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। तरीके से ३६ गुण, फिर दूसरे तरीके से और ३६ गुण, फिर तीसरे तरीके से ३६ गुण ।
इस तरह ३६ तरीके से भिन्न भिन्न दृष्टि से ३६-३६ गुणों की छत्तीसीयाँ बनाई हैं । कहा है कि
छत्रीश छत्रीशी गणे, युगप्रधान मुणींद।
जिनमत परमत जाणता, नमो नमो ते सूरींद।। वीशस्थानक विधि के ग्रन्थ में तीसरे आचार्य पद के दोहे में उपरोक्त बात करते हुए कहा है कि ऐसे ३६-३६ गुणों की ३६ छत्तीसीयाँ इकट्ठी करने पर ३६ ४ ३६ = १२९६ कुल गुण होते हैं। इसी तरह उपाध्यायजी महाराज के जो २५ गुणों की २५ पच्चीसियाँ हो तो २५४ २५ = ६२५ गुण होते हैं । और इसी तरह साधु के भी २७ गुणों की २७ सत्ताईसियाँ की जाय तो २७ x २७ = ७२९ गुण होते हैं। इनमें अपने पद के गुण तथा गुरु होने के नाते के प्राथमिक ३६ गुण मिलाकर गुणों की संख्या में वृद्धि की गई है । ३६ गुण आचार्य भगवंत के निश्चित है । ऐसे ३६ गुणों का एक समूह आचार्य के गुण बराबर है । परन्तु उत्कृष्ट कक्षा से ऐसे भी आचार्य महाराज होते हैं जिनके उत्कृष्ट से ३६ छत्तीसियों के हिसाब से १२९६ गुण भी होते हैं । परन्तु जघन्य से ३६ गुण होने अनिवार्य हैं।
. इसी तरह उपाध्यायजी के २५ गुणों का एक समूह और ३६ गुण मूलभूत गुरूपद के होने आवश्यक हैं । एक तरीके से २५ गुणों का समूह होना ये जघन्य गुण है। और उत्कृष्ट रूप से उपाध्यायजी के २५-२५ गुणों के समूहात्मक पच्चीसियों के आधार पर ६२५ गुण होते हैं । लेकिन कम से कम २५ गुण होने ही चाहिए । इसी तरह साधु भगवंत के बारे में भी समझना चाहिए । २७ गुण साधु पद के और मूलभूत गुरू पद के ३६ गुण इस तरह दोनों होने चाहिए । उत्कृष्ट साधुता की कक्षा के शिखर पर पहुँचे हुए साधुओं में २७ तरीके से २७ सत्ताईसियों के आधार पर ७२९ गुणों की भी संभावना है । इस तरह इन गुणों के धारक ऐसे गुरु भगवंत होते हैं। . _____ आचार्य भगवंत की ३६ तरीके की ३६ छत्तीसियों में एक छत्तीसी पंचिंदिय सूत्र की भी हो सकती है । इनमें से तीनों की एक एक गुणसमूहात्मक छत्तीसी आदि यहाँ पर दी जाती है।
साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन
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