Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ लि॥१७१९॥इति पचकखाणऽजायणनिजुत्तीसमत्ता 6 // भाय २५७सूत्राणि५४ासूत्रगाचाः३१पक्षिप्ताः ४२।संग्रहण्यः 71 // श्रीभगवाहुस्वामिविरचितं श्रीमदावश्यकं मलसूत्र 1 // नमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सबसाहूणं एसो पंचनमुक्कारो, सबपावप्पणासणो / मंगलाणं च सवेसि, भाषामा श्रीओघनियुक्तिः-नम पढम हबइ मंगलं // 1 // (दुविहोबक्कमकालो सामायारी अहाउयं चेव / सामायारी तिविहा ओहे दसहा पयविभागे॥१॥ नवमयपच्चक्खाणाभिहाणपुरस्स तइयवत्थुओ। वीसइमपाहुडाओ तओ इहानीणिया जइया // 2 // सो उ उवकमकालो तयत्यनिविग्यसिक्खणत्यं च / आईय कयं चिय पुणो मंगलमारंभये तं च ॥३॥प्र०) अरहते वंदित्ता चउदसपुची तहेव दसपुत्री। एकारसंगसुत्तत्यधारए सव्वसाहू य॥१॥ आहेण उ निजुर्ति वुच्छं चरणकरणाणुओगाओ। अप्पक्सरं महत्वं अणुग्गहत्थं सुविहियाणं // 2 // जुम्म। ओहे पिंड समासे संखेवे चेव होति एगट्ठा। निजुत्तत्ति य अस्था जं बद्धा तेण निजुत्ती॥१ भाष्यं / वय समणधम्म संजम वेयावर्च च बंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तब कोहनिम्गहाई चरणमेयं // 2 // पिंडविसोही समिई भावण पडिमा य इंदियनिरोहो। पडिलेहण गुत्तीओ अभिग्गहा चेव करणं तु // 3 // चोदगवयणं छट्ठी संबंधे कीस न हबइ विभत्ती / तो पंचमी उ भणिया किमत्यि अनेऽवि अणुओगा? // 4 // चत्तारि उ अणुओगा चरणे धम्म गणियाणुओगे य। दवियाणुजोगे य तहा अहकम ते महिड्ढीया // 5 // सबिसयबलवत्तं - पुण जुजइ तहवित्र महिड्ढि चरण। चारित्तरक्खणट्ठा जेणिअरे तिन्नि अणुओगा॥६॥ चरणपडिवत्तिहेउं धम्मकहाकालदिक्खमाईआ। दबिए सणसुद्धी दसणसुद्धस्स चरणं तु ॥७॥जह रपणो विसएसुं वयरे कणगे अस्यय लोहे अ। चत्सारि आगरा खलु चउण्ह पुत्ताण ते दिन्ना // 8 // चिंता लोहागरिए पडिसेहं सो उ कुणइ लोहस्स / वयराईहि अगहर्ण करिति लोहस्स तिन्नियरे // 9 // एवं चरणमि ठिओ करेद गहणं विहीइ इयरेसिं। एएण कारणेणं हबइ उ चरणं महड्डीअं // 10 // अप्पक्खरं महत्थं महक्खरऽप्पत्य दोसुऽवि महत्थं। दोसुऽवि अप्पं च तहा भणि सत्यं चउविरप्पं // 1 // सामायारी आहे नायज्झयणा य दिहिवाओ य। लोइअकप्पासाई अणुक्कमा कारगा चउरो // 2 // बालाईणऽणुकंपा संखडिकर - गंमि होअगारीणं। ओमे य बीयभतरणा दिनं जणवयस्स॥३॥ भा०एवं बेरोहिं इमा अपावमाणाण पयविभागं तु ।साहुणऽणुकंपट्ठा उबइहा ओहनिज्जुत्ती॥४|| भाष्यं॥पडिलेहणं च पिंडं उवहिपमाणं अणाययणवज। पडिसेवणमालोअण जह य विसोही सुविहियाणं // 3 // आभोग मग्गण गवेसणा य ईहा अपोह पडिलेहा। पेक्खण निरिक्खणाविय आलोय पलोयणेगट्टा // 4 // पडिलेहओ य पडिलेहणा य पडिलेहियच्वयं चेव। कुंभाइसु जह तितयं परुवणा एवामिहयंपि // 5 // एगो व अणेगो वा दुविहा पडिलेहगा समासेणं / ते दुविहा नायवा निक्कारणिआ य कारणिआ॥