Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 41
________________ काले तहेव भावे य। एसो उस्सग्गस्स उ निक्खेवो छपिहो होइ॥४॥ दब्बुज्झणा उजं जेण जत्य अवकिरह दवभूओ वा। जं जत्थ वावि खित्ते जं जचिर जंमि वा काले ॥५॥ भावे पसत्यमियरं जेण व भावेण अवकिरइ जंतु। अस्संजमं पसत्ये अपसत्ये संजमं चयइ ॥६॥ खरफरुसाई चेयणमचेयणं दुरभिगंधविरसाई। दवियमवि चयइ दोसेण जेण भावुज्झणा सा उ॥७॥ उस्सम्म विउस्सरणुज्झणा य अवगिरण छड्डण विवेगो । वजण चयणुम्मुअणा परिसाडण साडणा चेव ।।८।। उस्सग्गे निक्खेवो चउकओ छकाओ अ कायो । निक्खे काऊणं परूवणा तस्स कायवा ॥ ३० ॥ सो उस्सग्गो दुविहो चिट्ठाए अभिभवे य नायशो। भिक्खायरियाइ पढमो उक्सग्गभिजुंजणे विइओ ॥ ९॥ इयरहविता न जुज्जइ अभिओगो किं पुणाइ उस्सग्गे?। नणु गवेण परपुरं अभिरुज्झइ एवमेयंति(पि) ॥१५५०॥ मोहपयडी भयं अभिभवित्तु जो कुणइ काउसम्गं तु। भयकारणे य तिविहे णाभिभवो नेव पडिसेहो ॥१॥ आगारेऊण परं रणिव जह सो करिज उस्सगं। ज़ुजिज्ज अभिभवो ता तदभावे अमिभवो कस्स? ॥२॥ अविपि य कम्मं अरिभूयं तेण तज्जयट्ठाए। अन्भुढ़िया उ तवसंजमंमि कुवंति निम्गंधा ॥३॥ तस्स कसाया चत्तारि नायगा कम्मसत्तुसिनस्स। काउस्सग्गमभगं करंति तो तजयट्ठाए॥४॥ संवच्छरमुक्कोसं अंतमुहुत्तं च अभिभवुस्सग्गे। चिट्ठाउस्सग्गस्स उ कालपमाणं उवरि वुच्छं ॥ ५॥ उसिउस्सिओ अ तह उस्सिओ अ उस्सियनिसमओ चेव । निसनुस्सिओं निसन्नओ चेव निसन्नगनिसन्नओ चेव ॥६॥ निवणुस्सिओ निवन्नो निवन्ननिवन्नगो अनायो। एएसिं तु पयार्ण पत्तेय परूवर्ण बुच्छ॥७॥ उस्सिअ निसन्नग निवन्नगे य इकिकगंमि उ पयंमि। दवेण य भावेण अ चउकभयणा उ कायदा ॥८॥ देहमहजडसुदी सहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा। सायद य सुहं झार्ण एगग्गो काउसग्गंमि ॥९॥ अंतोमुत्तकालं चित्तस्सेगग्गया हबइमाणं। तं पुण अहूं रुई धम्मं सुकं चं नाय ॥१५६०॥ तत्थ य दो आइल्ला झाणा संसारखढणा भणिया। दुन्नि य विमुक्खहेऊ वेसिऽहिगारोन इयरेसिं॥१॥ संवरियासवदारा अवाबाहे अर्कटए देसे। काऊण थिरंथ ठाणं ठिओ निसन्नो निवन्नो वा ॥२॥ चेयणमचेयणं वा वत्यु अवलंबिउं घणं मणसा । झायइ सुअमत्थं वा दवियं तप्पजए वावि ॥३॥ तत्थ उ भणिज्ज कोई झाणं जो माणसो परीणामो। तं न हवद जिणदिट्ट झाणं तिविहेवि जोगंमि ॥४॥ वायाईधाऊणं जो जाहे होइ उकडो धाऊ । कुविओत्ति सो पवुचइ न य इयरे तत्थ दो नस्थि ॥५॥ एमेव य जोगार्ण तिण्हवि जो जाहि उकडो जोगो (होइ)। तस्स तहिं निदेसो इयरे तत्थिक दोव नवा ॥६॥ काएविय अज्झप्पं वायाइ मणस्स चेव जह होइ । कायवयमणोजुत्तं तिविहं अज्झप्पमाहंसु S॥७॥ जइ एगग्गं चित्तं धारयओ वा निरंभओ वावि। साणं होइ नणु तहा इअरेसुवि दोसु एमेव ॥