Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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सज्झायमचिंतता कणगं बट्टण पडिनियत्तंति। पले अ दंडधारी मा बोलं गंडए उवमा ॥१४७०॥ आघोसिए बहहिं सुयंमि सेसेसु निवडए दंडो। अह तं बहुहिं न सुयं दंडिज्जइ । गंडओ ताहे ॥१॥ पियधम्मो ददधम्मो संविग्गो चेव बजभीरू अ। खेयण्णो अ अभीरू कालं पडिलेहए साह ॥२॥ कालो संझा य नहा दोवि समापंति जह समं चेवा नहतं तुलेति कालं चरिमं च दिसं असम्झाए ॥३॥ आउत्तपुब्वभणियं अणपुच्छा खलियपडियवाघाओ। भासत मूढ संकिय इंदियविसए तु अमणुण्णे ॥ ४॥ निसीहिया नमुकारे काउस्सग्गे अ पंचमंगलए। किइकम्मं च करिन्ती बीओ कालं तु पडियरइ ॥ ५॥ योवावसेसियाए संझाए ठानि उत्तराहुनो। चउदीसगदुमपुफियपुश्वगमेकेकिय दिसाए॥६॥ बिंदू छीए परिणय सगणे वा संकिए भवे निण्हं। भासंत मूढ संकिय इंदियविसए अ अमणुपणे ॥७॥ मूढो व दिसिऽज्झयणे भासतो यावि गिण्हनि न सुज्झे । अन्नं च दिसऽज्झयणे संकेतोऽनिविसए वा ॥८॥ जो गच्छतंमि विहीं आगच्छंतमि होइ सो चेवाजं एत्थं णाणत्तं नमहं बोच्छं समासेणं ॥ ५॥ निसीहिआय आसज अकरणे खलिय पडिय वाघाए। अपमजिय भीए वा छीए छिमेव कालवहो ॥२६॥प्रसिद्धसेना गोणाइ कालभूमीइ हुन संसप्पगा व उद्विजा । कविहसिय विज्जयंमी गजिय उक्काइ कालवहो ॥२७॥ इरियावहिया हत्यंतरेऽवि मंगल निवेयणा दारे।सोहिवि पट्टविए पच्छा करणं अकरणं वा॥१४८०॥ सनिहियाण वडारो पट्टविय पमादि णो दए कालं। बाहि ठिए पडियरए पविसइ ताएऽवि दंडधरो॥१शा पट्टविय बंदिए वा (य)तहिं पुच्छति केण किं सुर्य? भने । नेवि य कहेंनि सवं जं जेण मुयं व दिटुं वा ॥२॥ इक्कम्स व दोण्ह व संकियंमि कीरइ न कीरती तिण्हं । सगणमि संकिए परगणं तु गंतुं न पुच्छति ॥३॥ कालच उक्के णाणत्तगं तु पाओसियंमि सबेवि । समयं पट्टवयंती सेसेसु समं व विसमं वा ॥४॥ इंदियमाउत्ताणं हणंनि कणगा उ तिन्नि उकोसं । बासासु य निनि दिसा उउबदे नास्गा निधि ॥५॥ कणगा हर्णति कालं ति पंच सत्तेव गिम्हि सिसिर वासे। उक्का उ सरेहागा रेहारहितो भवे कणगो॥६॥ वासासु य तिनि दिसा हवंनि पाभाइयंमि कालंमि। सेसेसुतीसु चउरो उडुमि चउरो चउदिसिपि ॥ ७॥ तिसु तिनि तारगाओ उडुमि पाभातिए अदिट्टेऽवि। वासामु तारगाओ चउरो छन्ने निविट्ठोऽवि ॥८॥ठाणा(गा)सइ बिंदुसु अगिण्हे बिट्टोवि पच्छिमं कालं। पडियरइ बहिं एक्को एक्को अंतडिओ गिण्हे ॥९॥ पाओसिअड्ढरले उत्तरदिसि पुत्र पेहए कालं। वेरत्तियंमि भयणा पुत्रदिसा पच्छिमे काले ॥१४९०॥ कालचउकं उक्कोसएण जहन्न तियं तु बोद्धई। बीयपएणं तु दुगं मायामयविप्पमुक्काणं ॥१॥ फिडियंमि अड्ढरने काले चिनुं सुवंति जागरिया। ताहे गुरू गुणंती चउस्थि सो गुरू सुबइ ॥२॥ गहियंमि अड्ढरते वेरनिय अगहिए भवइ तिनि। बेरलियअड्ढरते अइउवओगा भवे दुषिण ॥३॥ पडिजग्गियंमि पढमे बीयविवजा हवंति निन्नेव । पाओसिय वेरनिय अइउवओगा उ
