Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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कारयकरणाण य अन्नमणन्नंच अक्लेवो ॥६॥ आया हु कारओ मे सामाइय कम्म करणमाया य। परिणामे सइ आया सामाइयमेव उ पसिद्धी ॥ ७॥ एगत्ते जह मुर्व्हि करेइ अत्यंतरे पडाईणि। दव्यत्यतरभावे गुणस्स कि केण संबद्ध ? ॥८॥ नाम ठपणा दविए आएसे निरवसेसए वा तह सवयत्तसम्यं च भावसव्वं च सत्तमयं ॥९॥ दविए चउरी भंगा सवमसब्वे य दव्वदेसे याआएससव्वगामीनीसेसे सबर्ग दुविद ॥१८६॥ भाग अणिमिसिणो सव्वसुरा सव्वापरिसेससवर्ग एकातदेसापरिसेसं सन्ने काला जहा असुरा ॥ ७॥ सा हवाह सव्वधना दुपडोआरा जिआ य अजिआ य । दव्वे सव्वघडाई सव्वधत्ता पुणो कसिणं ॥८॥ भावे सबोदइओदयलक्खणओ जहेव तह सेसा। इत्थ उ खओवसमिए अहिगारोऽसेससव्वे य॥१८९॥ भागकम्ममवज जंगरहि ति कोहाइणो व चत्तारि।सह तेण जो उ जोगो पञ्चक्खाणं हवइ तस्स ॥१०५०॥ दब्वे मणवइकाए जोगा दव्या दुहा उ भावंमि।जोगो सम्मत्ताई पसस्थ इअरो उ विवरीओ ॥ १॥ दव्बंमि निहगाई निम्चिसयाई य होइ सितंमि । भिक्खाईणमदाणे अइच्छ भावे पुणो दुविहं ॥२॥ सुअणोसुअ सुअ दुविहं पुवमपुत्र तु होई नायव्वं । नोसुअपचक्खाणं मूले तह उत्तरगुणे य॥३॥ जावदवधारणमि जीवणमवि पाणधारणे भणियं । आ पाणधारणाओ पावनिवित्ती रहं अत्थो ॥४॥ नाम ठवणा दविए ओहेल भव नम्भवे य भोगे य। संजम जस कित्तीजीवियं च तं भण्णई दसहा ॥५॥ दव्ये सचित्ताई आउअसहब्बया भवे ओहे । नेरहयाईण भवे तम्भव तत्थेव उप्पत्ती ॥१९०॥ भाय। भो. गंमि पकिमाई संजमजीयं तु संजयजणस्स । जसकिनी य भगवओ संजमनरजीवअहिगारो॥१॥ भाष्य। सीआलं भंगसयं तिविहं तिविहेण समिइगुत्तीहिं। मुत्तफासिअनिजुनिवित्थरत्यो गओ एवं ॥६॥ सामाइअं करेमी पञ्चक्खामी पडिकमामित्ति। पच्चुप्पन्नमणागयअईअकालाण गहणं तु ॥७॥ तिविहेणंति न जुनं पडिवयविहिणा समाहि जेण । अत्थविगप्पणयाए गुणभावणयत्ति को दोसो ? ॥८॥ दवम्मि निष्हगाई कुलालमिच्छंति तत्थुदाहरण। भावंमि तदुवउत्तो मिआवई तत्थुदाहरणं ॥९॥ सचरित्तपच्छयावो निंदा तीए चउकनिक्खेवो । दवे चित्तयरसुआ भावेसुबहू उदाहरणा॥१०६०॥ गरहावि तहाजाइअमेव नवरं परप्पगासणया। दामि मरुअनायं भावेसु बहू उदाहरणा ॥१॥दवविउस्सग्गे खलु पसमचंदो भवे उदाहरणं । पडिआगयसंवेगो भावंमिविहोइ सो चेव ॥२॥ सावजजोगविरजो तिविहंतिविहेण बोसिरिय पावै । सामाइअमाईए एसोऽणुगमो परिसमत्तो ॥३॥ विजा. चरणनएस सेससमोआरणं तु काय । सामाइअनिजुत्ती सुभासिअत्था परिसमत्ता ॥४॥ नायंमि गिहियो अगिहिम्मि चेव अस्थंमि। जइअवमेव इय जो उवएसो सो नओ नाम ॥५॥ सव्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तब्वयं निसामित्ता। तं सव्वनयविसुद्धं जं चरणगुणहिओ साहू॥६॥ सामाइयनिजुत्ती समत्ता । चउवीसगत्ययस्स उ णिक्खेबो होइ णामणिप्फ. पणो । चउवीसगस्स छको थयस्स उ चउधिहो होइ ॥ ७॥ नाम ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य । चउवीसगस्स एसो निक्खेवो छब्विहो होइ ।। १९२॥ भाप्यं । नाम ठवणा दविए भावे य थयस्स होइ निक्खेवो। दव्वथओ पुष्फाई संतगुणुक्त्तिणा भावे॥३॥ दव्वथओ भावथओ दवयओ बहुगुणत्ति बुद्धि सिआ। अनिउणमइवयणमिणं छज्जीवहिलं जिणा चिंति ॥ ४ ॥ छजीवकायसंजमु दब्बयए सो विरुज्झई कसिणो । तो कसिणसंजमविऊ पुष्फाईज न इच्छंति ॥ ५॥ अकसिणपवत्तगाणं विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो।
संसारपयणुकरणो दव्वथए कृवदिटुंतो॥१९६॥ भाप्यं । लोगस्सुजोयगरे, धम्मतित्ययरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं, चाउचीसपि केवली ।। सूत्रगाथा १॥णामं ठवणा दविए खिने काले 2 भवे य भावे य। पजवलोगे य तहा अट्ठविहो लोगणिक्खेवो ॥१०६८ ॥ जीवमजीवे रूवमरूवी सपएसमप्पएसे य। जाणाहि दव्वलोगं णिच्चमणिचं च जं दव्वं ॥ ७॥ भाप्यं ।
गइ सिद्धा भविआया अभविज पुग्गल अणागयडा य । तीजद्ध तिथि काया जीवाजीवडिई चउहा ॥८॥ आगासस्स पएसा उड्दं च अहे य तिरियलोए य । जाणाहि खित्तलोग अणंतजिणदेसि सम्मं ॥९॥ समयाऽऽचलिअमुहुत्ता दिवसमहोरत्त पक्ख मासा य । संवच्छरजुगपलिआ सागरओसप्पिपरिअट्टा ॥२००॥ रहअदेवमणुआ तिरिक्वजोणीगया य जे सत्ता। तमि भवे वटुंता भवलोगं तं विआणाहि ॥१॥ ओदइए उपसमिए खइए य तहा खओवसमिए य। परिणामि सन्निवाए य छबिहो भावलोगो उ ॥२॥ तिको रागो य दोसो य, उइन्ना जस्स जंतुणो। जाणाहि भावलोयं तं, अणंतजिणदेसियं सम्मं ॥३॥ दव्वगुणखित्तपजवभवाणुभावे य भावपरिणामे। जाण चाउविहमेयं पजवलोगं समासेणं ॥४॥ वन्नरसगंधसंठाणफासठाणगइवन्नभेए या परिणामे यबहुविहे पजवलोग विआणाहि॥२०५शामा०।आलुक्कड य पलक्कड लुकाइसंलुकईयएगट्ठा। लोगो अट्ठविहोखलु तेणेसो वुबई लोगो ॥९॥ दुविहो खलु उजोओ नायब्बो दवभावसंजुत्तो। अग्गी दजुजोओ चंदो सूरो मणी विजू ॥१०७०॥ नाणं भावुजोओ जह भणियं सबभावदसीहिं। तस्स उवओगकरणे भावुजोयं वियाणाहि ॥ १॥ लोगस्सुजोयगरा दाजोएण न हु जिणा हुँति। भावुज्जोअगरा पुण हुँति जिणवरा चउवीसं ॥२॥ दखुजोउज्जोओ पगासई परिमियम्मि खित्तंमि। भावुजोउजोओ लोगालोग पगासेइ ॥३॥ दुह दवभावधम्मो दवे दश्वस्स दव्यमेवऽहवा। तित्ताइसभावो वा गम्माइत्थी कुलिंगो वा ॥४॥ दुह होइ भावधम्मो सुय चरणे वा सुयंमि सज्झाओ। चरणमि समणधम्मो खेतीमाई भये दसहा ॥५॥ नाम ठवणातित्थं दव्वतित्थं च भावतित्यं च। एकेकंपिय इत्तोऽणेगविहं होइ णायव्वं ॥६॥ दाहोवसमं तण्हा- (३००) १२०० आवश्यकं सनियु- सूक्तिक मूलसूत्रं निnि +Jhatrani-t.
नदीपरवसागर
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