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सम्यक्त्व
सास्वादन
मिथ्यात्व . १
यह गुणस्थान-आरोहण का क्रम है । जीवात्मा सम्यक्त्व प्राप्त करने के लिए इस क्रम से आगे बढ़ती है। सर्वप्रथम पहले मिथ्यात्व नामक गुणस्थानक पर जीव यथाप्रवृत्तिकरण आदि करण करता है और अशद्ध पंजों को शद्ध करके आगे बढ़ता है। सम्यक्त्व प्राप्ति की सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए राग-द्वेष की ग्रन्थि का भेदन, अपूर्वकरण की प्रक्रिया द्वारा, करके प्रथम मिथ्यात्व नामक गुणस्थान की जेल से मुक्त होकर,सीधा ही चौथे अविरत सम्यक्दृष्टि नामक गुणस्थान पर पहुँचता है । सम्यक्त्व प्राप्त होते ही जीव चौथे गुणस्थान पर आरूढ़ हो जाता है । यद्यपि यह गुणस्थान अविरत है, फिर भी यहाँ सम्यक् श्रद्धा की कक्षा पूर्ण है । जीव की सच्ची श्रद्धा में कोई कमी नहीं है। अनन्त काल के परिभ्रमण में जीव ने ऐसी सिद्धि, जो पहले कभी भी प्राप्त नहीं की थी, उस सिद्धि को प्राप्त करता है । सर्व प्रथम बार सम्यक्त्व प्राप्त करने का जीव को अवर्णनीय आनन्द होता है।
॥ सर्वेऽपि सन्तु सम्यग्दर्शनिनः॥
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आध्यात्मिक विकास यात्रा .