प्रणेव)॥४॥ पाभाइयकालंमि उसंचिक्खे तिनि छीयरुन्नाणि। परवयणे खरमाई पाचासुय एवमाईणि ॥५॥ नवकालवेल सेसे उवग्गहिय अट्ठ या पडिकमइन पडिकमइ बेगो नववारहए धुवमसज्झाओ ॥२२८॥ भा०ाइकिक तिन्नि वारे छीयाइहयंमि गिण्हए कालं। चोएइ खरोबारस अणिट्ठविसए अकालवहो ॥९॥ चोअग! माणुसऽणिट्टे कालवहो,सेस. गाण उ पहारो। पावासुआइ पुर्वि पनवणमणिच्छि उग्घाडे ॥२३०॥ वीसरसह अंते अबत्तगडिभगंमि मा गिण्हे । गोसे दरपट्टविए छीए छीए तियं पेहे ॥२३१॥ भा० आइन्न पिसिय महिया पेहिता तिन्नि तिन्नि ठाणाई। नववारहए काले हउत्ति पढमाइ न पढ़ति ॥ ६॥ पटुचियमि सिलोगे छीए पडिलेह तिन्नि अन्नत्य। सोणियमुनपुरीसे घाणालोअं परिहरिजा ॥७॥ आलोअंमि चिलमिणी गंधे अन्नस्थ गंतु पकरंति। वाघाइयकालमी गंडगमरुआ नवरि नस्थि ॥८॥ एएसामन्नवरेऽसज्झाए जो करेइ सज्झायं। सो आणा अणवत्थं मिच्छन विराहणं पावे ॥९॥ आयसमुत्थमसज्झाइयं तु एगविध होइ दुविह वा। एगविहं समणाणं दुविहं पुण होइ समणीणं ॥१५००॥ धोयंमि उ निप्पगले बंधा तिन्नेय ९ति उक्कोस । परिगलमाणे जयणा दुविहमि य होइ कायना ॥१॥समणो उ वणिव (णीव) भगंदरिव (रीव) बंध करिनु वाएइ। तहवि गलंते छारं दाउं दो तिन्नि बंधा उ॥२॥ एमेव य समणीर्ण वर्णमि इयरंमि सत्त बंधा उ। वहविय अठायमाणे धोएउं अहब अन्नस्थ ॥३॥ एएसामन्नयरेऽसज्झाए अप्पणो उ सज्झाय। जो कुणइ अजयणाए सो पाया आणमाईणि ॥४॥ मुअनाथमि अ
लोअविरुद पमत्तछलणा य। विजासाहणवइगुन्नधम्मया एच मा कुणसु ॥५॥ काम देहावयवा देताई अवजुआ तहवि बजा। अणवज्जुआ न वजालोए तह उनरे चेव भ॥६॥ अमितरमललित्तोवि कुणइ देवाण अञ्चणं लोए। बाहिरमललित्तो पुण न कुणइ अवणेइ य तओ णं ॥७॥ आउट्टियाऽवराहं संनिहिया न खमए जहा पडिमा। इह परलोए दंडो
पमत्तछलणा इह सिया उ॥८॥ रागेण व दोसेण वऽसज्झाए जो करेड सज्झायं। आसायणा व का से? को बा भणिओ अणायारो? ॥९॥ गणिसहमाइमहिओ रागे दोसंमिन सहए (दहे)सई । सबमसज्झायमर्य एमाई हुँति मोहाओ॥१५१०॥ उम्मायं वलभेजा रोगायक व पाउणे दीहं । तित्थयरभासियाओ भस्सइ सो संजमाओ वा ॥१॥ इहलोए फलमेयं | परलोएं फलं न दिति विजाओ। आसायणा सुयस्स उ कुबइ दीहं च संसारं ॥२॥ असज्झाइयनिजुत्ती कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ना। संजमतवड्ढगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं ॥३॥
असझाइयनिजुति जुजता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवेंति कम्म अणेगभवसंचियमणतं ॥४॥ असज्झायनिजुत्ती॥ नमो चउवीसाए तित्थगराणं उसमादिमहावीरपज्जवसाणाणं। 8 १२१२ आवश्यक सनियु- सूक्तिक मूलसूत्र, Torg/lem + kta
मुनि दीपरनसागर
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