Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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पाक
॥४॥ वेलं कालगओ निक्कारण कारणे मवि निरोहो । छेयण बंधण जग्गण काइयमत्ते य हत्यउडे ॥५॥ अनाविट्ट सरीरे पंता वा देवया उ उद्वेजा । काइयं हब्बहत्येण मा उहे तुज्या गुज्नया ! ॥६॥ विनासेज हसेज व मीम वा अट्टहास मुंचेजा। अभीएणं तत्थ उ काय विहीह वोसिरणं ॥७॥दोलि य दिवइदखेले दम्भमया पुत्तला उ काया।समसेरामि उ एक्को अवड्ढऽभीए ण कायो॥८॥ तिष्णेव उत्तराई पुणासू रोहिणी विसाहा या एए छन्त्रक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥९॥ अस्सिणि कत्तिय मियसिर पुस्सो मह फग्गु इत्य चिता या अणुराह मूल साढा सवण धणिट्ठा य भइवया ॥१३३०॥ तह रेवइत्ति एए पारस हवंति तीसइमुहुत्ता। नक्खत्ता नायबा परिट्टवणविहीय कुसलेणं॥१॥ सयभिसया भरणीओ | अरा अम्सेस साइ जेट्टा य। एए उसक्खत्ता पनरसमुहत्तसंजोगा ॥२॥ सत्तस्थतदभयविऊ परओ घेत्तण पाणय।
२॥ सुत्तत्थतदुभयविऊ पुरओ घेत्तण पाणय कसे या गच्छड य जड उडडाहो (सागरियं) परिवेऊण आयमण ॥३॥ पंडिलवाघाएणं अहवावि अणिच्छिए अणाभोगा। भमिऊण उवागच्छे तेणेव पहेण न नियत्ते ॥४॥ कुसमुट्टी एगाए अशोच्छिण्णाइ एत्य धाराए । संथारं संथरेजा सत्य समो उ कायठो ॥५॥ विसमा जइ होज तणा उवरि मझे व हेट्टओ वावि। मरणं गेलण्णं वा तिण्हंपि उ निहिसे तत्थ ॥६॥ उवरि आयरियाणं मझे वसहाण हेट्टि भिक्खूणं । तिण्हंपि रक्खणट्ठा सबत्य समा उ काया ॥७॥ जत्य वनस्थि तणाई चुण्णेहिं तत्थ केसरहिं वा। कायद्योऽत्य ककारी हेड तकारं च बंधेजा ॥८॥ जाए दिसाएँ गामो तत्तो सीसं तु होइ काययं । उर्दुतरखणत्या एस विही से समासेणं ॥९॥ चिण्हट्ठा उवगरणं दोसा उ भवे अचिंधकरणमि। मिच्छत्त सो व राया व कुणह गामाण वहकरणं ॥१३४०॥ चसहि निवेसण साही गाममज्झे य गामदारे य। अंतर उजाणंतर निसीहिया उहिए वोच्छ ॥ १॥ वसहि निवेसण साही गामद्धं चेय गाम मोत्तव्यो। मंडलकंडसे निसीहिया चेव रज तु ॥२॥ वचंते जो उ कमो कलेवर पवेसणंमि वोचत्यो। णवरं पुण णाणत्तं गामदारंमि बोद्धर्व ॥२०८॥ भाष्यं । असिवाइकारणेहिं तत्थ वसंताण जस्स जो उ तवो। अभिगहियाणभिगहिओ सा तम्स उजोगपरिखुड्ढी ॥३॥ गिण्हइ णामं एगस्स दोण्हमहवावि होज सव्वसि। खिप्पं तु लोयकरणं परिषणगणभेयचारसगं ॥ ४॥जो जहियं सो तत्तो नियत्तइ पयाहिणं न कायश्वं । उट्टाणाई दोसा विराहणा वालबुदाणं ॥५॥ उढाणाई दोसा उ हाँति तत्थेव काउसगंमि । आगम्मुवस्सयं गुरुसगासे विहीए य उस्सम्गो ॥ ६॥ खमणे य असज्झाए राइणिय महाणिणाय नियगा वा। सेसेसु नस्थि खमण नेव असज्झाइयं होई ॥७॥ अवरजयस्स तत्तो मुत्तत्थविसारएहिं थिरएहिं । अवलोयण कायध्या सुहासुहगहनिमित्तट्ठा ॥