Book Title: Aadinath Charitra
Author(s): Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 553
________________ आदिनाथ-चरित्र ९२८ प्रथम पर्व • खानेवाली चमर डुलाने वालियोंकी राह भी नहीं देखते थे। बड़ी तेज़ीके साथ चलनेके कारण उछल-उछल कर छातीसे टकरानेवाला मोतियोंका हार टूट गया, सो भी उन्हें नहीं मालूम हुआ। उनका मन:प्रभुके ध्यानमें लगे होनेके कारण वे बार बार प्रभुका समाचार पूछनेके लिये छड़ीवरदारोंके द्वारा पर्वतके रखवालोंको ‘अपने पास बुलवाते थे। ध्यान-स्थित योगीके समान राजाको और कुछ भी नहीं दीख पड़ता था। वे किसीकी बात भी नहीं सुनते थे-केवल प्रभुकाही ध्यान करते हुए चले जा रहे थे।मानों 'अपने वेगसे रास्तेको कम कर दिया हो, इस प्रकार हवासे बातें. करते हुए तेज़ीके साथ चलकर वे अष्टापदके पास आ पहुँचे। साधारण मनुष्योंकी तरह पाँव प्यादे चल कर आनेपर भी परिश्रमकी कुछ भी परवा नहीं करते हुए वे चक्रवर्ती अष्टापद पर चढ़े। वहाँ पहुँचकर शोक और हर्षसे व्याकुल हुए राजाने जग. स्पतिको पयङ्कासन पर बैठा देखा। प्रभुकी प्रदक्षिणा कर, वन्दना करनेके अनन्तर चक्रवर्ती देहकी छायाके समान उनके पास बैठकर उनकी उपासना करने लगे। " ..... - "प्रभुका ऐसा प्रभाव वर्त्तते हुए भी इन्द्रगण अपने स्थान पर कैसे बैठे हुए हैं ?" मानों यही बात सोच कर उस समय इन्द्रोंके आसन डोल गये । अवधिज्ञानसे आसन डोल जानेके कारणकोजानकर इन्द्रगण उसी समय प्रभुके पास आ पहुँचे । जगत्पतिको प्रदक्षिणा कर, वे विषादकी मूर्ति बने, चित्र-लिखेसे चुपचाप भंगसनके पास बैठ रहे ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588