Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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सुपरिनिट्टिओ होइ। कोकासवढईविव साइसओ सिप्पसिद्धो सो॥९३०॥ इत्थी विजाऽभिहिया पुरिसो मंतुत्ति तब्विसेसोऽयं । विजा ससाहणा वा साहणरहिओ अ मंतुति ॥१॥ विजाण चक्कवट्टी विजासिद्धो स जस्स वेगापि। सिज्झिज महाविजा विजासिदजखउडुन ॥२॥ साहीणसवमंतो बहुमंतो वा पहाणमंतो वा । नेओ स मंतसिद्धो यभागरिसुव । साइसओ ॥३॥ सवेवि दवजोगा परमच्छेयरफलाऽहवेगोऽपि । जस्सह हुज सिद्धो स जोगसिद्धो जहा समिओ॥४॥ आगमसिद्धो सवंगपारओ गोमुख गुणरासी। पउरस्थो अस्थ. परो व मम्मणो अत्यसिद्धति ॥५॥ जो निचसिद्धजत्तो लद्धवरो जो व तुंडियाइन। सो किर जत्तासिद्धोऽभिप्पाओ बुद्धिपजाओ ॥६॥ विउला विमला मुहमा जम्स मई जो चरविहाए वा। बुद्धीए संपन्नो स बुद्धिसिद्धो इमा सा य ॥७॥ उत्पत्तिा वेणइआ, कम्मिया पारिणामिआ। बुद्धी चउब्विहा बुत्ता, पंचमा नोबलभए॥८॥ पुवमदिटुं अस्मुअमवे - इअ तक्खणविसुद्धगहि अत्था। अब्बाहयफलजोगिणि (गा) बुद्धी उप्पत्तिआ नाम ॥९॥भरहसिल पणिज रुक्खे खुइङग पड सरड काग उचारे। गय घयण गोल खंभे खुइटग मग्गित्यि पर पुत्ते ॥९४०॥ भरहसिल मिंढ कुकुड तिल वालुअ हस्थि अगड वणसंडे । पायस अइआ पत्ते खाडहिला पंच पिअरो अ॥१॥ महुसिथ मुदि अंके अ नाणए भिक्खु चेडग निहाणे। सिक्खा य अत्थसत्थे इच्छा य महं सयसहस्से ॥२॥ भरनित्थरणसमत्था सिवग्गसुत्तत्थगहिअपेआला। उभओलोगफलबई विणयसमुत्था हबइ बुद्धी॥३॥ निमित्ने अत्थसत्थे अलेहे गणिए अ कूब अस्से अ। गदह लक्खण गंठी अगए गणिआ य रहि ओ अ॥४॥सी साडी दीहं च तर्ण अवसव्वयं च कुंचस्स। निव्वोदए अ गोणे घोडग पडणं च रुक्खाओ ॥५॥ उवओगदिट्ठसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुकारफलवई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥६॥ हरचिए करिसए कोलिअ डोवे य मुत्ति घय पवए। तुभाग वढद पूडए अघड चित्तकारे अ॥७॥ अणुमाणहेउदिटुंतसाहिया वयविवागपरिणामा। हिअनिस्सेअसफलवई बुद्धी परिणामिआ नाम ॥८॥ अभए सिढि कुमारे देवी उदिओदए हवइ राया। साहू अनंदिसेणे धणदत्ते सावग अमचे ॥९॥ खवगे अमञ्चपुत्ते चाणक्के चेव थूलभद्दे अ। नासिकसुंदरि नंदे वहरे परिणामिआ बुद्धी ॥९५०॥ चलणाह्य आमंडे मणी अ सप्पे अ खम्गि थूभिदे । परिणामिअबुद्धीए एवमाई उदाहरणा॥१॥ न किलम्मइ जो तवसा सो तवसिद्धो दढप्पहारिव। सो कम्मक्खयसिद्धो जो सबक्खीणकम्मंसो॥२॥ दीहकालरयं जंतुकम्मं से सिअमट्टहा। सिअंधंतंति सिद्धस्स, सिद्धत्तमुवजायइ ॥३॥ नाऊण वेअणिजं अइबहुअं आउयं च थोवागं। गंतूण समुग्घायं खर्वति कम्मं निरवसेसं ॥ ४॥ दंड कवाडे मंथंतरे असाहरणया सरीरत्थे। भासाजोगनिरोहे सेलेसी सिज्झणा चेव ॥