८॥जं दिसि विकड्ढियं खल सरीरयं अक्सुयं तु संचिक्खे। तं दिसि सिर्व वयंती सुत्तत्थविसारया धीरा ॥९॥ एत्थ य-थलकरणे वेमाणिओं जोइसिओ वाणमंतर समंमि। ग(ख)ड्डाएं भवणवासी एस गई से समासेणं ॥१३५०॥ एसो उ विही सब्यो कायब्बों सिमि जो जहि वसइ । असिवे खमण विवढ्ढी काउस्सरगं च वज्जेज्जा ॥१॥ एसो दिसाविभागो नायब्बो दुविहदब्वहरणं च। बो सिरणं अवलोयण सुहासुहगईविसेसोय ॥२॥ अस्संजयमणएहिं जा सा दुविहा य आणपब्वीए। सचित्तेहिं सविडिय! अचित्तेहिं च नायव्वा ॥३॥ कप्पगरुवस्स उ बोसिरणं संजयाण वसहीए । उदयपह बहुसमागम विपज्जहाऽऽलोयणं कुज्जा ॥४॥ पडिणीयसरीरहणे वणीमगाईसु होइ अचित्तो। तो येक्स घोलकरणं विष्पजह विगिंधणं कुजा ॥५॥ गोमणुएहिं जा सा तिरिएहिं सा य होइ दुविहा उ । सचित्तेहिं सुविहिया ! अञ्चित्तेहिं च नायचा ॥६॥ चाउलोयगमाइंहिं जलचरमाईण होइ सचित्ता। जलथलखह कालगए अञ्चित्त विर्गिचणं कुजा ॥७॥ नोतसपाणेहिं जा सा सा दुविहा होइ आणुपुत्रीए। आहारंमि सुविहिया! नायचा नोयआहारे ॥८॥ आहारंमि उजा सा सा दुविहा होइ आणुपुत्रीए। जाया चेव सुविहिया ! नायचा तह अजाया अ॥९॥ आहाकम्मे अ तहा लोहविसे आभिओगिए गहिए। एएण होइ जाया वोच्छ से विहीएँ कोसिरपा ॥१३६०॥ एतमणांचाए अञ्चिते यंडिले गुरुवइटे। छारेण अकमित्ता तिढाणं सावणं कुज्जा ॥१॥ आयरिए य गिलाणे पाहुणए दुलहे सहसलाहे। एसा खलु अज्जाया वोच्छ से बिहीएं वोसिरणं ॥२॥ एगंतमणावाए अचित्ते पंडिले गुरुबइठे। आलोएं तिन्नि पुंजा तिट्ठाणं सावणं कुज्जा ॥३॥ नोआहारंमी जा सा सा दुविहा होइ आणुपुत्रीए । उपकरणमि सुविहिया! नायव्वा नोयउवगरणे ॥४॥ उबगरणंमि उ जा सा सा दुविहा होइ आणुपुषीए। जाया चेव सुविहिया! नायबा तह अजाया य॥५॥ जाया य वत्थपाए यंका पाए य चीवरं कुज्जा । अजायबत्यपाए वोच्चन्थे तुच्छपाए य॥०२५॥ दुविहा जायमजाया अभिओग विसे य सुद्धऽसुद्धा या एगं च दोण्णि तिणि य मुलुत्तरसुद्धजाणट्ठा (णाहि)॥६॥ नोउवगरणे जा सा चउबिहा होड आणुपुचीए। उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणए चेव ।।७॥ उच्चारं कुब्वंतो छार्य तसपाणरक्खणवाए।कायद्यदिसाभिग्गहे य दो चेचऽभिगिण्हे॥८॥ पुढवितसपाणसमुट्ठिएहिं एत्थं तु होइ चउभंगो। पढम पयं पसत्यं सेसाणि उ अप्पसत्याणि ॥९॥ गुरुमूलेवि वसंता अणुकूला जे न होंति उ गुरुणं। एएसिं तु पयाणं दूरंदरेण ते होंति॥१३७०॥ पारिट्ठावणिया। पडिक्कमामि छहिं जीवनिकाएहिं-पुढवीकारणं आउकाएणं तेउकाएणं वाउकाएणं वणस्सइकाएणं तसकाएणं, पडि० छहि लेसाहि-किण्हलेसाए नीललेसाए काउलेसाए तेउलेसाए पम्हले१२०७ आवश्यक सनियु- मूक्तिक मूलमूत्र Aryird
मुनि दीपरत्नसागर
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