Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
सम्पादक डॉ. कमलचन्द सोगाणी
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी (राजस्थान)
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
सादर मेंट अन विद्या संस्थान समिति
सम्पादक डॉ० कमलचन्द सोगाणी
(पूर्व प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र) सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
राजस्थान
(1)
For Private & Personal use only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशकः
अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी, श्री महावीरजी - 322 220 (राजस्थान)
प्राप्ति स्थान
1. जैनविद्या संस्थान, श्री महावीरजी 2. साहित्य विक्रय केन्द्र
दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी, सवाई रामसिंहरोड, जयपुर - 302 004
प्रथम संस्करण अगस्त २००६
मूल्य : 250/
० सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
पृष्ठ संयोजन श्याम अग्रवाल, ए-336, मालवीय नगर, जयपुर
मुद्रक: जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि.. एम.आई.रोड, जयपुर - ३०२ ०१७
For Private & Personal use only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाण्डुलिपियों के उद्धारक प्रदेय स्व. पण्डित चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ
को सादर समर्पित
Lain Education Intematon
For Private & Personal use only
www.ainelibrary
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
For Private & Personal use only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
विषयानुक्रमणिका
पाठ
m
प्रकाशकीय पाण्डुलिपि अक्षर चार्ट पाठ संख्या पाण्डुलिपि पाठ - १ भगवती आराधना पाठ - २ भगवती आराधना
अष्टपाहुड पाठ
अष्टपाहुड पाठ
अष्टपाहुड
अष्टपाहुड पाठ-७
दशवैकालिक पाठ-८
कुम्मापुत्तचरियं पाठ-९
कुम्मापुत्तचरियं पाठ - १० कुम्मापुत्तचरिअं पाठ -११ उत्तराध्ययन
» 3
पाण्डुलिपि संवत् १५२१, १७६० १५२१, १७६० १८०१ १८०१ १८०१ १८०१ १८३७ १८६९ १८६९ १८६९ १८९५
पाठ
9
For Private & Personal use only
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ - १२ पाठ - १३
१८९५
पाठ संख्या पाठ - १ पाठ -२
पाठ-३
पाठ - ४ पाठ-५ पाठ-६ पाठ-७ पाठ-८ पाठ -९ पाठ - १० पाठ - ११ पाठ - १२ पाठ- १३
Mm39 .
उत्तराध्ययन
१८९५ उत्तराध्ययन राजस्थान में प्राकृत-अपभ्रंश की पाण्डुलिपियाँ : परिचय पाण्डुलिपि का आधुनिक पद्धति में रूपान्तरण पाण्डुलिपि
पाण्डुलिपि संवत् भगवती आराधना
१५२१, १७६० भगवती आराधना
१५२१, १७६० अष्टपाहुड
१८०१ अष्टपाहुड
१८०१ अष्टपाहुड
१८०१ अष्टपाहुड दशवैकालिक
१८३७ कुम्मापुत्तचरियं
१८६९ कुम्मापुत्तचरियं
१८६९ कुम्मापुत्तरियं
१८६९ उत्तराध्ययन
१८९५ उत्तराध्ययन
१८९५ उत्तराध्ययन
१८९५
१८०१
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(VI)
For Private & Personal use only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशकीय
'प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका' विद्यार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है।
यह कहना निर्विवाद है कि भारत की संस्कृति व उसका साहित्य मौखिक परम्परा से रक्षित होता हुआ पाण्डुलिपियों के माध्यम से सुरक्षित रहा है। छापेखाने के विकास के पूर्व स्वाध्याय व ज्ञान-प्रसार का आधार पाण्डुलिपियाँ ही थीं। एक ही पाण्डुलिपि की कई प्रतिलिपियाँ करवाकर विद्वानों एवं स्वाध्यायियों को अध्ययनार्थ उपलब्ध कराई जाती थीं। इस तरह एक ही पाण्डुलिपि की प्रतियाँ विभिन्न स्थानों पर प्राप्त हो जाती हैं। विभिन्न पाण्डुलिपि संग्रहालय इसी प्रवृत्ति के परिणाम है। नागौर, जैसलमेर, पाटण, जयपुर आदि अनेक स्थानों के पाण्डुलिपि संग्रहालय भारत की सांस्कृतिक निधियाँ हैं। हमें गौरव है कि हमारे पूर्वजों ने इन संग्रहालयों की सुरक्षा करके संस्कृति के संरक्षण में जो योगदान दिया है वह अपूर्व है और भावी पीढ़ी के लिए एक उदाहरण है। इन संग्रहालयों में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी आदि विभिन्न भाषाओं में लिखित विभिन्न विषयों की पाण्डुलिपियाँ संगृहीत हैं।
___ यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि पाण्डुलिपियाँ एक विशेष पद्धति से लिखि जाती हैं। उनमें शब्द मिले हुए होते हैं। मात्राएँ विशेष प्रकार से लगाई जाती हैं। कोई पैराग्राफ नहीं बनाया जाता है। कोई-कोई अक्षर विशेष प्रकार से लिखे जाते हैं। उद्देश्य यह होता है कि कम से कम स्थान में अधिक से अधिक विषय सामग्री प्रस्तुत की जा सके। छापेखानों के विकास के बाद मुद्रित पुस्तकों की पद्धति बदली। शब्द अलग-अलग किए गए। मात्राएँ उचित स्थान पर लगाई गई और अक्षरों का आकार नियत कर दिया गया। अतः मुद्रित पुस्तकें आसानी से पढ़ी जाने लगीं, किन्तु धीरे-धीरे पाण्डुलिपि को पढ़ने वाले नगण्य होते गए। आज हम प्राकृत भाषा को भूल गए और जब भाषा ही भूली जाए तो उस भाषा की पाण्डुलिपि को समझना तो असम्भव ही है। इस भाषा को पुनर्जीवित करना राष्ट्रीय धर्म है और सामाजिक-सास्कृतिक आवश्यकता है।
For Private & Personal use only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रसन्नता की बात है कि दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी ने जैनविद्या संस्थान के अन्तर्गत १९८८ में 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना करके प्राकृत भाषा को सिखाने का कार्य पत्राचार के माध्यम से प्रारम्भ किया। इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु 'प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' भाग-१, २ आदि कई पुस्तकें अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित हैं। इसी क्रम में 'प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका' विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत की जा रही है। इसमें जिन काव्याशों को संग्रह किया गया है उनका आधुनिक पद्धति से रूपान्तरण भी इसी पुस्तक में दे दिया गया है। विद्यार्थी पाण्डुलिपि के काव्याशों और रूपान्तरण की तुलना करके पाण्डुलिपि को पढ़ना सीख सकेंगे और उसका समुचित अभ्यास कर सकेंगे।
इस चयनिका में राजस्थान के उन शास्त्र भण्डारों का परिचय भी प्रस्तुत है, जहाँ प्राकृतअपभ्रंश की पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध है। इस सामग्री का चयन मुख्यतया जैनविद्या संस्थान (पूर्व में साहित्य शोध विभाग) द्वारा प्रकाशित एवं डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल तथा पण्डित अनूपचन्द न्यायतीर्थ द्वारा सम्पादित 'राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची' के पाँच भागों से किया गया है।
उक्त चयनिका के प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती शकुन्तला जैन एवं श्रीमती शशिप्रभा जैन के आभारी हैं।
मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राइवेट लिमिटेड धन्यवादाह हैं। नरेश कुमार सेठी नरेन्द्र पाटनी डॉ. कमलचन्द सोगाणी अध्यक्ष मंत्री
संयोजक प्रबन्धकारिणी कमेटी
जैनविद्या संस्थान समिति दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र
श्री महावीरजी १ अगस्त, 2006 तीर्थंकर श्रेयांसनाथ मोक्षकल्याणक दिवस वीर निर्वाण सम्वत् 2532
.
