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प्रथम पर्व
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आदिनाथ- चरित्र
कि देवता, राक्षस और मनुष्यों के साक्षात् ईश्वर ऋषभ भगवान हैं। उन्हीं के पुत्र महाराज भरत चक्रवत्त आपकी यह हुक्म देते हैं, कि अगर आप अपने राज्य और जानमाल की ख़ैरियत चाहते हो, तो अपना सर्वस्व हमारी भेंट करके हमारी टहल बन्दगी करो । अगर आप इस आज्ञा को न मानोगे- हुक्म अदूली करोगे, तो आपका राज्य छीन लिया जायगा और आपका जीवन समाप्त कर दिया जायगा ।
मागधतीर्थपतिका सेवक होना ।
ऐसे अक्षरों को देखकर मंत्री ने अवधिज्ञान से सारा मामला सम लिया और वह वाण सबको दिखाया और ऊँची आवाज़ से बोला- “ अरे समस्त राजा लोगों ! साहस करने वाले, मतलब की बात न समझने बाले; अपने मालिक का अनभल कराने वाले, और फिर अपनी जाती को स्वामिभक्त माननेवाले आप लोगों को धिक्कार है । इस भरत क्षेत्र में पहले तीर्थङ्कर, श्री ऋषभ स्वामीके पुत्र महाज भरत पहले चक्रबर्त्ती हुए हैं। वे अपन लोगों से दण्ड माँगते हैं और इन्द्रके समान प्रचण्ड शासन वाले वे हम सबको अपनी आज्ञा या अधीनता में रखना चाहते हैं । कदाचित समुद्र सोखा जा सके, मेरु पर्वत उखड़ जाय, यमराज मारा जाय, पृथ्वी उलट जाय, वज्र पीसा जाय, और बड़ वाग्नि बुझ जाय, पर पृथ्वी पर चक्रवर्ती की पराजय हो नहीं सकती, चक्रवर्ती को कोई जीत नहीं सकता, चक्रवर्ती अजेय है