Book Title: Aagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 9
________________ आगम "अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) ........................मूलं ३-६] / गाथा ||-|| ...... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि: प्रत सूत्रांक [३-६] गाथा अनुयोग चूणा ॥५॥ देंति, ताहे सो उद्देति णिसेज्जाए, पुणो गुरू तत्थणिसीयइ, ते य अणुयोगविसज्जणं उस्सग करेंति कालस्स य पटिकमति, अणुण्णायअणुयोगसाधू य निरुद्धं पवेदेति, एते उद्देसाइया सुत्तणाणस्सेवेत्यवधारिता, न मत्यादीनां, जतो भक्ति-सुधा-II - धिकारः णस्स उद्देसो ' इत्यादि, तेसुवि ण उद्देसादिसु अहिकारो, पुब्बमहीतत्तणतो अणुयोगद्दाराहिकारातो य, अनुयोगेनात्राहि-मद्रा कारः, तस्स णिरुत्तं इम-अणुयोगणमणुयोगो, निजन अभिधेयेनेत्यर्थः, अहवा जोगोत्ति वादारा जो सुतस्स सो यऽणुरूवो अणुकूलो वा, अनुयोग इत्यर्थः, अथवा अणु पच्छा थोवभावेति, अत्थतो जम्हां सुत्तं थोवं पच्छुप्पणं च, तेण सह अत्थस्सी जोगो अनुयोग इत्यर्थः, 'मतणाणस्स अनुयोग' इत्यादि सुतं (३-६) (४-६) (५-७) 'इम' ति वट्टमाणकालासण्णकिरियपच्चक्खभावे, अंगाणंगादिविसेसणो पुणसद्दो, पट्ठवणं प्रारमः-प्रवर्तनेत्यर्थः, दिवास णिसि पढमचरिमासु जे पढिज्जइ तं कालितं, जे पुण कालवेलवज्ज पढिज्जइ त उक्कालियं, अवस्सं जं उभयसंशकालं कज्जइ उभयसंझकाले वा जेण किरिया कज्जड तं आवस्सयं, सेसं सवं वइरित्तं 'आवस्सयगं णं' (६-९) इत्यादि, णमिति वाक्यालंकारे देसीवयणतो वा, अंग | अंगाई' ति इच्चादि, अट्ठ पुच्छातो, तामु णिण्णयावध (धार) यो ततियाछट्ठापुच्छातो आदेया, सेसा अणादेया, त्याज्या | इत्यर्थः, एत्य चोदक आह-आवस्सगस्स अंग अंगाइन्ति पुच्छाण कातम्या, जतो नंदिवक्खाणे आवस्सगं अणंगपविट्ट बक्खाणितं, इह अणंगपवितु य उकालितादिक्कमेण आवस्सगस्स उद्देसादिया मणिता, एवं भणिते का संका', आचार्य आह-अकते | गंदिवक्खाणे संका भवति, किह', ण णियमो अवस्स अंदी पढमं वक्खाणेतब्वा, जतो णाणपंचकाभिधाणमेत्तमेव मंगलामिडं, | इहपि अंगाणंगकालिउकालियादिकमो जो दरिसितो सोवि कस्स मुतस्स उद्देसा पवत इति जाणणत्थं भणितो, अणुयोग- ॥५ ॥ दीप अनुक्रम [३-६] - अथ 'आवश्यक-अधिकार: वर्णयते ~ ~

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