Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 20
________________ मीसा य लक्खणं कहए। तेऽपि णिसामिनि नहा पाउलक्खणसंजुयं चेव ॥३॥णेगमसंगहववहारुज्जुमुए चेव होइ बोदवे। सद य समभिरूढ़े एवंभूए य मूलणया ॥४॥णेगेहिं माणेहिं मिणइनी णेगमस्स कत्ती। सेसाणपि णयाणं लक्खणमिणमो सुणह वोच्छं ॥५॥ संगहियपिडियत्यं संगहवयणं समासओ ति। वह पिणिपिछयत्वं ववहारो सबवेमुं ॥६॥ पचुप्पण्णग्गाही उज्जुमुओ नयविही मुणेयचो। इच्छद विसेसियतरं पचुप्पण्णं णओ सदो॥७॥ वत्यूओ संकमणं होइ अवत्यू णए समभिरुडे। बंजणमत्यतदुभयं एवंभूओ विसेसेइ ॥८॥ एकेको य सयविहो सत्त णयसया हवंति एमेव । अण्णोऽवि य आएसो पंचेव सया नयाणं तु ॥ ९॥ एएहिं दिट्ठिवाए परूवणा सुत्तअत्थकहणा या इह पुण अणम्भुवगमो अहिगारो तिहि उ ओस ॥७६०॥णस्थि णएहिं बिहूर्ण सुतं अत्यो व जिणमए किंचि । आसज उ सोयारं गए णविसारओ या ॥१॥ मूढनइयं सुयं कालियं तु ण णया समोयरंति इहं। अपुहुने समोयारो नत्षि पुरते समोयारो॥२॥ जावंति अजवारा अपुडुत्तं कालियाणुओगस्स। तेणारेण पुरतं कालियमुन दिद्विवाए य॥३॥ तुंबवणसंनिवेसाउ निग्गयं पिउसगासमालीणं । छम्मासियं छसु जयं माऊय समशियं वंदे ॥४॥ जो गुज्मएहिं वालो णिमंतिजो भोयणेण वासंते। गेच्छा विणीयविणओ तं वइररिसिं णमंसामि ॥५॥ उजेणीए जो जंभगेहि आणक्खिऊण युयमहिओ। अक्खीणमहाणसियं सीहगिरिपसंसिर्य वंदे ॥६॥ जस्स अणुनाए वायगत्तणे दसपुरंमि नयरंमि। देवेहिं कया महिमा पयाणुसार नमंसामि ॥ ७॥ जो कमाइ धणेण य निमंतिओ जुरणमि गिहवाणा । नयरम्मि कुसुमनामे तं वइररिसिं नमसामि ॥८॥ जेणुदरिया विजा आगासगमा महापरिवाओ। वंदामि 7 अजवर अपच्छिमो जो सुबहार्ण ॥९॥ भणइ अ आहिंडिजा जंबुद्दीर्व इमाइ विजाए। गंतुंच माणुसनर्ग विजाए मए विजा। अप्पिढिया उ मणुआ होहिंति अओ परं अग्ने ॥१॥ माहेसरीउ सेसा पुरिअं नीआ हुआसणगिहाओ। गयणयलमइवइत्ता वइरेण महाणुभागेण ॥२॥ अपुहुने अणुओगो चत्तारि दुवार भासई एगो। पुहयाणुओगकरणे ते अत्य तओ उ खुच्छिन्ना ॥३॥ देविंदवंदिएहिं महाणुभागेहिं रक्खिअजेहिं । जुगमासज विभत्तो अणुओगो तो कओ चउहा ॥४॥ माया य कहसोमा पिआ य नामेण सोमदेवृत्ति। भाया य फग्गुरक्खिय तोसलिपुत्ता य आयरिया॥५॥ निजवण भहगुत्ते वीसुं पढणं च तस्स पुव्वगर्य। पव्याविओ य भाया रक्खिअखवणेहिं जणओ य ॥६॥ कालियसुर्य च इसिभासियाई तइओ य सूरपण्णत्ती। सब्बो य दिहिवाओ चउत्थओ होइ अणुओगो॥१२४॥भा०ा जं च महाकप्पमुयं जाणि य सेसाणि ठेयसुत्नाणि। चरणकरणाणुओगोत्ति कालियत्ये उवगयाई ॥७॥ बहुरय पएस अव्वत्त समुच्छ दुग तिग अबद्धिया चेव । सत्तेए णिहगा खल तित्थंमि उ बदमाणस्स ॥