जयपुर
For Private & Personal use only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
中, w" by mg & R
《蓝w 他乐 % 近6
For Private & Personal use only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(x)
P 9MC.
""
अ = श्र
आ:
for frer in 5 क् ल त के
ई -
श्रा
liyur
इ.
+
ई
उ. उ
र्ड ऊं
ओ = उं ऐ
= श्रइ
और ऋ
दि
क्रु = कु
कूल
कु
वखु कखो = रको
कक्क
रख, व
ग्ग
गि
ए
= ग्रां. सं
नि
च
चि
चि
द्व - ह छ
ज
13
ॐ
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
to the han hele
ks w
ity के
-
INE Fe
lo
hey here
-
घ, ध
- झशक द्ध. द्ध निक शिट्ट .
8 ८ - ट - हु
ब वि ति
- व्च एि गि): णि - 6 - ल ए एण)- म तनु
3-
aw han
to has too tu how CE
E
in qu
hoog
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(XI)
For Private & Personal use only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
For Private & Personal use only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १ भगवती आराधना
%3
४०
2
समवाहस्सासनिहलातहासमाmamareway | MainाणुशपिमाणुगालोमाAEMYणरतायहर हिनिसामणिनानीmraamarwariसिशिव
यादेशानहाHिumstaमोनाsोहोरोग्देमा MORgOneजपस्विडणविसंसमिटेमामविरोधिदिति पिरणामजादासिणिवागममित्रहोत्रविरोविnaomaratmपरपस्या हितिsanlagaarmarमहंसmumलायसिसुरासुरोsnamall
सयलोलोकलयावेजा ल नीवरेखुतलीलial दशलणवितेलापरिवडदिक्षपमिदेणमलmantitatun
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(
१
)
For Private & Personal use only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
लयसम्मतंबरक्यमुरलहलिमारलंMAMAR शिवेदियपत्र यणवायरियसवसाधूनिकरेहिमाणिमितिणनाmusaणि रिणामिलामंदरोवणिमासदेहानिशीwmसिसाणायाl सामाणिarismभिखारेजngणालियरेक्षेत्रासिविपरसहाMum| हसिध्वदिापयशायरियसमाधूरामतीहोदिसमसार क्षतिail पहा विजाविभतिवसायविमुख्यादिहोधिसकालाकिहलणिबुदिनामि महरिHिTRANUSAसिंचाmammiminaरेकोजागरोनाति संजतोसालिसोफसवयदिsralपाविणाससंक्षिसोवासनाall marnew a तिमataunifafarmeसससमजाकि
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
in Education Intematon
For Private & Personal use only
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
हवदिवार हा दिमती
र स एतवा एंवेदनश्रभित्तेल ||चादभिहिलाहिदा थप भरहों देविंद याडिहे श्यते। जा होग धराया। शाही श्राय धुरतरमा महिदविदले साल शंसारसारखयकरं मामोचीने एमो का रंग अरहंतमहारोएछ। विहेवको भर (एएकाले सोजिराचयोदि हो संसारखे स मजेत्रावतभोकारेशदिशासभरणा एञ्चराऊतेहों तिस्माचाशंसा गंगा से मालायगोजतरो तिरमा माछा भरत चराएं!! श्राराधmपडाएंगे एतस्म करोपमो कामल रसधपड़ा यजदहचे धेनुका भस्स! पन्त्रणाली विथंगामाच्या राष्धिता मदोश मो कार चंपारा मेडिकल आदाय तोय सामही 11911 मेोका
लोभ गर
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
(३)
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
सावितजिहोकागाणेकससवितहस्सिmusnasal Iqसारेदियुरिसवाहित्यधिसायं
मुहकोदियाgarl मएहसप्पाजहमतेविक्षिणाompilaदिनानिएहसध्याagiragamll |MOMIEOPारमवितोहीणिशनिदेवलालमहाणियमिजाक्षि |Himaमामाजमmaadeोअविस्vall हामविविहिविगाहोलswarहासाउनुहोम || उनजिवामदवालियदहोसोटीसंगकाहिदिnawarहाmgना amarयस्सविसेसनेमामाणिजहाविधयावर्षोधक्ष्यवेगकरितस्सnank लाभदायोमकलरजस्सहियाविशुधलेशानिशादिहमारकमाan
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(४)
For Private & Personal use only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ २ भगवती आराधना
mamalaneloझोविmjayaramsपडियाavelammi रोगाजासमक्षाmjanससीधाजमायतियोतिएहमिय माजमारानियमादिहो। हाणाकाविलिंगमाहमति
संजमहीपोयनजाऊणधिणियकाEिommystomविनो| छदिमाखसmpaiगर्नुकडिमिनिध्यारंERNMAाखा मिलोगेजमोभराफिडिशयातायाहिंषुणलिए Insaneभुष्मामलहदायत्रणमाकातसुद्धावडशीकालादिवोजा महही भिसयालेस्वारसधिोखरवस्त्राधिलि| एविसमविपतिविभिपसंम्वगंधीशमारिदिशे
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
त्रभिरतमरणमsuTI परिदजीवणिकायवमall पायजेमिहिजारकावaeकारियाणमादेहिनanimlजहोणपियंseal हितसिपाणजाण्याअध्यावमिजीवमुहाहिसदाsunएहा हाधि परिदाविदाजावरणविजापडिकारकामmageसलिंग दिदिक्षरिसमयमुगaamanाज्ञिताविपरिशोहिताविधितो हजीववहां1991मधुकरिसमझियमवजयाच्यावसालियोसिलोस सारणान्नरेहिमालहसुपरकपनदिजाधिादिसणसmal रिताउरकजियसामनमाजमुणवत्राएंतोनिलोकजीविदादोवहिए रातिदेवहिणिोकोलोस्कसं चालान
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(६)
For Private & Personal use only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
५१ दिवसजीवितम्हणजाविधादाजीवरसोहितलोधासमIT कि माणदायबाथासायनिहामहलपथहिंसासमंजछि
