Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 45
________________ इमाई पन्नरस कम्मादाणाई जा० तंजहा इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिजे लक्खवाणिजे रसवाणिजे केसवाणिजे विसवाणिजे जंतपीलणकम्मे जा निाउणकम्मे दवम्गिदावणया सरदहतलायसोसणया असईपोसणया ।४४ अणत्यदंडे चाउविहे पन्नत्ते तंजहा-अवज्झाणायरिए पमत्तायरिए हिंसप्पयाणं पावकम्मोवएसे, अणत्यदंडवेरमणम्स समणोचा इमे पातंजहा कंदप्पे कुकुइए मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उपभोगपरिभोगाइरेगे।४५/सामाइयं नाम साक्जजोगपरिवजणं निरवजजोगपडि(रि)सेवणं च, सिक्खा दुविहा गाहा उपवाय ठिइ गई कसाया या पंधता यंता पडिवजाइकमे पंच ॥१९॥ सूत्रगान सामाइअंमि उकए समणो इव सावओ हवइ जम्हा। एएण कारणेणं बहुसो सामाइयं कुजा ॥२०॥ सम्बंनि भाणिऊणं विरई खलु जस्स सखिया नस्थि। सो सब्वविरहवाई चुक्कड़ देसं च सर्व च ॥२१॥ सामाइयस्स समणो० इमे पातंजहा-मणदुप्पणिहाणे वइदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे सामाइयम्स सइप्रकरणया सामाइयस्स अणवडियस्स करणया ।४६। दिसिवयगहियस्स दिसापरिमाणस्स पइदिणं परिमाणकरणं देसावगासियं नाम, देसावगा. सियम्स समणो इमे पन नंजहा- आणवणप्पओगे पेसवणप्पओगे सहाणुवाए रूवाणुबाए चहिया पुग्गलपक्खेवे ।४७) पोसहोववासे चउबिहे पन्नत्ते तंजहा- आहारपोसहे सरीरसकारपोसहे चंभचेरपोसहे अव्वाचारपोसहे. पोसहोववासम्स समणो० इमे पश० तंजहा- अप्पडिलेहियदुष्पडिलेहियसिज्जासंथारए अपमजियदुष्पमजियसेज्जासंथारए अपडिलेहियदुप्पडिलेहियउबारपासत्रणभूमी अप्पमजियदुष्पमजियउचारपासवणभूमी पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया ।४८। अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिजाणं अन्नपाणा ईणं दयार्ण देसकालसदासक्कारकमजुअं पराए भनीए आयाणुग्गहचुदीए संजयाणं दाणं, अतिहिसंविभागस्स समणो० इमे पत्र तंजहा-सचित्तनिक्खेवणया सचित्तपिहणया कालाइक्कमे परववएसे मच्छरिया य । ४९। इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाई तिष्णि गुणव्वयाई आवकहियाई चत्तारि सिक्खावयाणि इत्तरियाई. एयस्स समणोवासगधम्मम्स मूलवन्धुं सम्मनं तंजहा-तं निसग्गेण वा अभिगमेण वा पंचअइयारविसुदं. अणुव्वयगुणव्वयाई अभिग्गहा अन्नेऽवि(य) अणेगा पडिमादओ विसेसकरणजोगा, अपच्छिमा मारणंनिया संरोहणानुसणाराहणया, इमीए समणोवासएणं इमे पक्ष जहा- इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्पओगे जीवियासंसप्पओगे मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे 1५०ासू०। 'पचक्खाणं उत्तरगुणेमु खमणाइयं अणेगविहं। तेण य इहयं पग तंपिय इणमो दसविहं तु ॥