Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 492
________________ सम्यग्दृष्टि श्रद्धालु श्रावक है, और पाँचवे पर व्रतधारी श्रावक है । देशविरतिधर है । इस तरह ये दोनों गुणस्थानक श्रावक के हैं। तो क्या श्रावक प्रमादग्रस्त है या नहीं? जी हाँ, अवश्य ही होता है। अतः ऐसा प्रमादाधीन श्रावक गृहस्थाश्रम में रहकर निरालम्बन धर्मध्यान कैसे कर सकता है ? संसार में गृहस्थाश्रम के जीवन में रहना, वह भी अविरति में रहना और सर्वथा प्रमादरहित होकर रहना, कभी संभव भी हो सकता है ? और यदि नहीं संभव है तो फिर ऐसी प्रमादाधीन स्थिती में निरालम्बन धर्मध्यान कैसे संभव हो सकता है? हाँ, यदि सारी स्थिति छोडकर ध्यान आदि की साधना में स्थिर हो सके तो कुछ क्षणों के लिए ध्यान की प्राप्ति सुलभ हो सकती है । लेकिन वह ध्यान भी निरालंबन होने के बजाय सालंबन ज्यादा संभव है। अतः एक बात निश्चित होती है कि.. ध्यान और अप्रमत्तता का परस्पर अच्छा ऊँचा संबंध है । ये दोनों अन्योन्याश्रयी हैं । लेकिन प्रमादावस्था से तो सर्वथा विपरीत ही हैं। प्रमादरहित को ही निश्चल ध्यान प्रमाद्यावश्यकत्यागा-निचलं ध्यानमाश्रयेत् । योऽसौ नैवागमं जैनं, वेत्ति मिथ्यात्वमोहितः ॥३०॥ प्रमाद में रहकर भी जो जीव आवश्यक क्रियाओं का त्याग कर देता है, अर्थात सामायिक प्रतिक्रमणादि छोड देता है, वह निरालम्बन धर्मध्यानादि का आश्रय लेता है तो सचमुच ऐसे जीव मिथ्यात्व से वासित होकर जिनेश्वर सर्वज्ञों के तत्त्व-वचन को नहीं समझते हैं । इससे वे जैन आगम के मर्म को नहीं जानते हैं, ऐसा स्पष्ट होता है । गुणस्थान क्रमारोह ग्रन्थकार महर्षि ने साफ शब्दों में यह स्पष्ट करते हुए साधक को भी लाल बत्ती दिखायी है। ध्यान की साधना में जाकर एक तरफ अप्रमत्त बनना है, कर्मक्षय-निर्जरा प्रमाण में ज्यादा करनी है तो फिर दूसरी तरफ आवश्यकादि के त्याग की बात ही क्यों करनी? क्योंकि षडावश्यक संवररूप तथा निर्जराकारक उभयरूप है। प्रतिक्रमण पापों के पश्चाताप, प्रायश्चित्तरूप, क्षमायाचनारूप तथा कर्मबंध को शिथिल करनेरूप है। और सामायिक-चैत्यवंदन-वांदणादि निर्जरा भी काफी अच्छी कराते हैं। पच्चक्खाण भी संवर-निर्जरा दोनों कराते हैं। आश्रव निरोधात्मक संवर है । तथा संवर निर्जरा का प्रवेशद्वाररूप है । निर्जरा के पहले संवर का होना अत्यन्त अनिवार्य है । यदि संवर नहीं करते हैं तो फिर आश्रव से पुनः कर्म का बंधमार्ग चालू रहेगा। यदि आश्रव हो जाता है तो फिर कर्म का बंध होने में कितना समय लगेगा? पानी में नमक, या दूध में शक्कर 'कर्मक्षय- "संसार की सर्वोत्तम साधना" ८९७

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