16जयद्यासुभन्मवादोश्सचायतहासुस्वायंसालेसुदेह यसिसोविज्ञायामलािमीरामवावुहास्त्रहिंसापEMMसामाणिनिsanemaranemiasisamamalaनस्या रहहिंविधायहाणहणेमाचाBहजाणहिंसाविणाणेही|| लापितिवाणितिसेवररकणसासविससanामीलंवदेन | वाणिसंगामुस्वानीसियासविलिरख्याहीHिISmall सिमासमाहिदयंगवसनसनसदेसिबगुदेशापिंडासागचहिंसाचार
%3ENTATIL
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
||म्हारायणदिहिहररूपरस्मोदिशितपरिहानाहामधिगुणात्रहिंसाalll iiiafछिमणियनीयदिनदेपरमधोगपरमोधमोकिहाहाहो nayerimoniaणिकायमणविणादियदेमहािभिमुहर संगोतम्हासारकदिहिंसाजीवाशायजलासजीवावधाक्षणका दिसाजीवपरिहदिमाजाजिदकसालादाणेजिरवेयोसmamil एएसयासमवेक्ष्यावरहोदिहिंसाशकाएभुणिराएं। निफारमोजिभिणाणादिiिamamalayaभिहोदिक्षयलाहिंसा snwunारलेजावोसणासुमसरामविपारभारामणगाणा एविधावियसंबंधातासमवेशिया मारतोजावोस
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(८)
For Private & Personal use only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रष्टपाण
पाठ ३ अष्टपाहुड
आउँनमः सिद्धेः॥ का मोया २ || जिवश्वसदस्य वह प्राणस्सा देस लमग्गं दो चा मि||जदा कम्मं समासे ॥ शादंसणमूलोमो ॥ वश्यं जिए वरे दि सिस्माएं। तं सोऊण स कालो। दंसणदी गोणवं दिवे ॥ २॥ ससहानादंसण सहस्त्र एचिलिचाएं| सिंज्ञतिच रयन्ता||सणनद्वाण सिझति ॥ ३॥ सम्मन्त्ररा एन हाताबऊ विदाइसचाइ चारा | ट्यावि२दिया। नमंतितखेदत | ४ || सम्पतविर दिया विनंतयंवरंताएं। एलई
प्राकृत - पाण्डुलिपि चयनिका
(९)
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
तिवोझिलादालविवासमहम्मकोडीदिएसम्मतरणादसणावलवारियवहमाणस बाकलिकलुसयावरदिया|वरणाणीजंतिप्रश्रेण|६|सम्मत्रसलिलयवदोलिदियाए |यवदाजस्माकमवालयवरगावकवियाणासयतस्मा उदंसाणेमुनहाणेलन चरित्रतमायापदेतावितहासिसंबिडविणासंति जोकोविधशालासिंऊमतवा लिटामडोगगुणधारातस्मादासकदेतानमातमनदितिअदमूलम्मिविणक्षा
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(१०)
Jain Education international
For Private & Personal use only
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
अष्टपाव
2
न्म समय रिवार चिपरिवही ॥ तददिंसणन ||मूलविलठाए सिशंति || २ ||ऊद मूलास्ि
हो || सादापरिवारबऊगुणणे दोइतद जिस पुनलो | लिट्ोिमो रकमग्गस्म|| ११||दंस ऐ सुना । पाएपाडेविदंसणधराणं तदों तिलुनमूट || चोदी पुऽन्नदाते सिं॥१३॥ जे विषडं तिनते सिं । आाताल गा श्वत्तणाति सिंपल चिवो दीपवं मोटामा पाएं। '३॥विद
पिचिती विजो सुसंऊमा दिखाए म्मिक रामु ||सले दंसदों ||१४|स
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
(११)
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
मनादोणाएं"पापादोसबनावमवलीउपलबियाणासयासेटविटादि।।
यासिटामेथविदयाउबदास्मीलसीलवतोविासीलकलेणयातनोअणुलदा चाण||२६जिणवाणसिदमिणाविसयसुदविरेवाणशामियान्याअरमरणवादिद रारखयाकरणसम्बऽरका॥१|एवं जिलास्मस्वाविदिटान
किसावदारणाअव रठियायतश्टाचवलपुणलिंगदंसपालिबद्दलणवफ्टलायंचलीसन्नतजान
--
RIA
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(१२)
For Private & Personal use only
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ४ अष्टपाहुड
परिवरधामेत्रहिंसाएरपा पचनासंगचाए।पयहसुनवेसुसंऊमेतावादीसुविसुफलागि मोदेवीयरायः॥१६॥मिलादसणमयमिलिणेअपापमोददोसेशिवशतिमूदजीवामि छापिजदयेणारा सम्मदसणपस्मशिक्षाकागादिणाणणदपजादासम्मेणयमा दिदिवायरिदशदचरित्रोंदीसारमा एएतिसविनावादतिजीवस्ममोदरदिदास्मा लिययुगधारादतोचिरेणविकम्मपरिदरशारणासविक्रमसंविझायुर्णचसंसार
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(१३)
For Private & Personal use only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
अष्टपाथ "मेसमिक्षाणासम्मन्नमणवरंता करतिरकरकयक्षराजविदंसंजमवरणासाया
तददवेणिग्याशासादारंसग्नथापरिग्मदरदियालरायासा॥दसणवासामाश्यायो सदसचिनरायनलेयावनारनपरिग्नदायमणुजदिदेसविरदोय! २६वेक्यांवटा
शगुणवयाश्तदेवतियासिरकावेयवत्राशिसंयमवरणवसायासाराथूलेतसकायव दिनेमीसेतितिरकथूलेयायरिदारोपरपिम्मायरिमदानपरिमाणदिसिविदिसिमा
SLA
-
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(१४)
For Private & Personal use only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
पपटमअपनदंडस्सवागविदियानोगोपनीयपरिमा.श्यमेवगुणवदा तिलियसामा|
अश्यंचपटमाविदिद्यांचतदेवपोसदनणियोतिश्यांववातिदिउडी चलखंसनेणार
एवंसाचयधम्मासंगमवणं उदेसियंसदलासबसेजमचरणअश्वमणिकलंबोले। पंचेंदिटासंवरपापंचवयापंचविसकिरियामापंचसमिदितयाक्षिांसंगमावरणिरायारं, IRCIAमपुलयमणुलासजीवदवेशजीवदचेयक रोदिरायदेमोगपंचेष्टिासंवरोन
|
(१५)
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
..
