Book Title: Aagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 61
________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) ............मूलं [१३४-१३७] / गाथा ||९९-१०३|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि: मा .............. प्रत सूत्रांक [१३४ अनुयोग चूर्णी क १३७] गाथा ||९९ १०३|| | ब्वत्तिसमागमेण वा भणियब्बंति, समयस्स सुहमलणतो जहा क्रियाबिसेसो से णथि कोई, एसडे, नो, कम्हा ?, भण्णति-एत्तोल पल्योपम बहुमतराए समएत्ति, असंखेज्जसमयसमुदयो चेव आवलियप्पमाणं अणुरुवसमितित्ति भण्णति, ते चेव आवलिववदेसत्ता समा- सागरोपमें गमो भण्णति, ससं पूर्ववत्, थोचे सत्तुस्सासा सत्त थोवा य लवे लवो सत्तथोवेण गुणिते जातो अगुणपबासा मुहुत्ते सत्तत्तरि लवा ते अउणपण्णासेण गुणिया जातं इम-तिनि सहस्सा सत्त सया तेहत्ता, 'से किंतं उवमिते' इत्यादि, अंतोमुहत्तादिया जाव पुथ्वको-12 डीएत्ति, एतानि धर्माचरणकालं पडुच्च परतिरियाण आउपरिमाणकरणे उवजुजंति, णारगभवणवंतराणं दसवरिससहस्सादि उव-13 | जुज्यंति, आउयचिंताए तुडियादिया सीसपहेलियंता एते प्रायसो पुव्वगतेसु जविएमु आउयसेढीए उबउज्जति, अन्यत्र यदृच्छातः | एताव ताव गणिय अंकट्ठवआए, बितियणागारो सुहमुहच्चारणत्थं, जाण ज्ञानविषयोऽपि, अहवा एतावति य अंकट्ठवणा जावयं | अंकट्ठवणट्ठाणा दिवा ताव गणितज्ञानमपि दृष्टं तुडिगादि सीसपहलियंत, उवमाणं जं कालप्पमाणं ण सक्कड घेत्तुं तं उवमियं | भवति, धण्णपल्ल इव तेण उवमा जस्स तं पल्लोवमं भण्णति, अह दस पल्लककोडाकोडीतो एर्ग सागरोवमं, तस्स पलियस्स भागो पलितं भण्णति तेण उवमा पलितोचम, सागरो इब जं महाप्रमाणं तं सागरोवम, वालग्गाण वालखंडाण वा उद्धारत्तणतो उद्धारपलितं मण्णति, अद्धा इति कालः सो य परिमाणतो वाससंयं वालग्गाण खंडाण वा समुद्धरणतो अद्धापलितोवमं भण्णाति, अहवा | अद्धा इति आउद्धा सा इमातो रइयाण आणिज्जति अतो अद्धापलितोवमं, अणुसमयखेत्तपल्लपदेसावहारत्तणतो खेत्तपलितोवम, x ॥५७॥ 51 से किं तं उद्धारपलितोवमे ' त्यादि (१३८-१८०) वालग्गाण सुहुमखंडकरणततो मुहुमं, बादरवालग्गववहारत्तणतो | व्यवहारियं, ववहारमेचत्तणतो वा वबहारियं, ण तेण प्रयोजनमित्यर्थः, से ठप्पेत्ति चिट्ठतु ताण परूविस्स, परिखेवेणं तिष्णि जोयणा दीप अनुक्रम [२६८२७४] ~61~

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