Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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वेयणाऽहियासणया। तह मारणतियऽहियासणा य एएऽणगारगुणा ॥५॥ सत्यपरिण्णा लोगो विजओ अ सीओसणिज सम्मत्तं। आवंति व विमोहो उवहाणसुयं महपरिण्णा ॥६॥ |पिंडेसण सिनिरिया भासजाया अपत्यपाएसा। उग्गहपडिमासत्तेकसत्तयं भावण विमुत्ती ॥७॥ उग्यायमणुग्घायं आस्वणा तिविहमो णिसीह तुइय अट्ठावीसविहो आयारपकप्पणामोऽयं (उ) 10 अट्ठनिमित्तंगाई दिनुपायंतलिक्स भोमं च। अंग सर लक्खण बंजणं च तिविहं पुणोके ॥९॥ सुत्तं चित्ती वह पत्तियं च पाचसुय अउणतीसविहं । गंधवनवत्थु आउँधणुषेयर्सजुतं ॥५०॥ वारिमोऽवगाहित्ता, तसे पाणे विहिंसई । छाएउ मुहं हत्येवं, अंतोनायं गलेश्वं ॥१॥ सीसावेदेण बेद्वित्ता, संकिलेसेण मारए। सीसंमि जे य आहेतु, दुहमारेण हिंसा ॥२॥बहुजणस्स नेयारं, दीयं ताणं च पाणिणं । साहारणे गिलाणमि, पहू किचन कुबई ॥३॥ साहू अक्षम्म धम्माओ जे भंसेइ उवहिए । णेयाउयस्स मम्गस्स, अवगारंमि बट्टा ॥४॥ जिणाणं णतणाणीणं, अपणं जो उ भासइ । आयरियउवझाए, खिसई मंदबुद्धीए ॥ ५॥ तेसिमेव य णाणीण, सम्मं नो पडितप्पा । पुणो पुणो अहिगरणं, उपाए तिस्थभेयए ॥ ६॥ जाणं आहम्मिए जोए, पउंजइ पुणो पुणो । कामे वमित्ता पत्येइ, इहऽसमविए इय ॥ ७॥ भिक्खूर्ण बहुसुएऽहंति, जो भासइऽबहुस्सुए। तहा य
जो तवस्सित्तिऽहं बए॥८॥ जायतेएण बहुजणं, अंतोषमेण हिंसइ। अकिबमप्पणा काउं, कयमेएण भासह ॥९॥ नियहिपणिहीए पलिउंचे साइजोगजुत्ते या बेई | सव्वं मुसं पयसि, अक्खीणझंझए सया ॥६०॥ अदाणमि पवेसित्ता, जो वर्ण हरइ पाणिणं। बीसभित्ता उवाएणं, दारे तस्सेव लुम्भई ॥१॥ अभिक्खमकुमारे उ. कुमारेऽइंति भासइ। एवं अबंभयारीवि, भयारित्तिऽहं वए ॥२॥ जेणेविस्सरियं णीए, वित्ते तस्सेव लुम्भई। वप्पभावुट्ठिए वापि, अंतरार्य करेइ से ॥३॥ सेणावई पसत्यारं, भत्तारं वावि हिंसइ । रहस्स वावि निगमस्स, नायर्ग सेट्टिमेव वा ॥४॥अपस्समाणो पस्सामि, अहं देवेत्ति वा वए । अवण्णेणं च देवाणं, महामोहं पकुब्बइ ॥ ५॥ पडिसेहण संठाणे वण गंध रस फास वेए अ।
पणपणदुपणट्ठतिहाइगतीसमकायसंगरहा ॥६॥ अहवा कम्मे नव दरिसणमि चत्तारि आउए पंच । आइमंते सेसे दो दो खीणभिलावेण इगतीसं ॥६७॥ (संग०) आलोयणा निरवलावे, PA आवइसु य ददधम्मया । अणिस्सिओबहाणे अ, सिक्खा णिप्पडिकम्मया ॥१३७१॥ अण्णायया अलोहे अ, तितिक्खा अज्जवे सुई । सम्मदिट्ठी समाही अ, आयारे विणओवए ॥२॥धिई मई