अष्टपायलादिसाविमचादिसाय सबविरसंवादाविर इयाजरियशवंतविपंचमस||
जन्मविरदीयावासादनिझमहघालायरियऊमदनपुबेदि।उंचमदवाणितदोमह वयातदेयाशावधानीमागुनरियासमदीसुदामाणिरकेवी॥धवलोटनोटयण दिसाएजावणदो३२ कोदतदादासलोदामोदाविवशयावणाचेव विदियस्माना वषाणएयचेवातदादोति ३शासुसाबारणिवासोविमोचियावासकंपरोधचाएसमुचित
NEPALI
प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका
(१६)
For Private & Personal use only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ५
अष्टपाहुड
'ऊसोमुणेयच्चेोखेडेविकायचे। पाणिपत्त्रं सवेलस्सा | ] | हरिहर जो विपरो! समंग इएइनव कोडी | तदविणपानइ सिद्दिसंसारो गोन लिदो || || क्विदसीदंवरिय
परिकम्माटा गरुदाना राया ओविद२६, सबंद। पावेगञ्चेदिवदिमित्रता तिचे लपाणिपत्र नवइयं परमजिएवरिंदेदि, इकोविमुखमग्नो । ससायञ्च मम या स ॥ १० ॥
ओसंङ्गमेमुसदिउ।ञ्चारंनपरिग्गदेसु विश्ववि। सो दोइवंद णिको ससुरासुरमा एसेले
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
साबर भेंट मिति
(१७)
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
अष्टया पार जेवावीसपरीसदासदेतिसत्रासदिसंश्ता तेजतिवदलीयकम्मरकदापि
अरासालााविसेसी लिंगीदिसणणाणणसम्मसंझुनाविलेणपश्गिदिया तेल विद्यावाणिजायारालाधारगिदलासुत्रचिनजीजछिदएकम्मावाणिवियसम्म परतोसुकरीदोशा अपुणत्रमाणछादिधम्मसुक्रेदिणिरवसेसाशतदविण विदिमिसिंसारबोगसगिदो।२५ एणकारणेणयातंथप्पासहदेवतिविदेण" १
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(१८)
For Private & Personal use only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
जेण्टलदेदमारकातजाणिकदपयोणारावालग्नकोडिमिलापरिमदगहागणदोश्सा
नेपाणिपत्रादिमकमाणम्मिा२॥अदाश्स्वसरिसीातिलउसमिणनि
दिदिहलेमाऊलेश्यपवजयोतनोपणुजाणिग्नायरियाजस्सपरिग्नदगदपात्र
पावुजयंवदवलिंगस्मासोगरदिनजिणवयागायरिगदरदिनणिरायारोपणाचा मदव्याजुनोतिदिंयुक्षिदिंडीससंउदोदोशालगंधरकमग्नोसोदोदिजवंदिलिदो
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
अष्टया याश्यवलिंग उकिनवरसावयाएंजानिस्कनमेल्पना समिदानासेणमा
शलिंगेश्लीदवादानुज पिंडमुण्टाकालानिमात्रक्रियाविश्वावलावावर गणनेशशाणविभिन्नदिवलवाजिलसासणशक्तिोऽतिबदारोगगोविमुस्कम् गोसेसातम्मग्नयास शालिंगमयावागावातरेणादिकरकदेसेसुानपिजसा जमोकाउतेिसिकददोपवारियाजदसणणयघानिनममग्नलसाविस त्रायो
५
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२०)
For Private & Personal use only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ६ अष्टपाहुड
२४
ष्टपाय सादोश्वंदणीयाणिग्गंयासंजदापडिमा॥२॥दसाणच्यणतणाणातवीस्यित्रात
सुस्कायासासासुरकदिशा मुक्काकम्मबंधेहिंगिसवममचलमरवोदााणिम्मावि माऊंगमेणस्वेणासिहवाणमिन्द्यिावोसरपतिमाकोसिशाशपडिमाादसेइमो स्कमयांसम्मतंसंमसुधम्मवाणिग्गयामाणमयोडियमग्नेदंसनलिट॥१३अदफुल्ने
। गंधमालवदिजवीरंसपिटामयंचावितददसणम्मिसम्माणाणमयंदोइसक्छ।या
४
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२१)
For Private & Personal use only
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिसासिविंदणाणमटयासंऊमसुम्सुवाटारायवाऊंदेशदिरकसिरका कम्मरका
यकारणसुशासातस्सयाकरजपणामांसबंशुचविलयवचनाजस्सयदसणा
muslmananent
IIT-7777
अलिकर्ववेद्यपानावो॥७॥तववदाणेदिंसुझाडापदिपिलेश्सवसम्मताअरद तमुद्दासादायारीदिरकसिरकायारातिणविवादृढसंजममुद्दापादियमुद्दाकसा यदमुदाणाद्दाश्दणाणामिणमुहाएरसागणियाणाजिणमुद्दामा संऊमसम्मत्रा
प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका
(२२)
For Private & Personal use only
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
या स्मयासुशागजोयस्ममोरकमग्नस्माणाणलददिलरकंातमाणाणवलायचा अद
पविलददिजलरकारदिकिंडस्सवेशयविदाणादाणविलरकदिलरका चालारणामोरक मा मग्नस्मा||पाणेपुरिस्मस्वदिलददिमुखरिताविविण्टासंजुन्नोपागणलददिल
कातरकतोमारकमग्नस्मामश्वयुदंसस्माभिरामश्गुणवाणासुचिस्यपनाया रमबबरलरकोणविचक्कदिमीरकमग्नस्सारणासोदेवोजोयाधम्मकामंसुदे
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२३)
For Private & Personal use only
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
इणणंचासोदेऊस्मयाबियोधम्माययामाधम्मोदयादिसुशापहजासबसंग पश्विनादेवावगयमोदोउदयकरोतबाजीवाधादेवापावासममनविसुझायो चंदियसंजदेपिरविरकोाएदावमएीति।दिरकासिरकासुपदाणेरणा३६॥लिम्मलंयुध
--
...