९॥ अणागयमइकन कोडियसहिअंनिअंटिअंचेव। सागारमणागारं परिमाणकर्ड निरवसेसं ॥१६६० ॥ संकेयं चेव अदाए, पचक्खाणं तु दसविहं । सयमेवऽणुपारणियं. दाणुवएसे जह समाही ॥१॥ होही पजोसवणा मम य नया अंतराइयं हुजा । गुरुवेयावचेणं तवस्सि गेलनयाए वा ॥२॥ सो दाइ तपोकम्मं पडिबजे तं अणागए काले। एवं पञ्चक्खाणं अणागय होइ नायचं ॥३॥ पजोसवणाइ तवं जो खलु न करेइ कारणज्जाए। गुरुवेयावचेणं तबस्सि गेलनयाए वा ॥४॥ सो दाइ नबोकम्म पडिवजइ ने अइच्छिए काले। एवं पचखाणं अइकत होइ नायचं ॥५॥ पट्टवणओ य दिवसो पचक्खाणस्स निढवणओ य। जहियं समिनि दुन्निवि नं भन्नइ कोडीसहियं तु ॥६॥ मासे मासे य नवो अमुगो अमुगे दिणमि एवइओ। हद्वेण गिलाणेण व कायको जाव ऊसासो॥ एवं पञ्चक्खाणं नियंटियं धीरपुरिसपन्ननं। जं गिण्हनऽणगारा अणिस्सिअप्पा अपडिवदा ॥८॥ चउदसपुची जिणकप्पिएसु पढमंमि चेव संघयणे। एवं विच्छिन्नं खलु थेरावि नया करेसीय ॥९॥ मयहरमागारेहि अन्नत्थवि कारणमि जायंमि। जो भत्तपरिचायं करेइ सागारकडमेयं ॥१६७०॥ निजाय कारणमी मयहरगा नो करंति आगारं। कंतारविनिम्भिक्खयाइ एवं निरागारं ॥१॥ सवं असणं सर्व पाणगं सबखजभुजविहिं। वोसिरद सवभावेण एवं भणियं निरवसेसं ॥२॥ दत्तीहि उ कवलेहि व घरेहि भिक्खाहिं अहव दव्वेहिं। जो भत्तपरिचायं करेइ परिमाणकडमेयं ॥३॥ अंगहमट्टिगंठीघरसेउस्सासथिगजोहरसे । भणियं सकेयमेयं धीरेहि अणननाणीहिं ॥४॥ अदापचक्खाणं जं नं कालपमाणछेएण। पुरिमइढपोरिसीए मुहुनमासदमासेहि ॥५॥ भणियं दसविहमेयं पञ्चक्खाणं गुरूपएसेणं । कयपचक्वाणविहिं इत्लो चुच्छ समासेणं ॥६॥ आह जह जीवघाए पञ्चक्खाए न कारए अन्नं। भंगभयाऽसणदाणे धुप कारवणे यनणु दोसे ॥ ॥ तो (नो)कयपचक्खाणो आयरियाईण दिन (ज) असणाई।नय विरइपालणाओवेयावचं पहाणयरं ॥८॥नो निविहं तिविहेणं पचवह अभदाणकारवणं । सुद्धम्स नओ मुणिणो न होइ तभंगहेउत्ति ॥९॥ सयमेवऽणुपालणियं दाणुचएसो य नेह पडिसिदो। ना दिज उपइसिज व जहासमाहीइ अमेसि ॥१६८०॥कयपचक्वाणोऽविय आयरियगिलाणचालनुदाणं । दिजासणाइ संते लाभे कयबीरियायारो॥१॥ संविग्गअण्णसंभोइयाण देसेज सड्ढगकुन्लाई। अतरंतो वा संभोइयाण देजा जहसमाही॥२४८|भागसोही पचक्खाणस्स बिहा समणसमयकेऊहिं । पनत्ता तित्ययरेहि तमहं बुलं समासेणं ॥९॥भाकासा पुण सरहणा जाणणाय विणयाणुभासणा पत्र। अणुपालणाचिसोही भावचिसोही भवे उहा॥२॥ पचक्खाणं सव्वदेसियं जं जहिं जया काले। तं जो सहहइ नरोतं जाणमु सहहणमुदं ॥२५०॥भा०पच्चक्खाणं जाणइ कप्पे जं जंमि होड कायव्वं । मूलगुणे उत्तरगुणेनं १२१८ आवश्यक सनिर्यु- सूक्तिक मूलसूत्र, निgliri+Disawari- ..... मुनि दीपरनसागर

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