६॥ असिवाई कारणिआ निक्कारणिआ य चक्कथूभाई। तत्थेगं कारणिों चोच्छ ठप्पा उ तिन्नियरे // 7 // असिवे ओमोयरिए रायभए खुहिअ उत्तमट्टे अ। फिडिअ गिलाणाइसए (पणे असेस) देवया चेव आयरिए // 8 // संवच्छरवारसएण होही असिवंति ते तओ णिति / सुत्तत्थं कुवंता अइसयमाईहि नाऊण // 15 // भा०। अइसेस देवया वा निमित्तगहणं सर्य व सीसो वा। परिहाणि जाव पत्तं निग्गमणि गिलाणपडिबंधो // 6 // संजयगिहितदुभयभदिआ य तह तदुभयस्सवि अ पंता। चउवज्जण वीसुं उवस्सए य तिपरंपराभत्तं // 7 // असिवे सदसं वत्थं लोहं लोणं च तहय विगईओ। एयाई वजिज्जा च उवजणयंति जं भणिअं॥८॥ उव्वत्तण निल्लेवण बीहंते अणभिओगऽभीरू य। अगहिअकुलेसु भत्तं गहिए दिढि परिहरिजा // 9 // पुब्बाभिग्गहवुड्ढी विवेग संभोइएसु निक्खिवणं / तेऽविय पडिबंधठिा इयरेसु बला सगारदुर्ग // 20 // कृयंते अम्भस्थण समत्थभिक्खुस्स णिच्छ तदिवस। जइ विदघाइभेओ ति दुवेगो जाव लाउवमा // 1 // संगारो रायणिए आलोयण पुष्व पत्त पच्छा वा। सोममुहिकालरत्तच्छऽणंतरे एको दो विसए // 2 // एमेव य ओमम्मिवि भेओ उ अलंभि गोणिदिद्वैतो। रायभयं च चउद्धा चरिमदुगे होइ गणभेओ // 3 // निव्विसऊत्तिय पढमो बिइओ मा देह भत्तपाणं तु (प्र० से)। तइओ उवगरणहरो जीवचरित्तस्स वा भेओ // 4 // अहिमर अणि? दरिसणवुम्गाहणया तहा अणायारे। अवहरण दिक्खणाए व आणालोवेव कुपिज्जा // 5 // अंतेउरप्पवेसो वायणिमित्तं व सो पउस्सेजा। खुभिए मालज्जेणी पलायर्ण जो जओ तुरियं // 6 // तस्स पंडियमाणिस्स, बुद्धिस्स दुरप्पणो। मई पाएण अकम्म, बाई वाउरिवागओ॥७॥ निजवग एगाणिओ व गच्छिजा। सुत्तत्यपुच्छगो वा गच्छे अहवाऽवि पडिअरिउं // 8 // फिडिओ व परिरएणं मंदगई वावि जाव न मिलिजा। सोऊणं व गिलाणं ओसहकज्जे असई एगो॥९॥ अइसेसिओ व सेहं असई एगाणियं पठावेजा (प० पयट्टेजा)। देवय कलिंग रुवणा पारणए खीर रुहिरं च // 30 // चरिमाए संदिट्ठोओगाहेऊण मत्तए गंठी। इहरा कयउस्सग्गो परिच्छ आमंतिआ सगणं // 1 // गच्छेज को णु? सवेऽवऽणुग्गहो कारणाणि दीबिंता। अमुओ एत्य समत्थो अणुग्गहो उभय किइकम्मं // 32 // भाष्यं / पोरिसिकरणं अहवावि अकरणं दोच्च पुच्छणे दोसा / सरण सुय साहु सन्ती अंतो बहि अन्नभावेणं // 9 // वोहण अप्पडिबुद्धे गुरुवंदण घट्टणा अपडिबुद्धे / निच्चलणिसण्णझाई बढुं चिढ़े चलं पुच्छे // 10 // (305) R1220 ओपनिर्यतिः . - मुनि दीपरनसागर A7

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47