Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 35
________________ साए मुकलेसाए। पडिकमामि सत्तहिं भयठाणेहिं । अहहिं मयठाणेहिं । नवहिं बंभचेरगुत्तीहिं। दसविहे समणधम्मे। एकारसहिं उवासगपडिमाहि । वारसहि भिक्खुपडिमाहि । तेरसहि किरिया ठाणेहि सू०१५ इहपरलोयाऽऽदाणं अकम्ह आजीव मरणमसिलोए। जाई कुल बल रूवे तव ईसरिए सुए लाहे ॥१॥(संगहणी) वसहि कह निसिजिदिय कुडतर पुष्वकीलिए पणीए। आइमायाहार विभूसणा य नव बंभगुत्तीओ॥२॥ खंती य महवनय मुत्ती तव संजमे य बोद्ध । सच्चं सोयं आकिंचणं च बभं च जइधम्मो ॥३॥ दसण वय सामाइय पोसह पडिमा अबम सचित्ते। आरंभपेसउहिट्ठबचए समणभूए य॥४॥ मासाई सर्तता पढमावियतइय सत्तराइदिणा। अहराई एगराई भिक्खुपडिमाण बारसगं ॥ ५ ॥ अट्ठाणट्ठा हिंसाऽकम्हा विट्ठीय मोसऽदिपणे या अम्भस्थ माण मेतेमाया लोहे रियावहिया ॥६॥(संग०) चउदसहिं भूयगामेहिं पचरसहिं परमाहम्मिएहिं सोलसहिं गाहासोलसएहि सत्तरसविहे असंजमे अट्ठारसविहे अचंभे एगणवीसाए णायजनयणेहि वीसाए असमाहिठाणेहिं (सू०१६) एगिदियसुहुमियरा सणियर पणिंदिया य सवीतिचउ । पजत्तापजत्ताभेएणं चोइस ग्गामा ॥७॥ (संग०) मिच्छरिट्ठी सासायणे य तह सम्ममिच्छदिट्ठी या अचिरतसम्मबिट्ठी विरयाविरए पमत्तेय ॥८॥ तत्तो य अप्पमत्तो नियहिअनियट्टिबायरे सुहमे। उवसंत खीणमोहे होइ सजोगी अजोगी य॥९॥ अंबे अंबरिसी चेच, सामे अ सबले इय। रहोबरुद काले य, महाकालेति आवरे ॥१०॥ असिपले धणु कुंभे, वालू वेयरणी इय। खरस्सरे महाघोसे, एए पारसाहिया ॥११॥ समयो वेयालीयं उबसम्मपरिण्ण थीपरिण्णा या निरयविभत्ती वीरत्यओ य कुसीलाण परिहासा ॥२॥ वीरिय धम्म समाही मग्ग समोसरण अह्तहं गंथो। जमईयं तह गाहा सोलसमं होइ अजमायणं ॥३॥ पुढविद्गअगणिमारुयवणस्सइबितिचउपणिंदिअज्जीवा । पेहुप्पेहपमजणपरिट्ठवणमणोवईकाए॥४॥अउरालियं च दिव्वं मणवहकाएण करणजोएणं । अणुमोयणकारवणे करणे अट्ठारसायंभं ॥५॥ उक्खित्तणाए संघाडे, अंडे कुम्मे य सेलए। तुंचे य रोहिणी मल्ली, मागंदी चंदिमा इय ॥६॥ दावहवे उदगणाए, मंडुक्के तेयली इयानदिफले अवरकका, माया सुसु पुडरिया ॥७॥ दवदवचारऽपमज्जिय दुपमज्जियऽहारत्तासज्जआसाण भिक्खऽमिक्खमोहारी। अहिकरणकरोईरण अकालसझायकारी य ॥९॥ ससरक्खपाणिपाए सहकरो कलहझंझकारी य। सूरप्पमाणमोती वीसइमे एसणाऽसमिए ॥२०॥ (संग०) एगवीसाए सबलेहि बावीसाए परीसहेहिं तेवीसाए सूयगढज्झयणेहिं चउबीसाए देवेहिं पंच(पण)वीसाए भावणाहिं छब्बीसाए दसाकप्पववहाराण उडेसणकालेहिं सत्तवीसविहे अणगारगुणे अट्ठावीसइविहे आयारप्पकप्पे एगूणतीसाए पावसुयपसंगेहिं तीसाए मोहणियठाणेहिं एगतींसाए सिद्धाइगुणेहिं वत्तीसाए जोगसंगहेहिं । सू०१७॥ तं जह उ हत्यकम्म कुाते मेहुणं च सेवंते। राई च मुंजमाणे आहाकम्मं च मुंजते ॥२१॥(संग०) तत्तो य रायपिंडं कीर्य पामिच्च अभिहर्डऽछेज्ज । मुंजतं सबले ऊ पच्चक्खियऽभिक्ख भुंजइ यन्तेि)॥२॥ छम्मासमंतरओ गणा गर्ण संकर्म करते य। मासऽभंतर तिणि य दगलेवा ऊ करेमाणो ॥३॥ मासऽभंतरओ वा माईठाणाई तिनि कुणमाणो । पाणाइवाय उहि कुत मुर्स वर्यते य॥४॥ गिण्हते य अदिषणं आउहि तह अणंतरहियाए। पुढवीय ठाणसेज निसीहियं वावि चेतेइ ॥५॥ एवं ससिणिहाए ससरक्खा चित्तमंतसिलले पइहा कोलघुणा तेसि आवासो॥६॥ संडसपाणसचीए जाव उ संताणए भवे तहियं । ठाणाइ चेयमाणो सबले आउहिआए य॥७॥ आउट्टि मूल कंदे पुप्फे य फले य बीय हरिए य। भुजंते सवलेए तहेव संवच्छरस्संतो॥८॥ दस दगलेवे कुवं तह माइट्ठाण दस य परिसन्तो। आउट्टिय सीओदग बग्घारिय हत्थमत्ते य॥९॥ दवीए भायणेण व दिर्जतं भत्तपाण घे. तुणं । भुंजइ सबलो एसो इगवीसो होइ नायबो॥३०॥(व्याख्यान्तर) वरिसंतो दसमासस्स तिनि दगलेव माइठाणाई। आउट्टिया करतो वहालियादिण्णमेहुण्णे कीयमाई अभिक्ससंबरिए। कंदाई भुंजते दउालहत्याइगहणं च ॥२॥ सचित्तसिलाकोले अइरावणिठाई ससिणिद्ध ससरक्ले।छम्मासंतो गणसंकर्म च करकम्ममिइ सबले ॥३॥ बुहा पिवासा सीउण्हं दंसाचेलारइथिओ। चरिया निसीहिया सेज्जा अकोस वह जायणा ॥४॥ अलाभ रोग तणफासा मल सकारपरीसहा। पण्णा अण्णाण सम्मन इइबाचीस परीसहा ॥५॥ हारपरिणऽपचखाणकिरिया य। अणगार अदनालंद सोलसाई च तेवीसं ॥ ६॥ भवणवणजोइवेमाणिया य दसअट्ठपंचएगविहा । इह(इ) चउवीसं देवा केई पण ति अरिहंता ॥७॥इरियासमिए सया जए. उवेह भंजेज व पाणभोयणे। आयाणनिक्खेवद् हलोहे भयमेव कजए। स दीहरायं समुपहिया सिया. मुणी हु मोसं परिवजए सया ॥९॥ सयमेव उ उग्गहजायणे घडे, मइमं निसम्म सइ भिक्खु उग्गहं । अणुण्णविय भुंजिय पाणभोयणं, जाइत्ता साहम्मियाण उम्गहं ॥४०॥ आहारगुत्ते अविभूसियापा, न इस्थि निज्झाइ न संथकेजा। बुद्धो मुणी खुड्डकह न कुजा, धम्माणुपेही संधए बंभचेरं ॥१॥ जे सहरूवरसगंधमागए, फासे य संपप्प मणुण्णपावए। गिही पदोसं न करेज पंडिए, स होइ दंते विरए अकिंचणे॥२॥ दस उद्देसणकाला दसाण कप्पस्स होति छच्चेच । दस चेव य वव. हारस्स हाँति सधेवि छवीस ॥३॥ वयछक्कामदियाणं च निम्गहो भावकरणसर्च च। खमया विरागयाविय मणमाईणं निरोहो अ॥४॥ कायाण छक्क जोगाण(गंमि) जुत्तया (३०२) १२०८ आवश्यक सनियु- सूक्तिकं मूलसूत्र ifguri+Hireci- .. मुनि दीपरत्नसागर

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