मासम्मनसमेतवंगाणाततिक्षिणमनोदवेदिसंतिताए।३तिवारमाणमिव
विदियादवेनवियसगुणपकायाचजणायदिसंपदिमोनावालावंतिधारदंताबादंस
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२४)
For Private & Personal use only
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ७ दशवैकालिक
नारिवासनेकियंत्तरकरपिवळण दिष्ठिपठिसमाहरेषपाहत्यपाय पतिहिलेकशनासविगायियं अविवाससयंता बन्तयारिविवाएपद वित्त साचि संसगिा पणीसरस्वतीयो नरस्मतगवेसिम्म विसंतान चमकदा५७ अंगपखंगसंठाणेवामानवियपदिय प्रत्यीतातननिकाए भी कामरागविवाहणाराविसएसमा पेसनानिनिवेसए अतिमि छ
-
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२५)
For Private & Personal use only
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
विलाय परिणासंगालाणयपखगालाणपरिलाम्म तेस्मिनछाजदातदान विशीयताहोविदरे सीईबएगअप्पाजसिकाएनिरकेता परियायम Maसुनतमेवणापालिका मुणेश्रामरियममारतधिमसङमाग यवसकामडीगवसमाअदिहिए स्वखसेणाएसम्मतमान अलमप्पणाही श्त्रलपरेसिंघसज्मायमज्माणरसस्मतारणा अप्याक्नावास्मतदेयास्म नि
-
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२६)
For Private & Personal use only
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
सडईसिमलपुरेको समारियरुप्पमालवडोणाश्सेतारिसेपुरकसदेतिदि एसएणकुनेश्रममेकि चणे विरामविमघणेमिअवगए कमिणरावगम। ववेदिम निबेमिछायारपलिदिनज्मयणसम्मन्नेवासावकोदावमयप्पमा या गुरुसगामविणयनसिक सावनस्म अरश्नावो फलेवकीयस्मवहाय ४५ दोश्याविमदितियसवका महरेश्मअप्पसचिनचा दानतिमिळेपनिया
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२७)
For Private & Personal use only
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
alini
m
ma
जमाणा करैतित्रामायणतेयरुणपगईएमेदाविनवतिएगें मदरावियडोसा यबुशववेमा अायारमेतागुणसचित्रप्पा केहिलियासिहिरिवनासकार याविनागमहरतिनचा नासायासदियायदाएवायरियापिहिलयता निया वडापखुमदोधासीविसावाविपरमसती किंडीवनासापरखेडा त्रा रियपायापुरणप्पसला अबादियामायणनधिमुरकापडोपाचगेडलियमनका
-
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ८
कुम्मापुत्तचरियं
C
||णानत्वारश्री जयप्रदीपर्क क्रमात्र चरित्रस्प स्तिबुका तिनाम्पहै (तिमहावीर कहें स्वामिह वा कमकमले कचरक नमस्कार करिनें महावीर दिसु निदायक असुरनाय मऊ माएँ असुरिंदरदायकमकमल कुम्म कऊंबु ऋहेक ऊंमाणिक्यगुणजे १ रायगिहिक हिडेन बलीरानं मीनाकपुरस्वर पायर्मागि चरित्र हामि हं समासे ॥१॥ रायगिदे वरनयरे नयने हालसा शो चलीकनपर तेराजगृहनें परिस तेवनकेल समाटोक० वर्षमा जिलोक देवतास विधानवाद र समासस्पति श्रीमहावीर २ लपुरिसचरे गुण सिनए गुएनिल समोसा वहमाए जिये||२॥ दिवेदि स मोसरणमीरच तेसमोर एकेहनने घणापापकर्मन विनाश व विदेसमोसर एके वेगवान रुपा नाक कारकडे धर्मपि चातुखाने बोनस मोसरणी विदियं बऊ पण वकम्मन सरेल मणिकयर वयसार व्यकि समीरणने विष श्री ने नगवत के हवा बेव निपरिदेदीप्यम ते कन्दर हुनी कविता महावीर स्वामिबेवाले नवे शरीर जेसन परे भीरब जसमाारण रियांतच निविडोवीरो कणय्य सर्सिरीसमुद्दगंभीरो बाणाच
RI
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(२९)
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
चनः प्रकारकं परमात्पतत्रादकर मोपदेश देवें
उप्पयार कहेइधमा पररम् सर्व
ई
या जा
चित
दवन्धमा ससुतेसु नावो महादोमुरो हो||५|| नाचीं नदहितर नोका बलीत भावकेर बाजेस्वजिदेवल कप बलीमा बधमकवोबे जन्मप्राप्तिनि मैत्राचित्पत्र वाजिमोक्ष लिहाजवाने पाई • मनोची बितरन पामवान णि भावो सग्गापवगापुरसरणी नवा मरणदिति द्वितीयचिंगमणीरत्न ६ ते भावने धरतोयको श्री पाम्पु चे उछ समय तक चारित्राविनाचारि सरषोबाई 'तत्वते जे एहूं. वरहितपा तामणी नावो ॥६॥ नाविको अवगतौहित्राचरितो गि सरस्यो यको पछिल सर्वलोका लोकविकाशक के ऐप्रकारची वतनामुख श्री सोनल निमुक्यो वज्ञानयाम्पो
त
दर से दिवसतो सपत्तेोकवस्न नाएं।॥वतरेइदन्नईनाम आएगा।
४ दानशील भावना लक्ष
ऋदकर) च्यारप्रकारें धर्म
दासी लतव भावारण मेरा हि चन चिह भावनोमोटो प्रभावमहिमा बैं 4 तेरेकरीच्या प्रकार सेवानिवसतीरस
प्राकृत - पाण्डुलिपि चयनिका
(३०)
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
चएप्रय सघयसमात्न
तगीतमस्वामित्वाने मात्र अतवासीया श्ववंत्री बनानलंगगेत समच्छरससिशशिका वध गर्वतमहावीरना शिप मनामबई एजहनी व नगदमहावीररस जिवे अतवासी गटामती समसप्तरीर को देडजल उज्चन दहले बहनों .
उस रिसहनारायघियणे कुणमनगनिश्सपशेरे उगत्तवे दिसतचे पएकामाविमोटापेना माटी तपस्पाजेह अपरमउपनाब्रह्मचया बलीगोतम्के हवा बायो। जिपीकर असार जीपहनायतम, चावत्कटावन मास एका मद्विात शरतवे घोरतवरसी छोरखच्चरवासी जेब सरीरे सरिव नोटबलपहवातजातिमा वलायतमका वेलीन्सवामीकहवान वानी गितमलामिकवाडेपाच शोरवी जेणें
RAHINESS मुनिसिना सेसाधुनापरिवरसायंचुम्मन्छ ।
बेचदश्वधारच या माने जन" संसाधनापरवरसाथ दिलवेनलेसे चनदसैपची चळवगए पहिणगरसर निविष विहारकरतानई बहनौतपकार पोतानास्मासयमादिकेंना खन्यासनपके श्रीगोनम स्वामा
कई दवाबर विंनतीने हिंसदिसपखिने नहबठएं अप्यानावेमाणे नहारनष्ठिता
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Jain Education Internation
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
अगवान श्रीमहावीरस्वामीजनित्रापबार, भादरेकर, संवनेश्रावते, करीनई मस्कारका |
मन - अक्षणकरें नगर्वमहावीरतिरकतो अथाहितीपयहिणं रेकरिता वंदम वाद विवादनिनम एप्रकारेपुरतावा - संपतेकश्वर हैचगवनकर किम्त . वारकरिने
कमचित्रबहान सश्वदिता नमसिता एवंवयासी नम्वकोनामकमानतो कहता गरूबा रसायकाजमनिया जिवना यकीन अनलका चुंबर हजर भावती कप्रकाश...
