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स्थिति अनादि-3 - अनन्त काल से जैसी चली आ रही है वैसी आगे भी चलती ही रहेगी। छुटकारा असंभव लगता है ।
हाँ, एक मात्र उपाय प्रबल पुरुषार्थ करने का ही है। और वह पुरुषार्थ कैसा किस दिशा में हो ? क्या और कैसा उपाय - - पुरुषार्थ के रूप में करें ? इसके लिए एक ही सलाह – सूचना श्शायद पर्याप्त है । .. हे चेतनात्मा ! जो जो प्रवृत्ति तूं .. दोषों की पापों के आचरण की कर रहा है उसे सबसे पहले करना छोड़ दे। नए पाप कर्मों को करना छोडना ही सभी दिशा में पुरुषार्थ है । अभी अभी जो पीछे मोहनीय कर्म की प्रवृत्तियों - प्रकृतियों का वर्णन देख आए हैं समझ आए हैं, उन उन दोषों का वैसा आचरण – सेवन न करना, तथाप्रकार के गुणों का आचरण करना ही एक मात्र विकल्प है। “नए कर्मों को न करना तथा पुराने कर्मों को सर्वथा न रखना " बस, इसे ही जीवन मन्त्र बना लीजिए। और ऐसा लक्ष्य रखकर जीवन जीने का प्रारंभ कर दीजिए । सचमुच, आप सच्चे साधक जागृत आराधक बन जाएंगे । जागृति आवश्यक है । जागृति से अप्रमत्त भाव आएगा । और ऐसा अप्रमत्त भाव यथाशीघ्र मोक्ष की तरफ प्रयाण कराएगा । उसमें प्रगति लाएगा। गुणोपासना - गुणों की उपासना करनी ही सच्चा धर्म है। " गुणों का विकास करना है और कर्मों का विनाश करना है ।" बस, साधक इसे हमेशा के लिए अपना जीवन मन्त्र बना ले, यही साध्य है । इसे ही साधना बनाकर आगे बढना है ।
जैसे जैसे कर्मों का क्षय होता जाएगा वैसे वैसे आत्मा के गुण बढते ही जाएंगे। यह परिणाम-फल का स्वरूप है। जबकि जैसे-जैसे गुणों का विकास आप साधते जाएंगे वैसे वैसे कर्मों का प्रमाण घटता ही जाएगा। इसलिए “गुणोपासना” और “कर्म वासना का क्षय " यही एक मात्र लक्ष्य बनाकर चलना चाहिए ।
गुणोपासना सर्वश्रेष्ठ धर्म है। नए पाप कर्म न करना यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है । और आज धर्म करने में गुणों को विकसाते हुए आगे बढ़ना, या गुणलक्षी धर्म करना ही लोगों को ज्यादा कठिन लगता है। अपने पापों को ऐसे ही रखते हुए कुछ पुण्य संपादन कर लेने का धर्म लोगों को आसान लगता है । इतना ही नहीं अपने विषय - कषायरूप मोहनीय कर्म की पुष्टि करना, उन्हें पोषना, पोषते हुए जो भी प्रक्रिया हो उसे ही धर्म कह देना, या मान लेना जीवों को ज्यादा आसान लगता है। जैसे मीठा शक्करवाला दूध ही जीवों को ज्यादा रुचिकर लगता है । जीव यह नहीं समझते हैं कि .. यह ज्यादा शक्कर कृमि करनेवाली, कफ करनेवाली, नुकसान करनेवाली है। इसका विचार किये बिना अंधाधून ' शक्कर का उपयोग उचित नहीं है । ठीक इसी तरह विषय - कषायों की पुष्टि करते हुए
आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
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