Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 18
________________ तत्तो भवे असीई य। एवं च सयं तत्तो तेसीई पंचणउई य ॥ ५॥ अट्टत्तरिं च वासा तत्तो बावन्तरिं च वासाई बावट्ठी चत्ता खलु सवगणहराउयं एयं ॥ ६ ॥ स य माहणा जच्चा, स अज्झावया विऊ। सङ्खे दुवालसंगी य, सवे चोदसपुत्रिणो ॥ ७॥ परिणिडया गणहरा जीवंते णायए णव जणा उ इंदभूई सुहम्मो य रायगिहे निहुए वीरे ॥ ८ ॥ मासं पाओवगया स. वेऽविय सवलद्धिसंपण्णा । क्लरिसहसंघयणा समचउरंसा य संठाणा ॥ ९ ॥ दवे अद्ध अहाउय उनकमे देस कालकाले य। तह य पमाणे वण्णे भावे पगयं तु भावेणं ॥ ६६० ॥ चेयणमचेयणस्स व दवस ठिई उ जा चउवियप्पा सा होइ दशकालो अड्वा दवियं तु तं चैव ॥ १ ॥ गइ सिद्धा भवियाया अभविय पोग्गल अणागयदा य तीयद तिमि काया जीवाजीवट्टिई चउहा ॥ २॥ समयाऽऽवलिय मुहुत्ता दिवसमहोरत पक्ख मासा य। संवच्छर युग पलिया सागर ओसप्पि परियट्टा ॥ ३ ॥ नेरइयतिरियमणुयादेवाण अहाउयं तु जं जेण । निश्वनियमण्णभवे पार्लेति अहाउकालो सो ॥ ४ ॥ दुविहोबकमकालो सामायारी अहाउयं चैव सामायारी तिविहा आहे दसहा पयविभागे ॥ ५ ॥ ओहनिजुत्ती एत्थ पएसे भाणियथा । इच्छा मिच्छा तहाकारो, आवसिया य निसीहिया। आपुच्छणा य पढिपुच्छा, छंदणा ये नियंतणा ॥ ६ ॥ उवसंपया य काले सामायारी भवे दसविहा उ। एएसिं तु पयाणं पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥ ७॥ जइ अग्भत्वेज परं कारणजाए करेज से कोई तत्यवि इच्छाकारो न कप्पइ बलाभिओगो उ ॥८॥ अन्भत्यिजइ (अच्भुवगयंमि) नजइ अब्भत्थे ण वट्टइ परो उ । अणिगृहियबलविरिएण साहुणा ताव होय ॥९॥ जइ हुज तस्स अणलो कज्जस्स वियाणती ण वा वार्ण। गिलाणा (गेलना) इहि व हुज्जा वियावडो कारणेहिं सो ॥ ६७० ॥ राइणियं वज्जेत्ता इच्छाकारं करेइ सेसाणं एवं मज्जनं कर्ज तुम्भे उ करेह इच्छाए ॥ १ ॥ अहवाऽवि विणार्सेतं अन्मत्यंतं च अण्ण दद्रूणं। अण्णो कोइ भणेजा तं साहुं णिज्जरट्टीओ ॥ २ ॥ अहह्यं तुब्भं एवं करेमि कर्ज तु इच्छकारेण । तत्यऽवि सो इच्छं से करेइ मज्जायमूलियं ॥ ३ ॥ अहवा सयं करेन्तं किंची अण्णस्स वावि दद्रूणं तस्सवि करेज इच्छं मज्झपि इमं करेहित्ति ॥ ४ ॥ तत्थवि सो इच्छं से करेइ दीवेइ कारणं वाऽवि । इहरा अणुग्गहत्यं काय साहुणो किचं ॥ ५ ॥ अहवा णाणाईर्ण अट्ठाए जइ करेज किञ्चाणं । वेयावचं किंची तत्थवि तेसिं भवे इच्छा ॥ ६ ॥ आणायलाभिओगो णिग्गंयाणं ण कप्पई काउं इच्छा पउंजिया सेहे राईणिए (य) तहा ॥ ७ ॥ जह जबबाहलाणं आसाणं जणवएस जायाणं सयमेव खलिणगहणं अह वावि बलाभिओगेणं ॥ ८ ॥ पुरिसज्जाएऽवि तहा विणीयविजयंमि नत्थि अभिओगो सेसंमि उ अभिओगो जणवयजाए जहा आसे ॥ ९ ॥ अन्मत्थणाएँ मरुओ वानरओ चेव होइ दितो गुरुकरणे सयमेव उ वाणियगा दुष्णि दिता ॥ ६८० ॥ संजमजोए अम्भुट्टियस्स सदाऍ काउकामस्स । लाभो चैव तवस्सिस्स होइ अदीणमणसस्स ॥१॥ संजमजोए अच्भुद्वियस्स जंकिंचि वितमायरियं मिच्छा एवंति वियाणिऊण मिच्छत्ति काययं ॥ २ ॥ जइ य पडिकमियां अवस्स काऊण पावयं कम्मं तं चैव न कायव्वं तो होइ पए पडिकंतो ॥ ३ ॥ जं दुक्कडंति मिच्छा तं भुजो कारण अपूरेंतो। तिबिहेण पडितो तस्स खलु दुकडं मिच्छा ॥ ४ ॥ जं दुकडंति मिच्छा तं चैव निसेवाए पुणो पावं पञ्चक्खमुसाबाई मायानियडीपसंगो य ॥ ५ ॥ मित्ति मिउमदवत्ते छत्ति य दोसाण छायणे होइ। मित्ति य मेराऍ ठिओ दुत्ति दुर्गुछामि अप्पाणं ॥ ६ ॥ कति कडं मे पावं इति य डेवेमि तं उवसमेणं। एसो मिच्छावुकडपयक्खरत्यो समासेणं ॥ ७॥ कप्पाकप्पे परिणिट्टियस्स ठाणेसु पंचसु ठियस्स संजमतवड्ढगस्स उ अविकप्पेणं तहाकारो ॥ ८॥ वायणपडिसुणणाए उबएसे मुत्तअत्थकहलाए। अवितहमेयंति तहा पडिसुणणाए तहक्कारो ॥ ९ ॥ जस्स य इच्छाकारो मिच्छाकारो य परिचिया दोऽवि । तइओ य तहक्कारो न दुइभा सोग्गई तस्स ॥ ६९० ॥ आवस्सियं च णितो जं च अतो निसीहियं कुणइ एवं इच्छं नाउं गणिवर! तुब्भंतिए णिउणं ॥ १ ॥ आवस्सियं च णिंतो जं च अहंतो णिसीहियं कुणइ वंजणमेयं तु दुहा अत्थो पुण होइ सो चैव ॥ २ ॥ एगम्गस्स पसंतस्स न होंति इरियाइया गुणा होंति । गंतव्वमवस्सं कारणमि आवस्सिया होइ ॥ ३ ॥ आवस्सिया उ आवस्सएहिं सव्वेहिं जुत्तजोगिस्स । मणत्रयकायगुतिदियस्स आवस्सिया होइ ॥ ४ ॥ सेजं ठाणं च जहिं चेएइ तहिं निसीहिया होइ। जम्हा तत्य निसिद्धो तेणं तु निसीहिया होइ ॥ ५ ॥ सेज्जं ठाणं च जदा चेतेति तया निसीहिया हो। जम्हा तदा निसेहो निसेहमइया य सा जेणं ॥ ६ ॥ आवस्सियं च णितो जं च अहंतो निसीहियं कुणइ सेज्जाणिसीहियाए णिसीहियाअभिमुहो होइ ॥ १२० ॥ भाष्यं । जो होइ निसिद्धप्पा निसीहिया तस्स भावओ होइ। अणिसिद्धस्स निसीहिय केवलमेतं हवइ सदो ॥ १ ॥ आवस्सयंमि जुत्तो नियमणिसिद्धोत्ति होइ नायव्वो । अहवाऽवि णिसिद्धप्पा नियमा वस्सए जुत्तो ॥ १२२ ॥ भाव्यं । आपुच्छणा उ कज्ञे पुण्वनिसिद्धेण होइ पडिपुच्छा। पुव्वगहिएण छंदण णिमंतणा होयऽगहिएणं ॥ ७॥ उवसंपया य तिविहा णाणे तह दंसणे चरित्ते य। दंसणणाणे तिविहा दुविहा य चरितअट्ठाए ॥ ८ ॥ वत्तणा संघणा चैव, गहणे सुत्तत्थतदुभए। वैयावचे य स्वमणे, काले आवकहाइ य ॥ ९ ॥ संदिट्ठो संदिहस्स चेव संपज्जई उ एमाई। चउभंगो एयं पुण पढमो भंगो हवइ सुद्धो ॥ ७०० ॥ अधिरस्स पुण्बगहियस्स वत्तणा जं इहं थिरीकरणं तस्सेव पएसंतरणट्ठस्सऽणुसंघणा घडणा ॥ १ ॥ णं पढ ११९१ आवश्यक सनिर्यु- सूक्तिकं मूलसूत्रं नियुक्ति 1 मुनि दीपरत्नसागर

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