Book Title: Aadinath Charitra
Author(s): Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 578
________________ प्रधम पर्व ५५३ आदिनाथ-चरित्र केवल-ज्ञान प्राप्त हो गया, जैसे बादल हट जानेसे सूर्य का प्रकाश निकल आता है। ___ ठीक उसी समय इन्द्रका आसन काँप गया, क्योंकि अचेतन वस्तुएँ भी महत् पुरुषोंकी विशाल समृद्धिको बात कह देती हैं। अवधिज्ञानसे असल हाल मालूम कर, इन्द्र भरत राजाके पास आथे। भक्तजन स्वामीकी ही तरह स्वामीके पुत्रकी भी सेवा करनी स्वीकार करते हैं, फिर वे स्वामीके पुत्रको केवल-ज्ञान उत्पन्न होनेपर भी उसकी सेवा क्यों नहीं करते ? इन्द्रने वहाँ आकर कहा, “हे केवलज्ञानी ! आप द्रव्यलिग स्वीकार कीजिये, जिसमें मैं आपको वन्दना करूं और आपका निष्क्रमण-उत्सव करू ।” भरततेश्वरने उसी समय बाहुबलीकी भाँति पाँच मुट्ठो केश उखाड़ कर दीक्षाका लक्षण अङ्गीकार किया अर्थात् पांच मुट्ठी केश नोंचकर देवताओंके दिये हुए रजोहरण आदि उप. करणोंको स्वीकार किया। इसके बाद इन्द्रने उनकी बदना की ; क्योंकि भले ही केवल ज्ञान प्राप्त हो गया हो तो भी अदीक्षित पुरुषको वन्दना नहीं की जाती-ऐलाही आचार है । उस समय भरत राजाके आश्रित दस हज़ार राजाओंने भी दीक्षा ले ली; क्योंकि उनके समान स्वामीकी सेवा परलोकमें भी सुख देनेवाली होती है। इसके बाद इन्द्रने पृथ्वीका भार सहनेवाले भरतचक्रवर्तीके पुत्र आदित्ययशाका राज्याभिषेक-उत्सव किया। ऋषभस्वामीकी तरह भरत मुनिने भी केवलज्ञान उत्पन्न

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