Book Title: Aagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 15
________________ सो। मरण देउल सारिय मुहमूले दोसुवि मुणित्ति ॥८॥ बहुसालगसालवणे कडपूअण पडिम विग्षणोक्समे। लोहग्गलमि चारिय जिअसत्तू उप्पले मोक्खो ॥९॥ तत्तो य पुरिमताले वग्गुर ईसाण अपए पडिमा। मलीजिणायण पडिमा उग्णाए वसि बहुगोट्ठी ॥४९०॥ गोभूमि वजलाढे गोवकोवे य पंसि जिणुवसमे। रायगिहऽहमवासा (स तु) बजभूमी बहुवसम्गा ॥१॥ अनिअयवासं सिदत्यपुर तिलयंच पुच्छ निष्फत्ती । उपाडेड अणजो गोसालो वास बहुलाए ॥२॥ मगहा गोचरगामो गोसंखी वेसियाण पाणामा । कम्मग्गामाया. वण गोसाले गोषण पउद्वे॥३॥ सालीए पडिम डिंभमुणिउत्ति तत्थ गणराया। पूएइ संखनामो (संखो गणराय पिउपयंसो उ । गंडइया तरपण) चित्तो नावाएं भगिणिसुत्रो ॥४॥ वाणियगामायावण आनंदो ओहि परीसहसहित्ति। सावत्थीए वासं चित्ततको साणुलढि पहिं ॥५॥ पडिमा भह महामह सबओभह पदमिआ चउरो। अट्ठ य वीसाऽऽणंदे बहूलिय तह उज्झिए विधा ॥ ६ ॥ बढभूमीए पहिला पेढालं नाम होइ उजाणं (दढभूमी बहुमेच्छा पेढालग्गाममागओ भगर्व चू०)। पोलासचेइयम्मी ठिएगराई महापडिम ॥ ७॥ सको य देवराया सभागओ भणइ हरिसिजओ क्यणं । तिषिणवि लोग समत्या जिणवीरमर्ण न चालेडं ॥ ८॥ सोहम्मकप्पवासी देवो सकस्स सो अमरिसेणं। सामाणि संगमओ बेइ सुरिंदै पडिनिविद्वो ॥ ९ ॥ तेलोकं असमत्यंति पेह एतस्स चालणं काउं । अजेच पासह इमं मम वसगं भट्ठजोगतवं ॥ ५० ॥ अह आगओ तुरंतो देखो सकस्स सो अमरिसेणं। कासी य हउवसर्ग मिच्छदिछी पडिनिविट्ठो॥१॥ धूली पिवीलिआओ उहंसा चेव तह व उल्होला। विच्छ्य नउल्ला सप्पा य मूसगा चेव अट्ठमगा ॥२॥हत्थी हस्थिणिआओ पिसायए घोररूव बग्यो यारो घेरीइ मुत्रो आगच्छइ पक्षणोय तहा ॥३॥ खरवाय कलंकलिया, कालचकं तहेव या पाभाइय उक्सग्गे, वीसइमो हो। अणुलोमो॥४॥ सामाणियदेविहिंद देवो दावेइ सो विमाणगओ। भणइ य बरेह महरिसि! निष्फत्ती सरगमोक्खाणं ॥५॥ उवयमइविण्णाणो ताहे वीरं बहुं पसाहे। ओहीए नि: जमाइ सायद उजीवहियमेव ॥ ६॥ वालुयपंथे तेणा माउलपारणग तत्थ काणच्छी। ततो सुभोम अंजलि सुच्छित्ताए य विडरूव ॥ ७॥ मलए पिसाबरूवं सिवरूर्व हत्थिसीसए चेव। ओहसणं पडिमाए मसाण सको जवणपुच्छा ॥८॥ तोसलि कुसीसरुवं संघिच्छेओ इमोति बझो य। मोएड इंदजालिउ तत्थ महाभूइलो नामं ॥९॥ मोसलि संधि सुमागह मोएई रडिओ पिउवयंसो। तोसलि य सत्तरज़वाबत्ती तोसली मोक्खो ॥५१०॥ सिद्धत्यपुरे तेणेत्ति कोसिओ आसवाणिओ मोक्खो। वयगाम हिंडणेसण विइयदिणे बेइ उपसंतो॥१॥ वह हिंडह न करेमि किंचि इच्छा न किंचि वत्तयो। तत्येव वच्छवाली थेरी परमच वसुहारा ॥२॥ छम्मासे अणुबद्धं देवो कासीय सो उ उवसम्गं । दठूण वयम्गामे बंदिय वीर पडिनियत्तो ॥३॥ देवो ठिओ महिड्ढी वरमंदरचूलियाइ सिहरंमि । परिवारिउ सुरवहहिं आउंमी सागरे सेसे ॥४॥ आलभियाएँ हरि बिजु जिणस्स भत्तीइ बंदओ एइ। भगवं पियपुच्छा जियउवसरिगति येवमवसेसं ॥५॥ हरिसह सेयवियाए सावत्थी संदपडिम सको य। ओयरिङ पडिमाए लोगो आउदिओ वंदे ॥६॥ कोसंबी चंदसुरोयरणं वाणारसीयसको उ। रायगिहे ईसाणो महिला जणओ य धरणो य॥७॥ वेसालि भूयणंदो चमरुप्पाओ य सुंसुमारपुरे। भोगपुरि सिंदकंदग माहिंदो खत्तिओ कणति ॥८॥ वारण सणंकमारे नंदीगामे पिउसहा वंदे। मंढियगामे गोवो वित्तासणयं च देविंदो ॥९॥ कोसंबीएँ सयाणि अभिग्गहो पोसबहुलपाडिबई। चाउम्मास मिगावइ विजयसुगुत्तो य नंदा य ॥५२०॥ तचावाई चंपा दहिवाहण वसुमई विजयनामा। घणवह मूला लोयण संपुल दाणे य पवजा ॥१॥ तत्तो सुमंगलाए सर्णकुमार सुछेत्त एइ माहिंदो। पालग बाइलवणिए अमंगलं अप्पणो असिणा ॥२॥ चंपा वासावासं जक्खिंदे साइदत्तपुच्छा य । वागरण दुहपएसण पचक्खाणे य दुविहे उ॥३॥ जंभियगामे नाणस्स उप्पया वागरेइ देविंदो। मिडियगामे चमरो वंदण पियपुच्छणं कुणइ ॥४॥ छम्माणि गोव कडसलपवेसणं मज्झिमाएं पावाए । खरो विजो सिद्धत्व वाणियओ नीहराबेइ ॥५॥ जंभिय बहि उजुवालिय तीर वियावत्त सामसाल. अहे । छद्रेणुक्कुडुयस्स उ उप्पणं केवलं नाणं ॥६॥ उवसरमा समत्ता। जो य तपो अणुचिण्णो वीरवरेणं महाणुभावेणं । छउमत्यकालियाए अहम कित्तइस्सामि ॥७॥नव किर चाउम्मासे छफिर दोमासिया उवासीय । बारस य मासियाई बावत्तरि अदमासाई ॥८॥ एग किर छम्मासं दो किर तेमासिए उवासीय। अड्ढाइजाइ दुवे दो चेव दिवढमासाई ॥९॥ भई च महाभई पडिमं तत्तो य सवओभई । दो चत्तारि दसेव य दिवसे ठासीय अणुबद्धं ॥५३०॥ गोयरमभिग्गहजुयं खमणं छम्मासियं च कासीय। पंचदिवसेहि ऊर्ण अब. हिओ वच्छनयरीए॥१॥ दस दोय किर महप्पा ठाइ मुणी एगराइए पडिमे। अट्ठमभत्तेण जई एकेकं चरमराईयं ॥२॥ दो चेव य उद्सए अउणातीसे उवासिया भगवं। न कयाइ निचभत्तं चउत्यभत्तं च से आसि ॥३॥पारस वासे अहिए छहुँ भत्तं जहण्णर्य आसि। सर्च च तवोकम्मं अपाणयं असि वीरस्स ॥४॥ तिणि सए दिवसाणं अउणावणं तु पारणाकालो। उकडयनिसेजाणं ठियपडिमाणं सए पहए॥५॥ पाजाए पढर्म दिवसं एत्थं तु पक्खिवित्ताणं। संकलियमि उ संते जं लवं तं निसामेह ॥ ६॥ बारस चेव य बासा मासा छच्चेव अक्षमासो या वीरवरस्स भगवओ एसो छउमत्यपरियाओ॥७॥ एवं तवोगुणरओ अणुपुत्वेणं मुणी विहरमाणो। घोरं परीसहच, अहियासित्ता महावीरो ॥८॥(२९७) 1 ११८८आवश्यक सनियु- मूक्तिक मूलसूत्र Argin गुनि दीपरनसागर

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