Book Title: Aagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 25
________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) ................मूलं ७१-८१] / गाथा ||८|| .......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि: प्रत सूत्रांक [७१-८१] गाथा अनुयोग चूणों ॥२१॥ ||८|| | हियत्ति दुपयं सुत्न, इदाणं एतस्सत्थो-इमं अज्झयणं गुरुवतिजोगे आणुपुवीए उवयंतित्ति वा पक्खतित्ति है। आनुपूर्व्य| वा छुमतित्ति वा, अहवा इमं अजायणं आणुपुब्बीए आतभावेण उवेतित्ति वा उत्तरतित्ति वा अवतरतित्ति वा एगहूँ, INIधिकार | अहवा णिहितंति वा णिहेतित्ति वा ठवेतित्ति वा एगट्ठा, एवं बहुधा पयत्यो भणिओ, इमस्स अज्झयणस्स उवणिहि-| नेण द्विता जाव अणुपुच्ची सा उवणिहिया भवति, पुद्रुतरं भण्णति, जा अणुपुब्बी इमं अज्झयणं पुन्वाणुपुचीयादीहि अणेगधा भवति, उवकमेति पक्खिवइत्ति वुत्तं भवति, जधासंभवपरिखते य इमं अज्झयणं णिहीकतं भवति, एवं उवणिहिया भवति, सिस्सा- | भाववणिहितं इत्यर्थः, इमो समुदायस्थो उवकमाधिकारे जोयेज्जा, सा उवणिहिता अनया अधिकारः इत्यर्थः, जा पुण अणेगधा अत्थपरूवणाए पुरूवितावि इमस्स अज्झयणस्स णो योइया ण उवणिहियभावे देसिता आणुपुव्वी सा अणोवणिहिया अध्ययन अनधिकार इत्यर्थः, उवणिहिया ठप्पात चिट्ठतु ताव उवणिहिया, अणोवणिहियं ताव बक्खाणेति, तस्स पिट्ठतो उवाणहिया | भण्णिहिति, किं पुण यकमकरण?, उच्यते, अणावणिहिया सह(विसेस)स्था, तत्थ जो सामण्णत्थो सो परूवितो चेव लब्मतित्तिकाउं| अतो उक्कमो कतो, साय अणावणिहिया दवट्ठियणतमतेणं दुविधा, ते य णया सत्त णेगमादी एवंभूतपज्जता, ते दुविधा कता-दब्बठितो पज्जवठितो य, आदिमा तिणि दव्यठितो, सेसा पज्जवठितो, पुणो दव्वठितो दुविधो-अविसुद्धो विसुद्धो य, अविसुद्धो णेगमक्वहारा दव्यमिच्छति किण्हादिअणगविहगुणावहितं तिकालभवंति अणेगभेदठितं णिच्चमणिच्चं च तम्हा ते अविसुद्धो || दवठितो, एतेहिंतो विसुद्धतरो दवठितो संगहः, कहमुच्यते-जम्हा संगहो विसेसभेदं परमाणुआदियं एग चेव दवमिच्छते, [॥२१॥ कण्हादिअणेगगुणपरमाणुत्तसामण्णतणतो, एवमादि संगहो विसुद्धतरो, एत्थ अविसुद्धदब्बेहि य गमववहारमतेण अणावणि-| दीप अनुक्रम [८१-९२] CARDAGARLSEX ~25

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