Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 566
________________ के सभी पदार्थ इन्द्रियों शरीर और मात्र मन को ही रुचिकर लगते हैं । इनके उपयोगी और सहयोगी हैं । बस, भोग- उपयोग की साधन सामग्रियों से तो मात्र इन्द्रियों मन और शरीर को ही मजा आएगी । परन्तु आत्मा को तो और ज्यादा सजा भुगतनी पडेगी । क्यों कि ये मन, शरीर और इन्द्रियाँ इनके अनुकूल २३ विषयों को भोगने के पीछे भारी कर्मों का उपार्जन कराएगी। नए कर्म ज्यादा बंधाएगी। इसके कारण पुनः चेतनात्मा को कर्म की सजा भुगतने के लिए नए जन्म लेने पडेंगे । और वे जन्म चारों गति में कहीं भी हो सकेंगे । फिजुल में अल्पकालीन विषय भोगों से जन्य सुख की मजा प्राप्त करते जाने के कारण उपार्जित पाप कर्मों की भारी सजा भी जन्मान्तरों में भुगतनी पडती है। इसलिए भविष्य का लम्बा विचार करके दीर्घदर्शिता के आधार पर भगवान तीर्थंकर प्रभु ने त्याग धर्म की आचार संहिता सुंदर बनाई। ऐसा सुंदर आचार धर्म बनाया कि... उसमें त्याग - तप की सुंदर व्यवस्था कर दी। जिससे संसार को त्याग करनेवाले त्यागी को पुनः कर्मबंध न हो, और भव संसार की परंपरा न बढे । इसलिए त्याग धर्म महान है। उपयोगी ही क्या यह तो महान उपकारी है । 1 अब त्यागधर्म का अप्रमत्त भाव के साथ भी काफी अच्छा संबंध है । क्योंकि यदि संसार का त्याग करने के पश्चात् भी कोई इन सुख भोगों की साधन सामग्रियों के पीछे ही लालयित रहेगा तो वह अप्रमत्त कैसे बन पाएगा? संभव नहीं है । जैसे जैसे विषयसुख - तथा भोग भोगने जाएगा वह प्रमादी ही कहलाएगा। इसलिए शास्त्रकार महर्षी ने पाँच प्रकार के प्रमादों में “मज्जं - विसय - कसाय" की गाथा में विषयों को भी प्रमादान्तर्गत ही गिना है। बात भी बिल्कुल सही है कि... विषय भोग जन्य सुखों को भुगतने में वह साधक ध्यान तप-जप भावनायोग आदि किसी भी प्रकार की साधना में वह अप्रमत्त रह ही नहीं सकता है। संभव भी नहीं है । पाँचों इन्द्रियों के विषय भोगों को भुगतते समय कोई भी साधक ध्यान में तल्लीन, प्रभु स्मरण में लीन कैसे रह सकता है ? संभव ही नहीं है । दूसरी तरफ आगे-आगे के गुणस्थानों पर अग्रसर होनेवाला साधक जो आत्माभिमुखी, आत्मसन्मुख, मोक्षाभिलाषी बनता ही जा रहा है। ऐसा आत्माभिलाषी, आत्मसन्मुखी साधक जो देहभाव से ऊपर उठ जाता है वह क्यों इन निम्न कक्षा के भोगों में डूबेगा ? इनकी अभिलाषा फिर वापिस क्यों करेगा? जो भी कोई एक बार गटर - कीचड से गंदे-मैले हुए पैरों को धो डालता है वह दुबारा क्यों उसमें वापिस पैर डालेगा? ठीक उसी तरह जिन विषय-भोगों को भोगकर, भारी कर्म उपार्जन कर जो अप्रमत्तभावपूर्वक " ध्यानसाधना " ९७१

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