Book Title: Aagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (४५)
"अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) .........................मूलं ४४-५८] / गाथा ||५-७|| ....... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि:
प्रत
सूत्रांक
स
अनयाग
निक्षेपाः
[४४-५८]
गाथा ||५-७||
॥१७॥
रिचे सचिचादि, तत्थ सचित्ते हयाई, अचित्ते दुपदेसीदाइ, मासे सेणाए अग्गिमखंधादी, अहवा एसेव सचिचाइ अण्णामिधाणेण तिविहो कसिणादिसण्णत्ति, तत्थ कसिणो जो च्चेव हतादी सचित्तो भणितो, सोच्चव अविसिडो,31
स्कन्ध| अकसिणोवि दुपदेसादी चेव अविसिहो, अणेगदवियदवियखंधो पुण उवचितो भाणितब्बो, अहवा सुत्तकारण | विसेसदसणत्यमेव वितितो कसिणादिभेदो उवण्णत्थो, किं चान्यत्, अभिधाणविसेसतो णियमा चेव अत्यविससतो | भवति, सो त वकखाणतो विसेसो लक्खिज्जति, तत्थ हयादिए सच्चित्तो, सचित्तगहणातो जीवसमूहबंधो विवक्खितो, दुप-18 देसादियाण अचित्तत्तणतो अचित्तखंधत्तणं भणित, जियाजियदन्वाण विसिस्सहिताण जाव समूहकप्पना स मीसबंधो, सो चेव हयादी सचित्तखघो कसिणो भन्नति, कह?, उच्यते, जीवाजीवपदेसेसु तं जे सरीरपरिणया दब्बा, एरिसो विवक्खियपिंड| समूहो कसिणखंधो भन्नति, अकसिणवि दुपदेसतिपदेसादिए पहुच्च पदेससंखया अकसिणो भण्णति, एवं सेसावि भाणियच्या,
जाव सब्बहा कसिणं ण हवति, अणेगदचियखधो जीवपयोगपरिणामिया जीवपदेसोपचिया य जे दच्चा ते अणेगविधा, अने। | तत्थेव जीवपयोगपरिणामिवा जीवपदेससु त अवचिता एरिसादि दवा अणेगविधा, एरिसाणं उवचियाण्णावचयिदग्याण बहूणं | |समूहो अणेगदवियखंधो भण्णति, गतो दवखधो । से किं तं भावखंधो इत्यादि (५४-४२) खंधपदत्थोपयोगपरिणामो जो सो
आगमतो भावबंधो, णोआगमतो भावखंधो णाणकिरियागुणसमूहमतो, सो त सामादियादि छण्हं अजायणाणं संमेलो, एत्थ |किरिया णोआगमोत्तिकांउ, गोसदो मीसभावे भवति, तस्स य भावखंधस्स एगहिया इमे 'गणकाय' गाथा (५-४३) एवेसु । अस्थदंसगा उदाहरणा इमे-मल्लजनगणवद् गणः पृथिवीसमस्तकायजीवकायवत् कायः छजीवणिकायवत् निकायः ब्यादिपरमाणु-6
दीप अनुक्रम [५०-६९]
॥१७॥
अत्र 'स्कन्ध' शब्दस्य निक्षेपा: कथयते
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