Book Title: Aagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 29
________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) ........................मूलं ८२-८६] / गाथा ||८...|| ....... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि: धिकारः प्रत सूत्रांक [८२-८६] गाथा ||८|| ॥२५॥ R | यारम्भं संताणतो अव्वोच्छिन्नं जहण्णुकोसतो कालमग्गणा एगाणेगदष्वेसु समयादि यावत्परा असंख्यैव स्थितिः, सेसं सुत्तसिद्ध, आनुपूर्य अणाणुपुबिअव्यत्तच्चेसु एवं चेव, 'केवतियं कालं अंतर' इत्यादि [८६-६३] आणुपुब्बिदन्वाणं अंतरंति जै तिपदेसादि। दिआदिढ पुष्बदन्यत्तणं पाविस्संति, उत्तरं सुत्तसिद्ध, एगादिसमयतर विस्ससपरिणामहेतुतो वाच्यं, अणंतकालंतर पुण दवाणेगदु-६ |पदेसिगादि जाव अणंतपदेसुत्तरो खंधो ताव अणंतवाणहेतुत्तणतो भाणियन्वं, णाणादन्वेदि लोगस्स असुनत्तणतो पत्थि अंतरं, चूर्णी | अणाणुपुग्विदल्याण अंतरं उकोसतो असंखेजं कालं, कह ?, उच्यते, अणाणुपुब्बिदब्वेण अवत्तव्यगदम्वेण वा आणुपुग्विदग्वेण वा सह संजुत्तं उकोसठिति होतुं ठितिअंते ततो भिण्णं ते णियमा परमाणू चेव भवति, अण्णदव्वाण चोक्खत्तणतो, एवं | उकोसेण असंखओ अंतरकालो भणितो, सेस सुत्तसिद्धं, अव्वत्तव्बतंदबाणवि अंतरं उकोसण अंतर(अर्णत)कालो, कहा | उच्यते, जं आदिटुं अव्वतब्बगदव्यं तं जया तद्दब्वचण विगतं ततो तस्स परमाणवो अण्णअव्वत्तब्बगदब्लेहि * आणुपुच्चिदम्बेहि अणाणुपुविदव्येहिं संजुत्ता जहण्णमज्झिमुकोससीठताहि य अणंतकालं परोप्परतो विसंघयाहेतुं पुणो ते चेव & | दोवि आदिद्रुअब्बत्तबगदवपरमाणवो विस्ससापरिणामहेतुतो परोप्परं संबद्धा पुग्वसमं चेव अम्बत्तव्बगदम्वत लमंति, एवं तेसि | | अंतरं अर्णतकालो दिहो, 'आणुपुग्विदव्वाई सेसगदम्वाणं कतिभागे'(८७-६५) इत्यादि, सेसगदव्वाति-अणाणुपु-द्र | ब्बीदब्वा अम्बत्तगदन्वा य दोवि एको रासी कतो, ततो पुच्छा चउरो, एत्थ गिदरिसणं इम-संखज्जतिभागो पंच, पंचभागे | सतस्स वीसा भवति, सतस्स असंखज्जइभागो दस, दसंभाग दस चेव भवंति, सतस्स संखेज्जेसु भागेसु दोमाइगेसु पंचभागे | पुबुत्ता वीसादी भवंति, सतस्स असंखज्जेसु भागेसु अट्ठ दसभागेसु असीती भवति, चोदक आह-णणु एतेण णिदसणेण सेसगद दीप अनुक्रम [९३-९७] ECENSE M ~29~

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