Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 30
________________ सम्मन्न । नम्हा फलसंपत्ती न जुई नाणपक्लेविष०२१॥जह तिक्साईविनरो गंतु देसतरं नयविहूणो। पायेइ न त देसं नयजुत्तो चेव पाउणइ ॥१०२२॥ इय नाणचरणहीणो सम्महि. ट्ठीवि मुक्खदेसं तु। पाउणइ नेय नाणाइसंजुओ चेव पाउणइ ॥१०२३शाधम्मनियत्तमईया परलोगपरम्मुहा विसयगिदा।चरणकरणे असत्ता सेणियरायं बवाइसंति॥९॥ण सेणिओ आसि नया परम्मत्रो. न यावि पात्तिधरो न पायगो। सो आगमिस्साइ जिणो भविस्सई, समिक्ख पनाह वर सदसणं ॥११७०॥ भट्टेण परित्ताओ सटठयरं दसणं गहेया। सिजति चरणरहिया सणरहिया न सिमंति॥१॥ दसारसीहस्सय सेणियस्सा, पेढालपुत्तस्स य सञ्चइस्स। अणुत्तरा दसणसंपया तया, विणा चरितेणहरं गई गया ॥२॥ समाओवि गईओ अविरहिया नाणदसणधरेहि। ता मा कासि पमार्य नाणेण चरित्तरहिएणं ॥३॥ सम्मतं अचरित्तस्स हुज भयणाइ नियमसो नत्थि। जो पुण चरितजुत्तो तस्स उ नियमेण सम्मत्तं ॥४॥ जिणवयणबाहिरा भावणाहिं उग्रहणं अयाणंता। नेहयतिरियएगिदिएहिं जह(नहु)सिज्झाई जीवो॥५॥ सुविसम्मदिट्ठीन सिजाई चरणकरणपरिहीणो। जंचेव सिद्धिमूलं मूढो तं चेव नासेइ ॥६॥दसणपक्खो सावय चरितभडे य मंदधम्मे या दंसणचरित्तपक्खो समणे परलोगकंखिम्मि ॥७॥ पारंपरप्पसिद्धी दसणनाणेहि होइ चरणस्स। पारंपरप्पसिद्धी जह होइ नहऽषपाणाणं ॥८॥ जम्हा सणनाणा संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं । चारित्तजुया दिति उ चिसिस्सए तेण चारितं ॥९॥ उजममाणस्स गुणा जह हुंति ससत्तिओ नवसुएसुं । एमेव जहासत्ती संजममाणे कहं न गुणा १ ॥११८०॥ अणिगृहंतो विरियं न विराहेह चरणं तवसुएसुं। जइ संजमेऽपि विरियं न निगूहिजा न हाविजा ॥१॥ संजमजोएसु सया जे पुण संतविरियावि सीयंति। कह ने विसुदचरणा बाहिरकरणालसा हुँति ? ॥२॥ आलंबणेण केणइ जे मन्ने संजमं पमायंति। न हुतं होइ पमाणं भूयस्थगवेसणं कुजा ॥३॥ सालंबणो पडतो अप्पाणं दुग्गमेऽवि धारेइ । इय सालंबणसेवा धारेइ जई असदभावं ॥४॥ आलंबणहीणो पुण निवडइ खलिओ अहे दुरुत्तारे। इय निकारणसेवी पडइ भबोहे अगाहमि ॥५॥जे जत्य जया भग्गा ओगासं ते परं अविंदंता। गंतुं तत्यऽचर्यता इमं पहाणंति घोसति ॥६॥ नीयावासविहारं चेइयभत्ति च अजियालाभं। विगईसु य पडिबंध निदोसं चोइया विति ॥७॥ जाहेविय परितंता गामागरनगरपट्टणमड़ता। तो कहनीयवासी मंगमधेरं बवासंति ॥८॥ संगमधेरायरिओ सठ तबस्सी तहेच गीयस्थो। पेहिता गुणदोसं नीयावासं पवनो उ॥९॥ओमे सीसपवासं अप्पडिबंध अजंगमत्तं चान गर्णति एखित गणंति वासं निययवासी ॥११९०॥ चेदयकुलगणसंघे अन्न वा किंचि काउ निस्साणं । अहवावि अजवयर तो सेवंती अकरणिज ॥