हिनता। तएगिहवासवसते नावण नार्वती अपर्णते अपनर निबाधा
कमादित्रावर समयबसवि हरिमिनाचे एहवरपक्षनकेवलज्ञानविशेषोपयोगरूपीजप्रक्षन | यं निरावरही कसिएं पमितनं केवलवरनारादसण समुषामित्र
SA लापसमा बलंदशनिसामान्योपोगरूपताका | | एगोतमनापूनअन्नत्तर श्रमणतपस्वीश्रीमहावीर एक यो जानिप्रमाणविस्तरोन संघासमतसररवी. .. वनजिते
. . हनीपहबनिवली तरसमणनगर्वमहावीर जोयागमिणीय सभासमारी
-
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(३२)
For Private & Personal use only
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
. .
कहनें
वाएाईकरी कहेंवाहवा हैगेतमने मुझसुखद रहेगौतम कमा।
सुत्रहुंचरित्राश्वयक वागीए वागरेश ग्यममेडद्वंशिकामावरसचरिबा स एकप्पानेयश्नई पारयामनिसमामिपतिसीमाना चरित्रावा रियं एगगामहोन समगगामवितंनिसामेसराणातयाहीज मंतू मामा' सरत नामाक्षेत्र नामध्यभागमें उगमपुरनामें नगर 0 ते नगर बदविदेव नरहस्चितस्स मतयारी मिडगमपरानिहाए जणा सनगर श्रेष्ठ नारा देशातलो प्रतापजलाईन प्पहारअहिरातबयंदोएनरिदीपयवाचलबिशनिश्री
यातजे नि में शवहिन , निकट बरा र पाल ११०३ दिदो निचमरिअावळं पालानिईटयरत
वाले
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(३३)
For Private & Personal use only
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
For Private & Personal use only
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
'मान
पाठ ९
कुम्मापुत्तचरियं १ लेकीसुप्यानामुनीहबार रवीनप्रमुखीदेवीघाटमदयपत्र - पन्य। नत्तानली नामुषीकल्याणकारी
मुरवते जाल पतनिरिणअन्नही नमुहीनामजरिकाहिहामा इनरुपनि नगरमांकितकारी विहीमाहात २० घणमानकन्टनालाल
पएकालवेटतेजें गवरुवधराऊमरसमावमिसंपन्नागदहणतकमार - हने एवारा ऊमरनेजाइनर वक्तणीहसविकमरप्रतीबो कमरमानी।
ली बजऊमरहालणिकतलि सार्जपहसिक,किमिमेल
की काका विस्पएकोही । जोरदापिताहरु बिनभनेक प्रकार किसनेनिरचएनही
करमणजस्तावनुवचित विचित्तचितमिञ्चल ग्रतो मुझपळवादीमा वितेकमारएवचनसीनलीनीयल्लिासफोरेवीने २ | हर तामर्शअणुभावसु दयामिएंसुणियसकारण
।
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(३५)
For Private & Personal use only
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
तकन्याइविदेशि कन्पानिप्राणवारुपकाकलचिततेनेनुएवो उमरपब्बा ।
मेवात्रा तकन्न-अक्षावर तन्मयकलहलाकलिअचित्ती तप्पुर गलब मकरतापीकमरनेयोतानवनमी २३ घणाशालनारायणकनारक्षते शार...
...: नेहवल, । धावति साविऊतनियचने
सालवमरमनहरी पातलमागेकरीनपातालमलेशइतिहा. सुवामियघटिते अविमोहरदीपलाई।
......ऊमरी .. यहिएापायानमनमा सोपासाकण्यमदी सरनवणम नोडलडेबदन्छु। २४ मनोरखने पद्मरागादिरलमयस्संच त्रासरुटेको विरमणीय श्यातच रिर्स रचरणमय नमूना कतानरचा
-
रिअनितरपएस मणिमयतोरणधोरण तरुणयहाकिरण
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(३६)
For Private & Personal use only
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
य्यु २५ वनातन्तबुनके मणिमय ग थनीवरसपूतानाहा . करा सबितानेहमयाकस्सा
जनसलदाय . कारिगरपामणिमययंचहिनि तलिमाकेलिरवा । जिलं . . . बक्रस्चनाईविधिनान करा शो-तता गोयमावलिकरा शो लमजहबऊनतितितिचितिंमागचरवसदोहकरसाही
जायमानजे वनजणय 25 विठवननालोकचिननेउजाउकार एकवचयनजो अतिश्रा
बोकफेदृष्दिन २एममवलोकरीसुलवण्सुनणचिवद्यकरमा श्रया पन्नतो ऊमरप्रकावंतवालागी .. २० उजाला कायम विस्यमावन्नी ऊमरोइसचिंतिलगो॥२७किंदजालमे घमोवनदेईलु
अथका मात्रा नगरायका एरंजवनमा का सुमिण सुसमिदासशएर अहयंनि अनयरी हलवणे
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(३७)
For Private & Personal use only
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
.
न
.
