Book Title: Aagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 8
________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार - चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) .................मूल R] / गाथा ||-11 ............ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि: प्रत सूत्राक [२] गाथा II-II 18|जिणायतणादिसु भूमि पमज्जित्ता दो णिसेज्जातो कज्जति, एका गुरुणो वितिया अक्खाण, चरिमकाले य पवेदिए णिसज्जाएअनुयोग द्राणिसण्णो गुरू अहजातोबगरणो य पुरतो ठितो सीसो, गुरू सीसो दोवि मुहपोत्तियं पडिलेहंति, ततो तीए हा चूणा ससीसोवरिय कार्य पडिलेहंति, ततो सीसो भारसावत्तवंदणं दातुं भणादि-सदिसह सज्झायं पट्टवेमि, पट्ठचेहत्ति, गार्थः ॥४॥ ततो दुवगावि सज्झायं पवेति, तो पद्दयिते गुरू णिसीतइ, ततो सीसो वारसावत्तेणं बंदेह, ततो दोवि ओट्ठन्ति, अणुयोगे13 पट्टविते य गुरू णिसीयति, ततो सीसो बारसावत्तेणं बंदइ, चंदिचा गुरुणा अमिमंतणे कते गुरू णिसेज्जातो उडेइ, त णिसेज पुरतो काउं अधीतसुतं सीस वामपासे ठवेत्ता चेतिए यदइ, समत्ते चेतियवंदणे ठितो णमोकार कड्डित्ता गंदी कह तस्संते भणइ-इमस्स साधुस्स अणुओर्ग अणुजाणामि खमासमणाणं हत्थेण दव्वगुणपज्जवहि अण्ण्णातो, ततो वंदति सीसो, सो उडितो भणाति--संदिसह किं भणामो', गुरू भणति-पबेहित्ति, ततो बंदति, उट्टितो भणइ-तुम्भेहिं मे अणुओगो अणुण्णातो, इच्छामि अणुसहि, गुरू भणइ-संमं धारय अन्नेसि च पवेदय, ततो वंदइ, बंदित्ता गुरुं पदक्षिणेइ, एवं तओ वारा, ताहे गुरू प्रणिसेज्जाए णिसीयइ, ताहे सीसो पुरतो ठितो भणति-तुभं पवेदितं, संदिसह साधूण पवेदयामि, एवं सेसं पूर्ववत्, उस्सग्ग-1 सते वंदित्ता ततो सीसो गुरुं सह णिसेज्जाए पदक्खिण करति बंदइ य, एवं ततो वारा, ताहे उद्वित्ता गुरुस्स दाहिणभुया-14 18] सन्ने णिसीयइ, ततो से गुरू गुरुपरंपरागते मंतपदे कहेनि तओ चारा, ताहे बढतीओ ततो अक्खमुट्ठीतो गंधसहितातो देति, IN दाताहे गुरू णिसेज्जातो उद्देइ, सीसो तत्थ णिसीयइ, ताहे सह गुरुणा अहासमिहिया साहयो वदण देंति, ताहे सो निसेज्ज-II ठितो अणुओगी गाणं पंचविहं पण्ण इरचादि सुतं कड्डेति, कड्डित्ता जहासचीए यक्खाण करति, वक्खाते साधयो बंदण । दीप अनुक्रम [२] ~8~

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