८॥ बहुस्य जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुत्ताओ। अब्वत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ॥९॥ गंगाओ दोकिरिया छलुगा तेरासियाण उत्पत्ती। थेरा य गोट्ठमाहिल पुट्ठमबद्धं परू. विति ॥ ७८०॥ सावत्थी उसमपुर सेयविया मिहिल उगातीरं। पुरिमंतरंजि दसपुर रहवीरपुरं च नगराई ॥१॥ चोहस सोलस वासा चोइस वीसुत्तरा य दोण्णि सया। अट्ठावीसा य दुवे पंचेव सया उ चोयाला ॥२॥ पंचसया चुलसीया छच्चेव सया णवोत्तरा होति। णाणुप्पत्तीय दुवे उप्पण्णा णित्रुए सेसा ॥३॥ चोइस वासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स णाणस्स। तो बहुरयाण दिट्ठी सावत्थीए समुप्पण्णा ॥१२५॥ भाष्यं। जेट्ठा सुदंसण जमालिऽणोज सावस्थि तेंदुगुजाणे। पंचसया य सहस्सं ढंकेण जमालि मोचूणं ॥६॥ सोलस वासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स णाणस्स। जीवपएसियदिट्ठी उसमपुरमी समुप्पण्णा ॥७॥ रायगिहे गुणसिलए वसु चोदसपुधितीसगुत्ताओ। आमलकप्पा णयरी मित्तसिरी कूरपिउडाइ ॥८॥ चोदा दोवाससया तइया सिदि गयस्स वीरस्स। अत्तयाण दिट्ठी सेयवियाए समुप्पन्ना ॥९॥ सेयवि पोलासाढे जोगे तदिवसहिययसूले य। सोहंमि णलिणिगुम्मे रायगिहे मुरियचलभहे ॥१३०॥ वीसा दोवाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स। सामुच्छेइयदिट्ठी मिहिलपुरीए समुप्पण्णा ॥१॥ मिहिलाए लच्छिघरे महगिरि कोडिण्ण आसमिते य। उणियाणुप्पवाए रायगिहे खंडरक्खा य ॥२॥ अट्ठावीसा दो वाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स। दोकिरियाणं दिट्टी उड्गतीरे समुप्पण्णा ॥३॥ णइखेडजणवाग महगिरि धणगुत्त अजगंगे ला तइया सिदि गयस्स वीरस्स। पुरिमंतरंजियाए तेरासियदिट्ठी उववण्णा ॥५॥ पुरिमंतरंजि भूयगृह चलसिरि सिरिगुत्त रोहगुत्ते या परिवाय पोट्टसाले घोसण पडिसेहणा वाए॥६॥ विच्छ्य सप्पे मसग मिई वराही य कागि पोआई। एयाहिं विजाहिं सो उ परिवायओ कुसलो ॥ ७॥ मोरी नउलि बिराली सीही वग्धी य उलुगि ओवाई। एयाओ विजाओ गेण्ह परिवायमहणीओ ॥८॥ सिरिगुत्तेणऽवि छलुगो छम्मास विकढिऊण वायजिओ। आहरण कुनियावण चोयालसएण पुच्छाणं ॥९॥वाए पराजिओ सो निविसओ कारिओ नरिंदेणं। घोसावियं च णगरे जयइ जिणो बदमाणोनि ॥१४०॥ पंचसया चुलसीया तइया सिदि गयस्स वीरस्स। अन्वद्धियाण दिट्ठी दसपुरनयरे समुप्पण्णा ॥१॥ दसपुरनगरुच्छुघरे अजरक्खिय पूसमित्ततियगं च। गोट्ठामाहिल नवमट्ठमेमु पुच्छा य विसस्स ॥२॥ पुट्ठो जहा अबदो कंचुइणं ११९३ आवश्यकं सनियु- सूक्तिक मूलसूत्रं, afgarn मुनि दीपरत्नसागर

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