Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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सुत्ते अत्ये ततुमए पेप। अत्यग्गहणमि पाय एस विही होइ णायव्वो ॥२॥मजण णिसेज अक्खा कितिकम्मुस्सग वंदर्ण जेटे। भासंतो होइ जेट्ठो नो परियाएण तो वंदे ॥३॥ ठार्य (ण) पमजिऊणं दोण्णि निसिजाउ होंति कायव्या। एगा गुरुणो मणिया चितिया पुण होति अक्खाणं ॥४॥ दो घेच मत्तगाई खेले तह काइयाएँ पीयं तु। जावइया य सुणेती सोऽपि य ते तु वंदति ॥५॥ सो काउस्सगं करेंति सो पुणोऽपि वदति। णासण्णे णाइदूरे गुरुवयणपडिच्छगा होति ॥६॥ णिहाविगहापरिवजिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं । भत्तिबहु. माणपुर उपउत्तेहिं सुणेय ॥ ७॥ अभिकखतेहिं सुहासियाई वयणाई अस्थसाराई। विम्हियमुहेहिं हरिसागएहिं हरिसं जर्णतेहिं ॥ ८॥ गुरुपरिओसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणएण। इच्छियमुत्तत्थाणं खिप्पं पारं समुवयंति ॥९॥ वक्खाणसमत्तीए जोगं काऊण काइयाईणं । वदति तओ जेहूँ अण्णे पुर्व चिय भणति ॥७१०॥ चोएति जइ हु जिट्टो कहिंचि सुत्तत्यधारणाविगलो। वक्खाणलदिहीणो निरत्ययं वंदणं तमि ॥१॥ अह वयपरिआएहिं लहुगोऽबिहुभासओ इहं जेहो। रायणियवंदणे पुण तस्सवि आसायणा भंते !॥२॥ जइवि वयमाइएहिं लहुओ सुत्तत्यधारणापडुओ। वक्खाणलदिमंतो (जो) सो चिय इह घेप्पई जेडो॥३॥ आसायणावि णेवं पडुब जिणवयणभासयं (ण) जम्हा। बंदणयं राइणिए तेण गुणेगंपि सो चेव ॥४॥न वो एत्य पमाणं न य परियाओऽवि णिच्छयमएणं। ववहारओ उ जु(नि)जइ उभयनयमयं पुण पमाणं ॥५॥ निच्छयओ दुग्नेयं को भावे कम्मि वहई | समणो ? । ववहारओ उ की जो पुरठिओ चरितमि ॥६॥ववहारोऽवि हु बलवं जं उउमत्यपि वंदई अरहा। जा होइ अणाभिण्णो जाणतो धम्मयं एवं॥१२३॥ एत्थ उ जिणवय-M णाओ सुत्तासायणबहुत्तदोसाओ। भासंतजेट्ठगस्स उ कायचं होइ किइकम्मं ॥७॥ दुविहा य चरितंमी वेयावच्चे तहेव खमणे य। णियगच्छा अण्णमि य सीयणदोसाइणा होति | ॥८॥इत्तरियाइविभासा वेयावच्चे तहेव खमणे य। अविगिट्ठ विगिटुंमि अगणिणो गच्छस्स पुच्छाए ॥९॥ उवसंपनो जं कारणं तु तं कारणं अपरेंतो। अहवा समाणियम्मी सारणया वा विसग्गो वा ॥ ७२०॥ इत्तरियंपिन कप्पइ अविदिषं खलु परोग्गहाईसुं। चिडित्तु निसीइत्तु व तइयवयरक्खणडाए ॥१॥ एवं सामायारी कहिया दसहा समासओ एसा। संजमतवड्ढयाणं निर्णयाणं महरिसीणं ॥२॥ एवं सामायारि जुजंता चरणकरणमाउत्ता। साहू खर्वति कम अणेगभवसंचियमणतं ॥३॥ अजाव