८॥ देसियदंसियमग्मो वचंतो नरखई लहे सह। रायत्ति एस बच्चइ सेसा अणुगा मिणो तस्स ॥९॥ पढमिळूयस्स उदए कोहस्सिअरेवि तिमि तत्थत्तिान य ते ण संति तहियं न य पाहन्नं तहेयंमि ॥१५७०॥मा मे एजउ काउत्ति अचलओ काइज हवद झाणं। एमेव य माणसियं निरुतमणसो हवद साणं ॥१॥ जह कायमणनिरोहे साणं वायाइ जुज्जइन एवं। तम्हा बई उ झाणं न होइ को या विसेसुत्थ? ॥२॥ मा मे चलउत्ति तणू जहतं झार्ण निरेइणो होइ । अजयाभासविवजस्स वाइअं झाणमेवं तु ॥३॥ एवंविहा गिरा मे वत्तव्वा एरिसा न वत्तव्वा । इय वेयालियवकस्स भासओ वाइयं झाणं ॥४॥मणसा वावारंतो कार्य वायं च तप्परीणामो। भंगिअसुअं गुणतो वहइ तिविहेवि झाणमि ॥५॥ धम्मं सुकं च दुवे झायइ झाणाई जो ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो उसिउसिओ होइ नायवो॥६॥धम्मं सुकं च दुवे नवि झायइ नवि य अहरुदाई। एसो काउस्सग्गो बुसिओ होइ नायबो॥७॥ पयलायंत सुसुत्तो नेव सुहं झाइ झाणमसुहं बा। अशावारियचित्तो जागरमाणोवि एमेव ॥८॥ अचिरोववन्नगाणं मुच्छियअवत्तमत्तसुत्ताणं । ओहाडियमव्वत्तं च होइ पाएण चित्तंति ॥९॥ गाढालंबणलगं चित्तं बुत्तं निरयणं झाणं। सेसं न होइ झाणं मउअमवत्तं भमंतं वा ॥१५८०॥ उम्हासेसोवि सिही होउं लबिंधणो पुणो जलइ। इय अवत्तं चित्तं होउं वत्तं पुणो होइ॥१॥ पुर्वचनं तदुत्तं चित्तस्सेगग्गया हवइ झार्ण। आवन्नमणेगमगं चित्तं चिय तं न तं झाणं ॥२॥ मणसहिएण उ काएण कुणइ वायाइ भासई जं च। एयं च भावकरणं मणरहियं दबकरणं च ॥३॥ जइ ते चित्तं साणं एवं प्राणमवि चित्तमावन्नं । तेन र चित्तं झाणं अह ने झाणमन्नं ते ॥४॥ नियमा चित्त झाणं झाणं चित्तं न यावि भइयर्थ। जह खइरो होइ दुमो दुमो य खहरो अखयरो वा ॥५॥ अहूं कई च दुवे झायइ झाणाई जो RI ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो दसिओ भावउ निसन्नो ॥६॥ धम्म सुकं च दवे झायड झाणाई जो निसलो असो काउस्सग्गो निसन्नसिओ होड दुवे नवि झायइ नवि य अट्टरुदाई । एसो काउस्सग्गो निसण्णओ होइ नायबो॥ ८॥ अहं रुदं च दुवे झायइ झाणाइं जो निसनो य । एसो काउस्सग्गो निसन्नगनिसन्नओ नाम ॥९॥धम्मं सुकं च दुवे झायइ झाणाइं जो निवन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निवनुसिओ होइ णायवो ॥१५९०॥ धम्म सुक्कं च दुवे नवि झायइ नविय अहरुदाई। एसो काउस्सग्गो निवण्णओ होइ नायबो॥१॥ अहूं रुई च दुवे झायइमाणाइं जो निवन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निवन्नगनिवन्नओ नाम ॥२॥ अतरंतो उ निसन्नो करिज तहवि यऽसहू निवन्नो |१२१४.आवश्यक सनियु-सूक्तिक मूलसूत्र, निgion मुनि दीपरत्नसागर

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