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आदिनाथ चरित्र
प्रथम पर्व
कर रखी हो, ऐसी ढाल-तलवार से सजे हुए प्रचण्ड शक्तिशाली वीर पुरुषोंके समूहसे राजद्वार शोभित हो रहा था । कहीं दूरही से नक्षत्रों तक बाण मारनेवाले और शब्दबेध करनेवाले वीर पुरुष, arrier area पीठपर रख, हाथमें कालपृष्ठ धनुष लिये खड़े थे। राजद्वारके दोनों ओर द्वारपालकी तरह दो हाथी अपने लम्बी सूंड़ लिये खड़े थे, जिससे वह राजद्वार बड़ा भया - चना दीख रहा था । उस नरसिंहका ऐसा भड़कीला सिंहद्वार ( प्रवेश-द्वार) देख, सुवेगका मन विस्मयसे भर गया । राजद्वार के पास आकर वह भीतर जानेकी आज्ञा पानेके लिये ठहर गया ; क्योंकि राजद्वारकी यही मर्यादा थी I उसकी बात सुन द्वारपालने भीतर जाकर राजा बाहुबलीसे निवेदन किया, कि आपके हैं बड़े भाईका सुवेग नामका एक डूत आकर बाहर खड़ा है। राजा के उसे बुला लाने की आज्ञा देने पर द्वारपाल उस बुद्धिमानों में श्रेष्ठ सुवेगको उसी प्रकार सभामें ले गया, जिस प्रकार सूर्यमण्डल में बुध 'प्रवेश करता है।
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वहाँ पहुंच कर पहले से ही आश्चर्य में पड़े हुए सुवेगने रत्न जड़े सिंहासन पर बैठे हुए बाहुबलीको तेजके मूर्त्तिमान देवताकी भाँति विराजित देखा ! आकाशके सूर्य की तरह रत्नमय मुकुट धारण करनेवाले बड़े-बड़े तेजस्वी राजा उनकी उपासना कर रहे थे अपने स्वामीकी विश्वासरूपी सर्वस्व वल्लीकी सन्तान, मण्डप - रूप, बुद्धिमान और परीक्षा में सच्चे उतरे हुए मंत्रियोंके समूइसे वे घिरे हुए थे । प्रदीप्त मुकुटमणियोंवाले और संसार
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