Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 564
________________ है तो उसे त्यागी कैसे कहा जाय? कहावत कहती है कि- “न मिलि नारी तो बावा हुआ ब्रह्मचारी" । यह तो गलत है । यहाँ अभावात्मक त्याग है । अतः ऐसे ब्रह्मचारी का विश्वास नहीं किया जा सकता। शायद कल कोई नारी मिल जाय तो वह ब्रह्मचारी पक्का बना रहेगा या नहीं? यह शंकास्पद है । अतः सद्भावात्मक त्याग की व्याख्या आगे स्पष्ट की है जे अकंते पिए भोए, लद्धे वि पिट्टि कुव्वई। साहीणे चयइ भोए, से हुचाइ त्ति वुच्चइ ॥३॥ - जो पुरुष कांत-मनोहर प्रिय ऐसे भोगोपभोग के पदार्थ-वस्त्र-कपडे लत्ते, अत्तर-विलेपनादि सुगंधित पदार्थ, सौंदर्य प्रसाधन, तथा सुंदर मनमोहक गहने-आभूषण, स्वर्ग की अप्सरा जैसी रूपवती स्त्रियाँ, सुंदर आसन एवं पलंगादि सब प्रकार के मनपसंद भोगों और विषयों की प्राप्ति होने के बावजूद भी वह उन भोगों और विषयों से मुँह फेर लेता है, अरे ! सामने देखने तक के लिए भी तैयार न हो, मन से विचारमात्र करके भी भोगने की इच्छा न रखे, मन से ही लात मारकर दूर से ही छोड़ देता है वही निश्चित रूप से-निश्चय नय से सच्चा त्यागी कहलाने लायक है। दशवैकालिक आगम के टीकाकार पू. हरिभद्रसूरि म. फरमाते हैं कि.. “अत्थपरिहीणो वि संजमे ठिओ तिणि लोगसाराणि अग्गी उदगं महिलाओ य परिच्चयंते चाइत्ति” । धन संपत्ति-वस्त्रादि सामग्री से रहित ऐसा चारित्रवान् पुरुष यदि लोक में सारभूत ऐसे-अग्नि, पानी और स्त्री इन मुख्य तीन का सर्वथा त्याग कर दें, स्पर्श मात्र न करें तो वह सच्चा त्यागी कहलाता है। सभी जानते ही हैं कि... संसार में अपरिमित धन संपत्ति मिलने पर भी कोई अग्नि, पानी और स्त्री को स्पर्श करने का छोड ही नहीं सकता है । इसलिए इनको छोडनेवाला महान त्यागी कहलाता है। राजगृही नगरी में अभयकुमार जैसे बुद्धिनिधान ने रास्तों के बीच हीरे मोती... और रत्नों का ढेर करवाया और कहा कि जो भी कोई व्यक्ति आजीवनभर अग्नि, पानी और स्त्री का स्पर्शमात्र भी न करे उसे मैं ये तीनों रत्नों के ढेर को अवश्य इनाम के रूप में दे दूँगा। लेकिन समस्त प्रजा में से कोई भी तैयार नहीं हुआ। हाँ, रत्नों के ढेर लेने के लिए सभी तैयार थे, चाहते भी थे, लेकिन ये शर्त बडी कठिन लगती थी। असंभव सी लगती थी। लोग सोचते थे कि इतने भारी रलों के ढेर के ढेर ले तो लें लेकिन फायदा क्या? बिना पानी का, अग्नि का स्पर्श किये कैसे जीएंगे? और फिर जब संसार के सब सुख-भोग भोगने हैं तो स्त्री के बिना क्या करेंगे? इसलिए सब ना कहते थे । अभयकुमार अप्रमत्तभावपूर्वक "ध्यानसाधना" ९६९

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