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प्रथम पर्व
आदिनाथ चरित्र
वाले जलचर, थलचर नभचर और तिर्यञ्च प्राणी भी अपने पूर्वजन्म के कर्मों से अनेक प्रकार के दुःख भोगते हैं । जलचर जीवों में से कितने ही तो एक दूसरे को खा जाते हैं । चमड़े के चाहने वाले उनकी खाल उतारते हैं, मांस की तरह वे भूजे जाते हैं, खाने की इच्छा वाले उन्हें खाते हैं और चरबी की इच्छा वाले उन्हें गलाते हैं । थलचर जन्तुओं में, निर्बल मृग प्रभृति को सबल सिंह वगैर: प्राणी मांस की इच्छा से मार डालते हैं । शिकारी लोग मांस की इच्छा से अथवा क्रीड़ा के लिए, उन निरपराधी प्राणियों को मार डालते हैं। बैल प्रभृति प्राणी भूख-प्यास, सरदी - गरमी सहन करने, अति भार वहन करने और चाबुक, - अंकुश एवं लकड़ी वगैर: की मार खाने से बड़ा दुःख पाते हैं आकाशमें उड़नेवाले पक्षियों में तीतर, तोता, कबूतर और चिड़िया प्रभृति को उनका मांस खानेकी इच्छावाले बाज़, शिकरा, और गिद्ध वगैर: पक्षी खा जाते हैं तथा शिकारी लोग इन सब को नाना प्रकार के उपायों से पकड़कर और घोर दुःख देकर मार डालते हैं । उन तिर्यञ्चों को अन्य शस्त्र और जल प्रभृति का भी बड़ा डर होता
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है
1 अतः अपने-अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का निबन्धन ऐसा है, जिस का प्रसार रुक नहीं सकता । इसी को दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं, कि कोई भी अपने पूर्वजन्म के कर्मोंका भोग भोगनेसे बच नहीं सकता । अपने-अपने कर्मोंका फल सभीको भोगना होता है ।
'जिन को मनुष्यत्व मिलता है, जो मनुष्य-र -योनि में जन्म लेते