वा दाहिणपुढे अदूरंमि ॥ ६ ॥ जे ते देवेहिं कथा तिदिसिं पडिरूवगा जिणवरस्स । तेसिंपि तप्पभावा तयाणुरूवं हवइ रुवं ॥ ७॥ तित्थाइसेससंजय देवी वैमाणियाण समणीओ। भवणवइवाणमंतरजोइसियाणं च देवीओ ॥ ८ ॥ केवलिणो तिउण जिणं तित्थपणामं च मग्गओ तस्स मणमादीवि णमंता वयंति सद्वाणसद्वाणं ॥ ९ ॥ भवणवई जोइ सिया बोद्धवा वाणमंतरसुरा य वैमाणिया य मणुया पयाहिणं जं च निस्साए ॥ ५६० ॥ संजयवेमाणित्यी संजइ पुत्रेण पविसिउं वीरं काउं पयाहिणं पुचदक्खिणे ठंति दिसिभागे ॥ ११६ ॥ भा० । जोइसियभवणवंत रदेवीओ दक्खिणेण पविसंति । चिद्वंति दक्खिणावरदिसिंमि तिगुणं जिणं काउं ॥ ७॥ अवरेण भवणवासीवंतरजोइससुरा य अइगंतुं । अवरुत्तरदिसिभागे ठंति जिणं तो नमसित्ता ॥ ८॥ समहिंदा कप्पसुरा राया णरणारिओ उदीर्णणं पविसित्ता पुव्युत्तरदिसीएँ चिडंति पंजलिआ ॥ ११९॥ भा० ॥ एकेकीय दिसाए तिगं तिगं होइ समिवि तु । आदिचरमे विमिस्सा थी पुरिसा सेस पत्तेयं ॥ १ ॥ एतं महिड्डियं पणिक्यंति ठियमवि वयंति पणमंता। णवि जंतणा ण विकहा ण परोप्पर मच्छरो ण भयं ॥२॥ विइयंमि होंति तिरिया तइए पागारमन्तरे जाणा । पागारजढे तिरियाऽवि होंति पत्तेय मिस्सा वा ॥ ३ ॥ सर्व्वं च देखविरतिं सम्मं घेच्छति व होंति कहणाउ इहरा अमूढलक्खो न कहेइ भविस्सइ ण तं च ॥ ४ ॥ मणुए चउण्हण्णयरं तिरिए तिष्णि व दुवे व पडिवजे। जइ नत्थि नियमसोचिय सुरेसु सम्मत्तपडिवत्ती ||५|| तित्थपणामं काउं कहेइ साहारणेण सदेणं सचेसिं सण्णीणं जोयणणीहारिणा भगवं ॥ ६ ॥ तप्पुचिया अरया पूइयपूता य विणयकम्मं च कयकिञ्चोऽवि जह कह कहए णमए तहा तित्थं ॥ ७ ॥ जन्य अपुडोसरणं न दिद्वपुषं व जेण समणेणं। बारसहिं जोयहि सो एइ अणागमे लहुया ॥ ८॥ सङ्घसुरा जइ रूवं अंगुट्ठपमाणयं विउब्वेजा। जिणपायगुहं पर ण सोहए तं जहिंगालो ॥ ९ ॥ गणहर आहार अणुत्तरा य जाव वण चकि वासु बला। मण्डलिया ता हीणा छट्टाणगया भवे सेसा ॥ ५७० ॥ संघयणरूवसंठाणवण्णगइसत्तसारउस्सासा। एमाइऽणुत्तराई हवंति नामोदया तस्स ॥ १ ॥ पगडीणं अण्णासिवि पसउदया अणुत्तरा होति । खयउवसमेऽविय तहा खयम्मि अविगप्पमाहंसु ॥ २ ॥ अस्सायमाइयाओ जाविय असुद्धा हवंति पगडीओ। बिरसलबोब्ब पए ण होंति ता असुहया तस्स ॥ ३ ॥ धम्मोदएण रूवं करैति रूवस्तिणोऽवि जइ धम्मं । गिज्झवओ य सुरूवो पसंसिमो तेण रूवं तु ॥ ४ ॥ कालेण असंखेणवि संखातीताण संसईणं तु । मा संसयवोच्छित्ती न होज कमषागरणदोसा ॥ ५ ॥ सव्वत्य अविसमत्तं रिद्धिविसेसो अकालहरणं च सव्वष्णुपञ्चओऽविय अर्थितगुणभूतिओ जुगवं ॥ ६ ॥ वासोदयस्स व जहा वण्णादी होंति भायणविसेसा । सव्वेसिंपि समासा जिणभासा परिणमे एवं ॥ ७ ॥ साहारणासवसे तदुवओगो उ गाहगगिराए। न य निब्विजइ सोया किढिवाणियदासिआहरणा ॥ ८ ॥ सव्वाउयंपि सोया खवेज जइ दु सययं जिणो कहए। सीउन्हखुप्पिवासापरिस्समभए अविगणेंतो ॥ ९ ॥ वित्ती उ सुवण्णस्सा बारस अद्धं च सयसहस्साइं । तावइयं चिय कोडी पीतीदाणं तु चक्कीणं ॥ ५८० ॥ एयं चैव पमाणं णवरं रययं तु केसवा दिंति मंडलियाण सहस्सा पीईदाणं सयसहस्सा ॥ १ ॥ मत्तिविहवाणुरूवं अण्णेऽविय देति इम्भमाईया सोऊण जिणागमणं निउत्तमणिओइए वा ॥ २ ॥ देवाणुयत्ति भत्ती पूया थिरकरण सत्तअणुकंपा । साओदय दाणगुणा पभावणा चैव तित्यस्स ॥ ३ ॥ राया व रायऽमचो तस्सऽसई देइ पुरजणो वाऽवि । दुब्बलिखंडियबलिछ - १९८९ आवश्यक सनिर्यु- सूक्तिकं मूलसूत्रं नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर

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