Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 449
________________ ५ प्रकार की समिति, + ३ गुप्ति,+ २२ परीषह, + १० प्रकार के क्षमादि यतिधर्म, + १२ प्रकार की अनित्यादि भावनाएं, + तथा ५ प्रकार के चारित्र, इस तरह कुल ५७ भेद का संवर तत्त्व नौं तत्त्व में दर्शाया गया है । ये ५७ प्रकार संवर के हैं जो पापों के आश्रव को निरोध करता है । रोकता है । इर्या समिति आदि पाँचों प्रकार की समिति का पालन करते हुए जीव जीवों की विराधना-हिंसादि जन्य पापों से बचता है। तीन प्रकार की मन-वचन-काया की गुप्ति रखने से मनादि तीनों से लगनेवाले पाप नहीं लग पाते हैं । २२ प्रकार के क्षुधा-प्यास-शीत-उष्णादि परीषहों को सहन करने से भूख-प्यास आदि के असहिष्णुता के कारण जिन पापकर्मों का आगमन आत्मा में होता था वह रुक जाता है। इसी तरह क्षमा-मृदुता-ऋजुता आदि जो १० प्रकार के यतिधर्म हैं उनका आचरण करने से कषाय आदि जन्य कर्मों के आश्रव से बचा जा सकता है । क्षमा रखने. से क्रोध से बचा जा सकता है। नम्रता से अभिमान के.कषाय से बचा जा सकता है। सरलता से माया के पाप से, तथा संतोष से लोभ के पाप से बचा जा सकता है । १८ प्रकार के पापस्थान हैं जो आश्रव के कारणरूप हैं । ४२ प्रकार के आश्रव द्वारों से बचने के लिए ५७ प्रकार के सभी संवर के भेदों का उपभोग किया जा सकता है । १२ प्रकार की भावनाएं महापुरुषों ने दर्शायी है। अनित्य-अशरण-एकत्व-अन्यत्व-अशुचि आदि १२ भावनाएं हैं। (लेखक पंन्यास अरुणविजय महाराज ने १२ भावना के विषय पर स्वतंत्र रूप से पुस्तक लिखी है । उसका नाम है- “भावना भवनाशिनी” । इसमें विस्तार से १२ + ४ = १६ भावनाओं का विशद वर्णन है । अवश्य पढिए।). मनुष्य विचारक प्राणी है । संज्ञि-समनस्क-मनवाला होने के कारण विचार हमेशा ही करता रहता है । न करने के अयोग्य राग-द्वेष के विचारों के कारण मानसिक कर्म का बंध भी बहुत ज्यादा करता रहता है । अतः उसे रोकने के लिए...१२ प्रकार की भावनाओं की व्यवस्था महर्षियों ने की है। उनके विषयरूप में संसार के समस्त विषयों को समाविष्ट किया गया है । अतः संसार की समस्त वस्तुओं एवं व्यक्तियों के निमित्त लगने-होनेवाले पापकर्मों को ये अलग-अलग भावनाएं बरोबर रोकती हैं। अतः इन १२ भावनाओं का चिन्तन नित्य-नियमित करना चाहिए। व ५ प्रकार के चारित्र हैं । जिसमें सामायिक का तथा दीक्षादि सबका समावेश किया गया है । अविरति में रहने से जितने पापकर्म लगते ही जाते हैं उतने सब पापों को रोकने के लिए पाचों प्रकार के चारित्र समर्थ-सक्षम है । इस तरह ५७ प्रकार के संवर के ये सभी भेद संसार के समस्त पापों को रोक सकते हैं। रोकने में समर्थ-सक्षम हैं । बस, जीव ८५४ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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