Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 547
________________ मिश्याना माम्बाद अनन्तानबंधी आदि १६ कषाय । छ8 गुणस्थान पर साधु बन जाने के बावजूद भी प्रमाद नामक बंधहेतु से पापकर्मों का आगमन चालू ही रहता है । यदि साधक श्रमण ७ वे अप्रमत्त संयत गुणस्थान पर एक सोपान और आगे चढ जाय तो प्रमाद बंधहेतु भी बन्द हो जाएगा। फिर प्रमादजन्य जो कर्मबंध होता है वह भी बन्द हो जाएगा। इसलिए किसी भी रूप से प्रमाद से बचना ही, प्रमाद के त्यागपूर्वक अप्रमत्त भाव से साधना में करने पर राग-द्वेष जनित कर्म से बचा जा , सकता है । अब आगे विकास हो सकता है। प्रमाद बाधक है । विकास का अवरोधक है। जबकि अप्रमत्त भाव आगे के विकास के लिए काफी अच्छा सहायक है। ७ वे गुणस्थान पर आरूढ हो जाने के पश्चात् अब ३ बंधहेतुओं के द्वार बंध हो जाते हैं। अब सिर्फ २ बंधहेतुओं के द्वार खुल्ले रहते हैं। कषाय और योग। कषाय क्रोध-मान-माया और लोभ ये चारों कषाय अनन्तानुबंधी आदि ४ के साथ ४x ४ = १६ प्रकार के होते हैं। इन १६ प्रकार के कषायों में चार-चार की टुकडी बनती है। और ये भी गुणस्थानों पर बाधक-अवरोधक बनती हैं। उनका निर्देश निम्न क्रम से देखिए इस तालिका को देखने से स्पष्ट ख्याल आ जाएगा। १ ले मिथ्यात्व गुणस्थान पर अनन्तानुबंधी चारों कषायों का जोर ज्यादा रहता है। वैसे भी मिथ्यात्व के साथ इन अनन्तानुबंधी चारों कषायों का गहरा-गाढ ९५२ ' आध्यात्मिक विकास यात्रा अप्रत्याख्यानीय आदि १२ कषाय । प्रत्याख्यानीय आदि ८ कषाय । संज्वलन आदि ४कषाय। सक्ष्म सपा उपशांत मोल उपशात माह - माहा कवला सयोगी

Loading...

Page Navigation
1 ... 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570