-
राप्रकारेपवतामयी व्यफल अमलने कोमलमधानेचिन बेसामी कणाणानासदेहाकलिमंजमरविनिवेसिकएपलक वित्तरी कसरप्रसोचोलीमि हेस्वार्थतनीस्बुि ऊकळते २२ जमाहरी-माजमें || न्:
उसाल.. विन्नच्चतरखा सामिवयनिसमिसुधरणामधमएमसी
दिवसेस्चामाीगण्मादिनपनो. तेमाटेमाइनेषुष्याटीके अपतसर्गनिय ए चिरेणकानिएनाहदिवासि सरनिवणेसुरलुवणे निक। होस्हवालवचनने वि30- आजना श्वेताहरमननामना रुपकरन्यपादपजेकल्परची पिलावीबु
र . आनिसिङमंगवण) अद्यचिअमनमणी मणारहोकप्पपाचवी नया के जेदानादी करूमा सन्नादि आजहे खामोदरमुर मनोमय उस एप्रकारे||
कनाअनुजावधी मधु .... ||फलि जसुकसुकयवसः अनर्ममामिलिनसिगराइव]
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(३८)
For Private & Personal use only
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
कमसनवत
पाठ १०
कुम्मापुत्तचरियं षकस्योतदनंतर उ ऊमरनी एवनवनीएदे लजोरहीतनिःशंकपणखेडाई विषयापा
बीसबमा . रतस्सरशिपाचनतरज्ञा लजाइविशतुर्लुजएनाए एवंवित ववनियुक्त यासतोबेजण नवनविधरहनि को यस हाई कुन्निविविसतितजतिआगच्छविध नागस्वरुपसानी कितेक आरजेकानुनोगसईधकोडेसेऊण कन्हौसघातइ वाम देवतजाताना गयुक्त चनहिवाण हिगणिहिंदवासिवासपन्नतेतजहार्दिवनाएगे करे एप्रथम भागनोद रवतात मनुष्यासघातोगकरेएबाजोनोग
नोमा दिवाएसधिसवासमागविजारदेवेनामीएगेञ्चीएसविसंवसंमागविज्ञान मनुष्यजेते देवासायसेनोगकरे बाजौनोगमा नोदजाण मजेत मनुष्याणासपिचोग ब्बीएनामएदेवीएसदिसेवासंमागबिजारबवारनॉमएएचवीएस
जा-पटात
प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका
(३९)
For Private & Personal use only
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
अमरदेवीनेत्री जो लोग लोग ने कहें बैंकमरनीमा लापता पुत्र वियोग नित्ये अत्यंत व या टाचें के पति सवा चार दिसी सेवक गर्नवरसंचर दिवारी मोगविज्ञा
T
गृहवस्स अम्मा पिपरे। प्रज्ञवियोग एड पास अधिकारी पी एकोडरोपदेशें किंचिन्मात्र हिमाम्नी 3g देवनाईजेब रिकयानि सङ्घच विसार्हेतिया लदे तिनहिसु मित्रं पिदेवहित्र रिकरी ऐयत परमनुष्य अन्यसत्वया मनुकनारा क्तिर्मा मनदेवतानीशक्ति मी जेवपुरमा टेक के बे वह रिये इन्नरनरेहिया विएक चटु जेल नरासुराही सीए अंत अंतरबाई 30 अप्पनामातलाय. केवली भगवननेछ वपुस्पपुपु हेन वि या मातापिताई गुरु महते हिस्किएहि अमाप अरे हिके वलीयो नय नस्वामीनू म्हारो की कमर ३९ तेराजाराणीनंच चनसी मूवी इहीपी की ग्यो बेई लवी ने केवली वक हे सोतो कि तो केवल पर्यवसहस
नवोल्या
प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका
(80)
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
| उनक कानेसनलिसावधानमनरारचमारोते नीदेवीहरीगामकेवला केवलीनेक्च| - उलकमरनेव्यतरनिकाय -कहां करीना|| वहिंसावहाणामणे मारी सोपती अवह खिवैरिएआधातिवलि जाल्याराणी वायपाम्पांचनेविष विस्मं कहवाश्याहस्वामानह मनलेवादिक एबेअती. याकरलथयां
तरतिवेदे तेदेवता अपवित्रतरने वयणी अश्वबरिअविमिआजाया साहं तिकर्हदेवामपवित्रनल मनग्या घरजकारणमासिका चारशेअथवापांच सेंयोजनपचंत उचोप्राकानीमा
तमांका .अकाअनुष्पलोकन धजाबनें || वहरीतिशायहक्तमोगमाचा रिपंचजायण सयारण्योलमअली|| गंधदेवातादेवायोनेसह देवतदिबीयो आमनुथलो ४२ एलुरुकमंतारे केवल
- ईमाईकमीश्रावतानी ज्ञानीबोलताहवा |गस्सनवचजण नदेवतियात्राशिकचनिनाशनशि
पंचकरपक चवनरजन्म तनाही यतिवातोमत्यलोकेंवें बलामहपिता
ज्ञा केवल विवणिपए अरिहं तपनेमहिमायत्रीवेंचलीजमांतरवाश्लेहणका ये पंचसूजिगनासचिव महरिसितवाणुनावा जमतिरऐहिण्या
.
..
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(४१)
For Private & Personal use only
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
देवताम चलि केवेंा ४३ एबुरा जानु वचन समितीने क तेदेवीजन्मांतरना स्नेह न्युय वैरपोषनामीचा ज्ञान कहें ताहवा की मरने आगी तिसरोही ॥वशति के लिए कहिये तीसे जमी तर सिहाई राजाराणि कहताह वाह विपाक महान जिन बें प्रति ४४ हे त्रयवन किवारैरना स्वामित्र कर्मनो दुखदा बिई संगम स्पे बितितनुसा मित्र बनिने कम्मपरिणामो ॥४४॥ चयर्व कथा विही अमारो ताकम की मनिमाविम जी भगवन् बात्यास जिवारे विहार करतोक पस्ते को देवें केव गममा स्ता रमलो होइही हि अम्मा कुमारसँगमोहनी नेता हो हिपुण जयेइहवमागमिसा बीसुनी छाप इसके नाम की ऊमरनामातपिता संसाररीने चिरजा धु सांमजीनें पम्पासता मो॥४५॥ इयर्स लिन संविग्गाऊ मरमात्रापि प्रपि मम लहसु विस्थापन करी लेनी ज्ञानी पास्पेसुरनानु ४६ दुखें पालीसकें एहवी चा रि क्ल सव सुपी हेच पहा रिता वी त्रनेत प्रतेकरती हावी राजा सवारजे तयतिएचर लम वन्ना॥४६॥कर तवचरणपरा पर
'नेराजम
प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका
(४२ )
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
omgaeapes
पाठ ११
उत्तराध्ययन कंचन विविशाभूवनोग एणीपरमविनातसा. रुपमालाचारनविषप्र ५ मुसांत' होनई बम मकर नताशाचाराचबमानमा पासोनिमात लाने गंशाणाविनुसयशएवंसालंचरताणाम्सालेरममियाmil म भा0 Malinsan - ममसरनोनिवि विविनयनेविषाला बोहिताको हितमा ____ न तमनुष्णालोतानलाई अपोजाना
आपा यानावंसाणसास्यरस्सनरस्समाविणवेशाप्पाणावतास्यिमय ६ अधिनयमोषधाम्यात साजनवारोपापामालावानीपुजनापूर निक - वि०किया और जनेवियथा निमोतिनिधिमाशिम : मादी
emaiम्हाधिणयमेशासालपमिलनेहायुधयुत्तनियानिall
क०किम नारि
नतिरेतरउपएमालमतरीक्षायामानाबार्य समा... अबजेपदार्थाम्बाजागा पतवासप्रशााहामु० वा-माशिमाम सराइकादस्वम्योपनाना। मुखशयानापारहित
सप्तपरीज सहित
सिझम्कानिस्संतेसियामुदायकातिएसयाताणमि foमियादिस्लामतथा नासवतांकनकोपिणमामा संन्तमा मेवश पनि MMEANHAIYAमोतियरेका प्रणदेतानस कोपनारएनलेोधयंतर रिसडानिरमाणिमाणितिसेवजमि)
'शाका
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(४३)
For Private & Personal use only
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
बालकापासलाहिंसा हा साकारमणो ए भावरकोधादिकवी वाघमारयो| संपात संयमपस्चिम बलमोव
लियानोलाई सु हिंसहसंसमिाहामंकीवseenायचंझालिमकाममायालamil HIROपोरसाअमुरबाहि नातिवारपsamm कदाचित क्रोधनवसई निनोपयश मानणान
पारिकमाएपए काम्बोजानाल्लिाका कावारे !
