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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पवै भँवरकी तरह गोल-गोल चैगेरियाँ, उत्तम रूमाल, आभूषणोंके डब्बे, सोनेकी धूपदानी और आरती, रत्नोंके मङ्गलदीप, रत्नोंकी झारियाँ, मनोहर रत्नमय थाल, सुवर्णके पात्र, रत्नोंके चन्दनकलश, रत्नोंके सिंहासन, रत्नमय अष्टमाङ्गलिक, सुवर्णका बना तेल भरनेका डब्बा, सोनेका बना धूप रखनेका पात्र, सोनेका कमल-हस्तक-ये सब चीज़े प्रत्येक अर्हन्तकी प्रतिमाके पास रखी हुई थीं। इसलिये प्रत्येक वस्तुकी गिनती चौवीस थी।
इस प्रकार नाना रत्नोंका बनाया हुआ वह तीनों लोकसे सुन्दर चैत्य, भरतचक्रीकी आज्ञा होतेही, सब कलाओंके जाननेवाले कारीगरोंने तत्काल विधिके अनुसार बनाकर तैयार कर दिया। मानों मूर्तिमान् धर्म हो ऐसे चन्द्रकान्त-मणिके परकोटेसे तथा चित्रमें लिखे हुए सिंह, वृषभ, मगर, अश्व, नर, किन्नर, पक्षी, बालक, . हरिण, अष्टापद, चमरी-मृग, हाथी, वन-लता और कमलोंके कारण अनेक वृक्षोंवाले उद्यानकी तरह मालम होनेवाला वह विचित्र तथा अद्भुत रचनावाला चैत्य बड़ा ही सुन्दर दिखाई देताथा । उसके आस-पास रत्नोंके खम्भे गड़े हुए थे। वह मन्दिर आकाशगङ्गाकी तरङ्गोंकी तरह मालूम पड़नेवाली ध्वजाओंसे बड़ा मनोहर दिखाई देता था, ऊँचे किये हुए सुवर्णके ध्वजदण्डोंसे वह ऊँचा मालूम होता था और निरन्तर फहराती हुई ध्वजाओंमें लगे हुए घुघरूकी आवाज़से वह विद्याधरोंकी स्त्रियोंकी कटि-मेखलाओंकी ध्वनिका अनुसरण करता हुआ मालूम होता था। उसके ऊपर विशाल कान्तिवाली पद्मरागमणिके कलशसे वह ऐसा मालूम होता