Book Title: Aagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (४५)
"अनुयोगद्वार'- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:)
................मूलं R] / गाथा ||-|| ............ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि:
प्रत
सुत्राक
विधिः
[२]
अनुयागा
गाथा
माथेः
II-II
श्री
तेरे गमोकारपरो गुरुं पदक्षिणेत्ता पुरतो ठिच्चा पुणो भणादि-तुमहिं मे अपुगं सुतमुद्दिद्वै. जोग करेहित्ति संदिवो इच्छामोतिअनुयोग नयोगणित्ता य वंदित्ता य पदक्षिण कोति, एवं तइयवारपि, एते ततोऽपि वंदणा एकं वंदणट्ठाणं, ततियपदिक्षण
अनुयोचूर्णी ते य गुरुस्स पुरतो चिट्ठति, ताहे गुरू णिसोयति, णिसण्णस्स य अद्धावणतो भणाति-तुम्भं पवेदितं संदिसह साहूर्ण पवेदयामि,
गुरू भणति-पवेदेहत्ति, इच्छामोति भणिचा पंचमं देति बंदणं, वंदित्ता पच्चुट्टितो कयपंचणमोकारो छ₹ देति बंदणं, पुणो ॥३ ॥
| वंदितपच्चुद्वितो तुभं पवेदितं साधूण पवेदितं संदिसह करेमि काउस्सर्ग, गुरू भणति-करेहत्ति, ताहे वंदणं देति सत्तम, एते सुतपच्चता सत्त बंदणा, ततो बंदियपच्चुट्टितो भणादि-अमृगस्स उडिसावणं करेमि काउस्सग्गं अण्णत्थ ऊससितण जांव वोसिरामोति, सत्तावीसुस्सासकालं ठिच्चा लोगस्स उज्जोयगरं वा चिंतेता उस्सारेतो भणादि-'णमो अरहताण'ति, | लोगस्सुज्जोअगरे कहिता सुतसमत्तउद्देसकिरियत्तणतो अंते केदी बंदणं देति, जे पुणो बंदणयं देति ते ण सुतपच्चतं, गुरूवकारित्ति धिणयपडिबत्तितो अट्ठमं बंदणं देंति, अंगादिसमुद्दसणेसुवि, वरं समुद्देसे पवेदिते गुरू भणति-थिरपरिजिय करे। हित्ति, णंदीण कड्डिजति ण त पदक्षिण तउबरि कारिज्जति, जेण णिसण्णो गुरू समुद्दिसइ, अंगादिअणुण्णामु जधा उद्देसे तहा सव्वं कज्जइ, णवरं पवेदित गुरू भणति-समं धारय अन्नेसिं च पवेदयसुत्ति, जोगुक्खनुस्सग्गो य ण भवति, आवस्सगादिसु पइन्नएम तंदुलवेयालियादिसु एसेव विधी, पवरं सज्झाओण पट्टावज्जइ जोगुक्खेबुस्सग्गो य ण कीरइ,
।। ३ ।। | सामाइयादिसु अज्झयणेसु उद्देसगेसु य उदिस्समाणेसु चितियवंदणपदीक्खणादिविसेसकिरियवज्जिताई सत्त थोभवद-IM णाई उबक्कमेण भवंति । जया पुण अणुयोगो अणुण्णवइ तता इमो विधी-पसत्थेसु तिहिकरणणक्खसमुहुत्तेसु पसत्थे य खत्ती
दीप अनुक्रम
| अथ अनुयोग-विधि: प्रदर्शयते
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