________________
प्रथम पर
१६५ आदिनाथ-चरित्र छतमें उसी तरह लटका दिया, जिस तरह कि आस्मान में सूय लटका हुआ है। पीछे इन्द्रने अलकापुरी के स्वामी कुबेर को आज्ञा दी कि, तुम बत्तीस कोटि हिरण्य, उतनाही सोना, बत्तीसबत्तीस नन्दासन, भद्रासन एवं दूसरे भी अतीव मनोहर वस्त्र नेपथ्य प्रभृति संसारी सुख देनेवाली चीजें, जिस तरह बादल मेह बरसाते हैं; उसी तरह, प्रभुके मन्दिर में बरसाओ। कुवेरने अपने आज्ञापालक उम्भकन नामके देवताओं द्वारा, तत्काल, उसी प्रमाण में वर्षा करायी; क्योंकि प्रचण्ड-प्रताप पुरुषों की आज्ञा मुंहसे निकलते ही पुरी होती है। फिर ; इन्द्रने अभियोगिक देवताओं को आज्ञा दी कि, तुम चारों निकायों के देवताओं में इस बातकी डोंडी पिटवा दो कि, जो कोई अर्हन्त भगवान् और उनकी मा की अशुभ चिन्तना करेगा-उनका अनभल चीतेगा उसके सिरके, अर्जक मंजरीकी तरह, सात टुकड़े हो जायेंगे; यानी अर्जक वृक्ष की मंजरी के पककर फूटनेपर जिस तरह सात भाग हो जाते हैं ; उसी तरह जगदीश और उनकी जननी का बुरा चाहनेवाले के मस्तक के सात भाग हो जायेंगे। जिस तरह गुरु की वाणी को शिष्य उच्च स्वरसे उद्घोषित करता है, उसी तरह उन्होंने भुवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवता. ओंमें उसी तरह डोंडी पीट दी-सुरपति की आज्ञा सबको ज़ोरज़ोर से सुना दी। इसके बाद सूर्य जिस तरह बादल में जलका संक्रम करता है ; उसी तरह इन्द्रने भगवान् के अंगूठे में अनेक प्रकार के रसों से भरी हुई नाड़ी संक्रमा दी यानी जिस तरह