Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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अववाहं उवगयाणं ॥ ९८० ॥ सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्वापिंडियं अनंतगुणं न य पावइ मुत्तिमुहं णंताहित्रि वग्गवम्गूहिं ॥ १ ॥ सिद्धस्स सुहो रासी सङ्घदापिंडिओ जइ हविना सो नवग्गभइओ सव्यागासे न माइजा ॥ २ ॥ जह नाम कोइ मिच्छो नगरगुणे बहुविहे विआणतो न चएइ परिकहेउं उवमाइ नहिं असंतीए ॥ ३ ॥ इअ सिद्धाणं सुक्खं अणोवमं नन्थि तस्स ओवम्मं किंचि विसेसेणिनो सारिक्खमिणं सुणह वृच्छं ॥ ४ ॥ जह सव्वकामगुणिअं पुरिसो मोनून भोअणं कोई तव्हाछुहाविमुको अच्छिन जहा अभिजननो ॥ ५ ॥ इअ सव्वकालतित्ता अडलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्याबाहं चिति सुही सुहं पत्ता ॥ ६ ॥ सिद्धति अ बुद्धत्ति अ पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुककम्मकवया अजरा अमरा असंगाय ॥ ७ ॥ निच्छिन्नसय्यदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का अव्वाबाहं सुक्खं अणुती सासयं सिद्धा ॥ ८ ॥ सिद्धाण नमुकारो जीव मोएइ भवसहम्सा भावेण कीरमाणो होई पुण बोहिलाभाए ॥ ९ ॥ सिद्धाण नमक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं हिअयं अणुम्मुतो विमुनिआवारओ होइ ॥ ९९० ॥ सिद्धाण नमक्कारी एवं खलु वण्णिओ महन्थुति । जो मरणमि उगे अभिक्खणं कीरए बहुसो ॥ १ ॥ सिद्धाण नमकारो, सङ्घपावप्पणासणी मंगलाणं च सचेसिं. विइअं हवद मंगलं ॥ २ ॥ नामं लवणा दविए भावमि चउडिहो उ आयरिओ। दर्शमि एगभविआइ लोइए सिप्पसत्थाई ॥ ३ ॥ पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पभासंता आयारं दसता आयरिया तेण वञ्चति ॥ ४ ॥ आयारो नाणाई तम्सायरणा भासणाओ वा जे ने भावायरिया भावायारोवउत्ता य ॥ ५ ॥ आयरियनमोकारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होई पुण बोहिलाभाए ॥ ६ ॥ आयरियनमोकारो धन्ना भवक्यं कुर्णताणं । हिअयं अणुम्मुतो विद्युत्तिआवारओ होइ ॥ ७॥ आयरियनमोकारो एवं खलु बचिओ महत्योत्ति जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरई बहुसो ॥ ८ ॥ आयरिनमोकारो, सवपावप्पणासणी मंगलाणं च सव्वेसिं, तइयं हवइ मंगलं ॥ ९ ॥ नामं ठवणा दविए भावंमि चउब्विहो उवज्झाओ दबे लोइअ सिप्पाइ निण्हगा वा इमे भावे ॥ १००० ॥ बारसंगो जिणक्खाओ सज्झाओ देसि (कहि) ओ बुहेहिं तं उवहसंति जम्हा उज्झाया तेण बुचति ॥ १॥ उत्ति उवओगकरणे ज्झत्ति अ झाणस्स होइ निदेसे। एएण हुनि उज्झा एसो अनोवि पजाओ ॥ २ ॥ उनि उवओगकरणे वत्ति अ पावपरिवजणे होइ झति अ झाणस्स कए उत्ति अ ओसकणा कम्मे ॥३॥ उ ( ब ) ज्झायनमोकारो जीवं मोएड भव. सहस्साओ। भावेण कीरमाणो होई पुण बोहिलाभाए ॥ ४॥ उ ( ब ) ज्झायनमोकारो घण्णाण भवक्खयं कुणं ( करं) ताणं हिअयं अणुम्मुअतो विसुत्तिआवारओ होइ ॥ ५ ॥ उवज्झायनमोकारो एवं खलु पनिओ महत्थोत्ति जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरई बहुसो ॥ ६ ॥ उवज्झायनमोकारो, सव्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सचेसिं चडत्यं हवइ मंगलं ॥ ७ ॥ नामंठवणासाह] दशसाहू य भावसाह य दवमि लोइआई भावंमि य संजओ साहू ॥ ८ ॥ घटपटरहमाईणि उ साहंता हुति दवसाहुति अवावि भूते ती (नायत्रा) दव साहति ॥ ९ ॥ निवाणसाहए जोए. जम्हा साहंति साहुणो समाय सङ्घभूएसुं तम्हा ते भावसागुणो ॥ १०१०॥ किं पिच्छसि साहूणं तवं व नियमं व संजमगुणं वा तो बंदसि साहूणं? एवं मे पुच्छिओ साह ॥ १ ॥ विसयसुहनिअत्ताणं विसुद्धचारित्तनिअमजुत्ताणं तमगुणसाह्याणं सदायकिचुजयाण नमो ॥ २ ॥ असहाइ सहायनं करंति मे संजम करितस्स । एएण कारणेणं नमामिऽहं सङ्घसाहूणं ॥ ३ ॥ साहूण नमोकारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होई पुण बोहिला भाए ॥ ४ ॥ साहूण नमोकारो चचाण भवक्त्रयं कुर्णताणं । हिययं अणुम्मुतो विमुत्तिआवारओ होइ ॥ ५ ॥ साहूण नमोकारो एवं खलु वचिओ महत्थोति । जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरई बहुसो ॥ ६ ॥ साहूण नमोकारो, सहपावप्पणासणो । मंगलाणं च सवेसिं, पंचमं हवइ मंगलं ॥ ७ ॥ नवि संखेवो न बित्थरों संखेवो दुविह सिद्धसाहूणं विस्थाओंऽणेगविहो पंचविहो न जुजई तम्हा ॥ ८ ॥ अरहंताई नियमा साहू साहू व तेसु भइया । तम्हा पंचविहो खलु हेउनिमित्तं हवइ सिद्धो ॥ ९ ॥ पुत्राणुपुब्वि न कमो नेव य पच्छाणुपुच्वि एस भवे सिद्धाईओ पढमो बीआए सादृणी आई || १०२० ॥ अरहंतुवएसेणं सिद्धा नजति तेण अरिहाई न य कोइवि परिसाए पणमित्ता पणमई रण्णो ॥ १ ॥ इत्थ य पओअणमिणं कम्मखओ मंगलागमो चैव । इहलोअपारलोइअ दुहि फलं तत्थ दिता ॥ २ ॥ इहलोइ अत्थकामा आरुगं अभिरई य निष्फक्त्ती सिद्धी य सग्गसुकुलप्पचायाई य परलोए ॥ ३ ॥ इहलोगंमि निदंडी सादिव्वं माउलिंगवणमेव । परलोग चंडपिंगल इंडिअजक्खो य दिहंता ॥४॥ नमुकारनिज्जुत्ती समत्ता नंदिअणुओगदारं विविदुवग्याइयं च नाऊणं काऊण पंचमंगल आरंभो होइ सुनस्स ॥ ५ ॥ कयपंचनमुकारो करेइ सामाइयंति सोऽभिहिओ सामाइअंगमेव य जं सो सेसं तओ वुच्छं ॥ ६ ॥ सुतं करेमिं भंते! सामाइयं, सवं सावळं जोगं पथक्खामि जावजीवाए तिविहंतिविहेणं, मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते! पटिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि सू० १। 'अक्खलिजसंहिआई वक्खाणचउकए दरिसिअंमि सुत्तफासिजनिजुत्तिवित्यरत्थो इमो होइ ॥ ७ ॥ करणे भए य अंते सामाइय सङ्घए अवजे य जोगे पञ्चक्खाणे जावजीवाइ तिविहेणं ११९८ आवश्यकं सनिर्यु- सूक्तिकं मूलसूत्र, निधिng अन्याय- १
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मुनि दीपरत्नसागर
PERSPERIMPORDIKARPESADESTAND
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