५॥जह उल्ला साडीया आसु मुक्कद विरलिया संती। तह कम्मलहुअसमए वचंति जिणा समुग्घायं ॥६॥ लाउय एरंडफले अग्गी धूमे उसू धणुविमुक्के । गइपुत्रपओगेणं एवं सिद्धाणवि गईओ ॥७॥ कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्ठिया । कहिं बोंदि चइत्ताणं, कत्थ गंतृण सिज्झई ? ॥८॥ अलोए पडिहया सिद्धा, लोगयो य पइट्टिया। इहं बॉर्दि चइत्ताणं, तत्थ गंतृण सिज्झई ॥९॥ ईसीपब्भाराए सीयाए जोयणमि लोगंतो। वारसहि जोयणेहि सिद्धी सबट्टसि. दाओ ॥९६० ॥ निम्मलदगरयवण्णा तुसारगोखीरहारसरिवना। उत्ताणयछत्तयसंठिया य भणिया जिणवरेहिं ॥१॥एगा जोयणकोडी वायालीसं च सयसहस्साई। तीसं चेव सहस्सा दो चेव सया अउणवन्नाः ॥२॥ बहुमज्मदेसभागे अट्टेव य जोअणाणि बाहर्छ। चरमंतेसु अ तणुई अंगुलऽसंखिजईभागं ॥३॥ गंतूण जोअणं जोयणं तु परिहाइ अंगुलपृहुत्तं। तीसेविअ पेरंता मच्छिअपत्ताउ तणुयअरा ॥४॥ ईसीपब्भाराए उवार खलु जोअणमि जो कोसो। कोसस्स य छम्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिा ॥५॥ तिमि सया तित्तीसा धणुत्ति
।।ज परमागाहाऽय तात कासरस छम्भाए॥६॥ उत्ताणउब पासिलउच्च अहवा निसन्नओं चंव । जो जह करेड काल सा तह उववजए सिद्धा॥ ७॥ इहभवभिनागारो कम्मवसाओ भवंतरे होइ।नयतं सिद्धस्स जओ तम्मिवि तो सो तयागारो॥८॥ तस्स ॥९॥ दीहं वा हस्सं वाजं चरमभवे हविज संठाणं। तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाणा भणिया ॥९७०॥ तिनि सया तित्तीसा घणुत्तिभागो य होइ बोद्धवो। एसा खलु सिद्धाणं उकोसोगाहणा भणिया ॥१॥ चत्तारि य रयणीओ रयणितिभागूणिया य बोदया। एसा खल सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ॥२॥ एगा य होइ रयणी अट्टेव य अंगुलाई साहीआ। एसा खलु सिद्धार्ण जहन्नओगाहणा भणिया ॥३॥ ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुंति परिहीणा। संठाणमणित्यत्वं जरामरणविप्पमुकाणं ॥४॥ जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अन्नुभसमोगाढा पुट्ठा सो य लोगते ॥५॥ फुसइ अणंते सिद्धे सवपएसेहिं नियमसो सिद्धो। तेऽवि असंखिजगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ॥६॥ असरीरा जी. वघणा उवउत्ता सणे अ नाणे य। सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥७॥ केवलनाणुवउत्ता जाणंती सवभावगुणभावे। पासंति सबओ खलु केवलदिट्ठीहिणताहि ॥८॥ नाणमि दंसणमि य इत्तो एगयरयमि उवउत्ता। सब्वस्स केवलिस्सा जुगवं दो नस्थि उवओगा ॥९॥ नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नेव (नविय) सव्वदेवाणं । जं सिद्धार्ण सुक्खं | ११९७ आवश्यक सनियु- मुक्तिकं मूलसूत्र निcिre
मुनि दीपरत्नसागर
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