असंवेगे, पणिही सुविही संवरे। अत्तदोसोवसंहारो, सबकामविरत्तया ॥३॥पचक्खाणा विउस्सम्गे, अप्पमाए लवालवे। झाण संवर जोगे अ, उदए मारणंतिए।४॥संगाणं च परिण्णाए, पचिछत्तकरणे इय। आराहणा य मरणंते, बत्तीस जोगसंगहा ॥५॥ उजेणि अट्टणे खलु साहगिरि सोपारए अ पुहइबई। मच्छियमहडे दुराडकूविए फलिहमले अ॥६॥ दंतपुर दन्तचके | सञ्चवदी दोहले अवणयरए। धणमित्त धणसिरी अपउमसिरी चेव दढमित्ते ॥७॥ उजेणीए धणवसु अणगारे धम्मघोस चंपाए। अडपीए सत्य विभम बोसिरणं सिझणा चेव ॥८॥
महुराएँ जउणराया जउणावंके य दंडमणगारे। वहणं च कालकरणं सकागमणं च पव्वजा ॥९॥ पाटलिपुत्त महागिरि अजसुहत्थी य सेहि वसुभूती। बइदिसि उज्जेणीए जियपडिमा -एलकच्छं च ॥१३८०॥ खिति चण उसभ कुसगं रायगिहं चंप पाडलीपुत्त। नंदे सगडाले थूलभद सिरिए वररई य॥१॥ पइठाणे नागवसू नागसिरी नागदत्त पञ्चज्जा। एगविहारट्ठाणे 16 देवय साहू य मिडगिरे ॥२॥ कोसंवि अजियसेणे धम्मवसू धम्मघोस धम्मजसे। विगयभया विणयबई इड्ढि विभूसा य परिकम्मे ॥३॥ उजेणिऽवंतिवद्धण पालगसुय रहवदणे येव। स धारि(णि) अवंतिसेणे मणिप्पभो बच्छगातीरे ॥४॥ साएए पुंडरिए कंडरीए चेव देवि जसभदा। सावत्थि अजियसेणे कित्तिमई सुइडगकुमारो ॥५॥ जसभद्दे सिरिकता जयसंधी चेव
कण्णपाले य। नट्टविही परिओसे दाणं पुच्छा य पवजा ॥६॥ सुठ्ठ वाइयं सुदलु गाइयं सुठु नश्चियं साम सुंदरि!। अणुपालिय दीहराइओ सुमिणते मा पमायए ॥७॥ इंदपुर इंददत्ते बावीस सुया सुरिंददत्ते य। महुराए जियसत्तू सयंवरो निव्वुईए उ ॥८॥ अग्गियए पव्वयए बहुली तह सागरे य बोद्धव्वे। एगदिवसेण जाया तत्व सुरिददत्ते य ॥९॥ चंपाएँ कोसियजो अंगरिसी रूहए य आणते। पंथग जोइजसाविय जम्भकरटाणे य(ण) संबोही ॥१३९०॥ सोरिअ सुरंपरेऽविय सिट्ठीय धणंजए सुभदा या वीरे य धम्मघोसे धम्मजसेऽसो. गपुच्छा य॥१॥ सोरिय समुहविजए जसजसे व जनदत्ते य। सोमित्ता सोमजसा उंछविही नारदुष्पत्ती ॥२॥ अणुकम्पा वेयड्ढे मणिकंचण वासुदेव पुच्छा या सीमंधर जुगवाहू जुगंधरे चेव महबाहू ॥३॥ साएयम्मि महाबल विमलपहे चेव चित्तकम्मे य (परिकम्मे)। निष्फत्ति छद्रुमासे भूमीकम्मस्स करणं च॥४॥ जयरं सुदसणपुरं सुमणाए मुजस सुपए वेव। परज सिक्खमादी एगविहारे य फासणया ॥५॥ पाइलिपुत्त हुयासण जलणसिहा चेव जलणडहणे या सोहम्म पलियपणए आमलकप्पाइ णविही ॥६॥ उजेणी अंपरिसी मालग तह निबए य पवजा। संक्रमणं च परगणे अविणय विणए य पडिवत्ती ॥७॥ नगरी य पंडुमहुरा पंडववंसे मई य सुमई या वारीवसभाहणे उप्पाइय सुद्वियविभासा ॥८॥
चंपाए मित्तपम धणमित्ते धणसिरी सुजाते य । पियंगुय धम्मघोसे अरक्सुरे चेव चंदसए॥९॥ चंदजसा रायगिहे वारत्तपुरे अभयसेण वारते। सुसुमार धुंधुमारे अंगारवई य पजोए 7 १२०९ आवश्यक सनियु- मूक्तिक मूलसूत्र, Forgiar
मुनि दीपरनसागर
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