Book Title: Aadinath Charitra
Author(s): Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 549
________________ आदिनाथ चरित्र ५२३० प्रथम पट इस क्षेत्रके प्रभाव से तुम्हें परिवार सहित थोड़े ही समय में केवल -- ज्ञान उत्पन्न हो जायगा और शैलेशो-ध्यान करते हुए तुम्हें परिवार सहित इसी पर्वत पर मोक्ष प्राप्त होगा ।" • प्रभुकी यह आज्ञा अङ्गीकार कर, प्रणाम करनेके अनन्तर पुण्डरीक गणधर कोटि मुनियोंके साथ वहीं रहे। जैसे उद्घ लिंत समुद्र किनारोंके खण्डों में रत्त समूहको फेंक कर चला जाता है, वैसेही: उन सब लोगोंको वहीं छोड़कर महात्मा: प्रभुने परिवार सहित अन्यत्र विहार किया । उदयाचल पर्वत पर नक्षत्रोंके साथ रहनेवाले चन्द्रमाकी तरह अन्य मुनियोंके साथ पुण्डरीक गणधर उस पर्वत पर रहने लगे। इसके बाद परम संवेगवाले वे भी प्रभुकी तरह मधुरवाणीसे अन्यान्य श्रमणोंके प्रति इस प्रकार कहने लगे, -- · "हे मुनियों ! जयकी इच्छा रखनेवालेको जैसे सीमा- प्रान्तकी भूमिको सुरक्षित बनानेवाला किला सिद्धि दायक है, वैसेही मोक्षको इच्छा रखनेवालेको यह पर्वत क्षेत्र के ही प्रभावसे सिद्धि: देनेवाला है । तो भो अब हमलोगोंको मुक्तिके दूसरे साधनके समान संलेखना करनी चाहिये । यह संलेखना दो तरहसे होती है, - द्रव्यसे और भावसे । साधुओंके सब प्रकार के उन्माद और महारोगके निदानका शोषण करना ही द्रव्य-संलेखना कहलाती है. और राग, द्वेष, मोह और सब कषायरूपी स्वाभाविक शत्रुओं- ? का विच्छेद करना ही भाव-संलेखना कही जाती है ।" इस प्रकार : कहकर पुण्डरीक गणधर ने कोटि श्रमणोंके साथ प्रथमतः सब L

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