रणकरणमाउत्ता। साह खर्वति कम्म अणेगभवसंचियमणतं ॥३॥ अजझवसाण निमित्ते आहारे वेयणा परापाए। फासे आणापाणू सत्तविहं झिजए आउं॥४॥ दंडकससत्थरज्जू अम्गी उदगपडणं विसं वाला। सीउण्हं अरह भयं सुहा पिवासा य वाही य ॥५॥ मुत्तपुरीसनिरोहे जिण्णाजिण्णे य भोयणे बहुसो। घंसणघोलणपीलण आउस्स उवकमा एए॥६॥ निघूमर्ग च गामं महिलायूमं च सुग्णय बटुं। णीयं च कागा ओलेन्ति जाया भिक्सुस्स हरहरा ॥७॥ निम्म-5 च्छियं महुं पायडो खजगावणो सुण्णो । जायंगणे पसुत्ता पउत्थवइया य मत्ता य॥८॥ कालेण कओ कालो अम्हं सज्झायदेसकालंमि। तो तेण हओ कालो अकालि कालं करेंतेणं
॥९॥ दुविहो पमाणकालो दिवसपमाणं च होइ राई अ। चउपोरिसिओ दिवसो राती चउपोरिसी चेव ।। ७३०॥ पंचण्हं वण्णार्ण जो खलु वण्णेण कालओ वष्णो । सो होइ वण्णकालो | वणिजह जो व जं कालं ॥१॥सादीसपज्जवसिओ चउभंगविभागभावणा एत्थं। ओदइयादीयाणं तं जाणसु भावकालं तु ॥२॥ एत्थं पुण अहिगारो पमाणकालेण होइ नायो।
खेत्तंमि कंमि काले विभासियं जिणवरिंदेणं ? ॥३॥ वइसाहमुखएकारसीएँ पुषण्हदेसकालंमि। महसेणवणुज्जाणे अणंतर परंपर सेसं ॥४॥ खइयंमि वट्टमाणस्स निग्गयं भयवओ जिणिंदस्स। भावे खओवसमियंमि वट्टमाणेहिं तं गहियं ॥५॥ दशामिलावचिंधे वेए धम्मत्यभोगभावे य। भावपुरिसो उ जीवो भावे पगयं तु भावेणं ॥६॥ णिक्खेवों कारणंमी चउशिहो दुविहु होइ दर्षमि। तवमण्णदब्वे अहवावि णिमित्तनेमित्ती ॥ ७॥ समवाइअसमवाई छब्विह कत्ता य कम्म करणं च। तत्तो य संपयाणापयाण तह संनिहाणे य ॥८॥ दुविहं च होइ भावे अपसत्य पसत्यर्ग च अपसत्यं । संसारस्सेगविहं दुविहं तिविहं च नायब्वं ॥ ९॥ अस्संजमो य एको अण्णाणं अविरई य दुविहं तु। अण्णाणं मिच्छत्तं च अविरती चेव तिविहं तु ॥७४०॥ होइ पसत्थं मोक्खस्स कारणं एगदुविहतिविहं वा। तं चेव य विवरीय अहिगार पसत्थएणेत्यं ॥१॥ तित्थयरो किं कारण मासइ सामाइयं तु अज्झयणं ।। तित्थयरणामगोतं कम्मं मे (से) वेइयव्वति ॥२॥तंच कहं वेइजह? अगिलाए धम्मदेसणाईहिं। वज्झइ तं तु भगवओ तइयभवोसकइत्ताणं ॥३॥णियमा मणुयगतीए इत्थी पुरिसेयरोन सुहलेसो। आसेवियाहुलेहिं वीसाए अण्णयरएहिं॥४॥ गोयममाई सामाइयं तु किं कारणं निसामिन्ति । णाणस्स तं तु सुंदरमंगुलभावाण उपलद्धी ॥५॥ होइ पवित्ति
मतव पावकम्मअगहणं । कम्मविवेगो यतहा कारणमसरीस्या चेव ॥६॥ कम्मविवेगा असरीरया य असरीरया अणाचाहा। होअणबाहनिमित्तं अवेयणमणाउलो निर(क)ओ HLIGIनिरुयत्ताए अयलो अयलत्ताए य सासओ होहा सासयभावमुक्गा अवाबाह सुह लहर।।८॥
बाह सुह लहइ ॥८॥ पचयणिक्खेवो खल दमी तत्तमासगाईओ। भावंमि ओहिमाई तिविहो पगयं तु भावेणं ॥९॥ केवलणाणित्ति अहं अरहा सामाइयं परिकहेह। तेसिपि पचओ खलु सव्वण्णू तो निसामिति ॥ ७५०॥नाम ठवणा दपिए सरिसे सामण्णलक्खणाऽऽगारे।गहरागह णाणती निमित्त उपाय विगमे य॥१॥ पीरिय भावे य तहा लक्षणमेयं समासओ भणियं। अहवावि भावलक्षण चढविहं सरहणमाई ॥२॥सदहण जाणणा खलु विरती (२९८) ११९२आवश्यकं सनियु- सूक्तिक मूलसूत्रं , Trian
मुनि दीपरत्नसागर
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