Book Title: Aadinath Charitra
Author(s): Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 564
________________ प्रथम पर्व | আৰিলাখ অমি मणिके ( लाल ) रंगके समान अङ्क-रत्नमय (श्वेत) थे और नाभि, केश-मूल, जिह्वा, तालु, श्रीवत्स, स्तनभाग तथा हाथ-पैरों के तलभाग सुवर्णके ( लाल ) थे। बरौनी, आँखकी पुतली, रोंगटे भौहें और मस्तकके केश रिष्टरत्नमय (श्याम ) थे। ओठ प्रबालभय ( लाल ), दांत स्फटिक रत्नमय ( श्वेत ) ; मस्तकका भाग वनमय और नासिका भीतरसे रोहिताक्ष-मणिके आभासकोसुवर्णकी-बनी हुई थी। प्रतिमाओंको दृष्टियाँ लोहिताक्षमणिके प्रान्त भागवाली और अङ्कमणिकी बनवायी गयी थीं। ऐसी अनेक प्रकारकी मणियोंसे तैयार की हुई वे प्रतिमाएं बहुत ही शोभायमान मालूम होती थीं। उन प्रतिमाओंमेंसे प्रत्येकके पीछे एक-एक यथायोग्य मानवाली छत्रधारिणी, रत्नमय प्रतिमा बनायी गयी थी। वे छत्रधारिणी पतिमाएँ कुरंटक-पुष्पकी मालाओंसे युक्त, मोतियों और लालोंसे गुथे हुए तथा स्फटिक-मणिके डंडोंवाले श्वेत छत्र धारण किये हुए थीं। प्रत्येक प्रतिमाके दाहिने-बाँयें रत्नोंके चंवर धारण करनेवाली दो प्रतिमाएँ और आगे नाग, यक्ष, भूत और कुण्डधार की दो-दो प्रतिमाएं थीं। हाथ जोड़े हुई, सर्वाङ्गमें उज्ज्वल शोभा धारण किये हुई, वे नागादिक देवोंकी रत्नमयी प्रतिमाएं ऐसी शोभायमान मालूम होती थीं, मानों वे वहाँ साक्षात बैठी हुई हों। देवच्छन्दके ऊपर उज्ज्वल रत्नोंके चौवीस घण्टे, संक्षिप्त किये हुए सूर्य-विम्बके समान माणिक्यके दर्पण, उनके पास उचित स्थानपर रखी हुई सुवर्णकी दीपिकाएँ, रत्नोंकी पिटारियाँ, नदीके

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