१॥ चेइयपूया किं वयरसामिणा मुणियपुखसारेणं । न कया पुरियाइ ? तओ मुक्संग सावि साहूर्ण ॥२॥ ओहावणं परेसिं सतित्वउम्भावणं च वच्छल । न गणति गणेमाणा पुबुश्चियपुष्फमहिमं च ॥३॥ अजियलाभे गिद्धा सएण लाभेण जे असंतुट्ठा। भिक्खायरियाभग्गा अन्नियपुत्तं ववइसंति ॥४॥ अन्नियपुत्तायरिओ भत्तं पाणं च पुष्फलाए। उवणीयं भुंजतो तेणेव भवेण अंतगडो॥५॥ गयसीसगण, ओमे भिक्खायरियाअपचलं येरं। न गणति सहावि सढा अजियलाहं गवेसंता॥६॥ भत्तं वा पाणं वा भुतृणं लावलवियमविमुई। तो वजपडिच्छन्ना उदायणरिसिं ववइसति ॥७॥ सीयललक्खाणुचियं वएस विगईगयेण जावितं । हट्टावि भणति सदा किं आसि उदायणो न मुणी? ॥८॥ सुत्तत्ववालवुड्ढे य असहू दवाइआवईओ य। निस्साणपर्य काउं संघरमाणावि सीयंति ॥९॥ आलंबणाण लोगो भरिओ जीवस्स अजउकामस्स । जं जं पिच्छइ लोए तं तं आलंबणं कुणइ ॥१२००॥ जे जत्थ जया जइया बहुस्सुया चरणकरणपभट्ठा। जं ने समायरंती आलंवण मंदसड्ढाणं ॥१॥ जे जत्थ जया जइया बहुस्सुया चरणकरणसंपना। जं ते समा. यरंती आलंपण तिवसड्ढाणं ॥२॥ दंसणनाणचरित्ते तवविणये निच्चकालपासत्था। एए अवदणिजा जे जसघाई पवयणस्स ॥३॥ किइकम्मं च पसंसा सुहसीलजणम्मि कम्मबंधाय। जे जे पमायठाणा ते ते उववृहिया हुंति ॥४॥ दसणनाणचरिते तवविणये निचकालमुजुत्ता। एए उ वंदणिज्जा जे जसकारी पक्यणस्स ॥५॥ किइकम्मं च पसंसा संविग्गजणमि निजरवाए । जे जे विरईठाणा ते ते उपवूहिया हुंति ॥६॥ आयरिय उवज्झाए पवत्ति थेरे तहेव रायणिए। एएसिं किइकम्मं कायनं निजरवाए ॥७॥ मायरं पियरं वावि, जिट्ठगं वावि भायर। किनकम्मं न कारिजा, सधे राइणिए तहा ॥८॥ पंचमहन्वयजुत्तो अणलस माणपरिवज्जियमईओ। संविग्गनिजरट्ठी किइकम्मकरो हबइ साहू॥९॥ वक्खित्तपराहुते य पमत्ते मा कयाइ बंदिज्जा। आहारं च करिते नीहारं वा जइ करेइ ॥१२१०॥ पसंते आसणत्थे य, उवसंते उवहिए। अणुनवित्तु मेहावी, किईकम्मं पउंजए ॥१॥ पडिकमणे सझाए काउस्सग्गावराहपाहुणए। आलोयणसंचरणे उत्तमढे य बंदणयं ॥२॥ चत्तारि पडिकमणे किइकम्मा तिमि इंति सज्झाए। पत्रण्हे अपरण्हे किडकम्मा पाउदस हवंति ॥३॥ ओणयं अहाजायं, किइकम्म बारसावयं । चउस्सिरं तिगुत्तं च, दुपवेसं एगनिक्खमणं ॥४॥ अवणामा दुलहाजायं, आवत्ता बारसेव उ। सीसा चत्तारि गुत्तीओ, तिनि दो य पवेसणा ॥५॥ एगनिक्समणं चेव, पणवीस वियाहिया। आवस्सगेहिं परिसुद्धं, किइकम्मं जेहिं कीरई ॥६॥ किइकम्मपि करितो न होइ किइकम्मनिजराभागी। पणवीसामनयरं साह ठाणं विराहतो १२०३ आवश्यकं सनियु- सूक्तिकं मूलसूत्र, forjilert मुनि दीपरत्नसागर

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