कलषरहित कालणपत्राहिच्किताकाDrms manादवचंकालियंकद्याननिएeasil
लाजमा काकि णकाधाम प्रारलियाराविना मा टिकारा . tham . . होमोमनाथ
हायोगात्रीपरका कियाइविकालमेक्लिासिरलोकमिनियामालियरसेवकसamlil
Haमादेसमिनांदेश. कायदेविमानाति शिगुस्ताम्वरनाशनिकामनाक्चानोलाकाहारा मोजमवाजें नलावली ... तिमानको
मधेरो जिप्रक्रबारनोमनायगावविचरा अशुभ पूलमानपुपनाकाम भावैयालति
अनुनापसीधावन.. पिछयपुसवकमायायश्चियापसवायलयाकसी। मिक्रोधरहितगतरुनेपछि यस्लेचिवचि माशंकरेंगधिनाशिमा al बोक्रोधीrgकरें।सा शिष्य लेवरहितकानिकरणारा 30वलपतिस्तपणा लानिपिचंपकरतिसीमाविनाण्यालकदरकोवव्यापसायएसपिrelil
रूप
% 3D
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीवालीनेंप्रनिव माध्यम प०ज्ञाबापसारीनें न० इमन र गुगुरुनें হবে श्में स० माझ
श्री. प्राचीदिक वा० श नाचौला मोक्ष को
यनिच इसमांना अथव
समीयज्ञ
पिमंबसं जएगा या एमसारिएका विनिचिदेगुरुशांतिए : ॥ त्रायरिश हिंवा हितोसिपी
क०कदाचिणादि 90 शादी कमाई पिए
30 इमं गुरुसमी - 20 एकबार बोला म बा० पे०सदाकाल अथवा ल०वारनार बोला ओ
इमजोन मोक्षार्थीको
ॐ० अणवों लोनर हैं।
उनकाईलामा हानिया गडी उंचिद्वेगुरुसया ॥ २॥ त्राल बने लवंते व न
सीन रहें। कण्कदाचीन्या च० मूकीनेंश्रा० श्रासन भ० ज०जे कोई गुरु आदेसदी इते । २१ पोलाइनें रमानादिव्याकुलमको बुदिनंत • आदरपरको प• कर
न०
निमीत्तकयानि श्रासगंज जुनंपस्ऐि॥२३ : त्रासयु दिकाइ नं० मंथास्वगेन क० कदाचि ०गुरुसमी मानीनें पु० पूछे मूत्रादिका ५० तपसिल कथक यजमाने
एक
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
भावेंन इस्त्रा
छिज्जानिवसे जाने क्या विकर्म संत विजायुं जलीनम ॥२॥ एवंवि
नममहान सुत्रावेपु० सूत्रानासी०
मूत्रार्थ
विनाशिका इन
२२ Norma ०वि० वि
सूत्रार्थक है ० निमगुरुम मिमें स०सांभतिमं
मनुत्तमुतंत्रचनकुनयामा एससी सरावा गरे करने हा कशामु
२३ मला बीना
(४५)
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
मुण्मयानामापतिमा ननाद
परि२५
rautam
माणिक्य, विनमकरें। भनियकारmamro माामानादो०३०५० मा०मामाचशष्ट्यकाक्रोधा २२० नबोले।।
दिकालमा मंपरिदमिरकानयवहारिणिवानासादोसंपरिहामायेचारासमाuanarajil
प्रत्ययको निर्ययोजनाविनायो । प्राणायाने आवा० निनायविनानिरर्थक मनो। मात्रय लीगमापरजीवोमर्मी यापपरकालान कार्य करने परमीमनिलालर
हारन जोसाailaनिरस्तममममममाएकापरावाजयस्सरणवRAIRA मनानाधिों मंतिघरक्निकंकले एएकलोमाकाएक नेवारतलान २६
बोलाईनही
१५ HAPापनेविषय मेधिनविय ROMAsa लोमा
मेमुक रिसारकासंधामुयमहापहोशिलिएमफिनिधिनसंलक्षजेमे || digoगुFory मा०मक मतवनकशीवाय ममारेलामाको १०ादरपरयकोपनि० । दिवाला फकठिनबचकरी पे०एस्वामिश्कीनामा प्रभाकर बुमामासंनियमीफससेवा ममलानोतिपहाणपममतपमिस्स!
समानामोशमा भूमोकाइएलायमापनीको• हिहितकाशितगुरुनी वेण्याहव्यामSIMRIOR तयाविनामापाकी नेलेमापनदिनीताची प्रेरक सापामामा काविनामूर्षमीषदेता ll
सामोवायांकमस्सयचोयगहिवंतमन्नफ्लोविसंहोस्लामाकोश
प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका
(४६)
in Education Intematon
For Private & Personal use only
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १२ उत्तराध्ययन
तिमहेजबनमक एमश्विामिनीवचन इनिविनय माध्यम मानार्यसं ! सु०मानसोनि०मश्राव्हे भाव || पहिलननेवि विनयकरिवोकले
नशानवता नए एनिनसासननेंविधार
तिहाविनानेमरीमउमजेलसम्पगसहिवा म वावासपरीक्ष
___ कायगोत्रायप। प्रकारामको विवावासापपरीमह ARIES जानशानन मन्त्रीमा वारदेवर करमाका
प्रकलयवकेवल। एवमहामारहरपलवावीपरीसह समानरायणमहाबारेणंकासवेरगपवे जेजेमा निजाती, अपरीसह निगोचशविर्ष पहिलसाफिर पुरीमफरविनारेन || सो.परीसहयुरू कर परिचानक नजातीन
"बिह संयमविवानही समी सामान
शिम्मsar मानिससोचानचा जिवनियाग्निरकायरियाण्यरित्रयेतोयुकोनोविस्नेजil के ऊरण स• सपरिसह श्रवण परवीनामा मामाया काकापपगोत्रीय प० प्रकके
नज्ञानवंत
रदेवई ने साक्षात्यमेवघ्यापा कमरेखनातेवाबासंपरीमहासमोणंगवयामसवारणकासनेणंपवेश्याजेनि नियनि-मामिह पनि नेपरीस निगोजरीनविन पाहीतीफिरती १०परीमफरोतिबारेतो लिंग समषि-मां नजाने हाताने
वि०संयमविनाशनही करें॥ २५ रिकासोबानबाजियाबानियालिरकायरियाएपरिचयंतोयुकोनोविल्लोलासेख]
यास्यापयरिया मिलता
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(४७)
Jain Education Internations
For Private & Personal use only
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
Cam तस्वमि म. श्रमणतपसी तान मन्त्रीमहावीर howयोत्र में मात्र, जे .पीमा में नेवादामपरिक्षा
"देवो केवल होतकरी मय रूपभो सो कामताने खवावीसंपरीसहा:समोण:नगया:महावीर कासवर्णपवेश्मा निकासी - श्री मिशनशन पहिलत किरना 3-शमफरनिगारेन ते यानामपरी रिसमा चर निशाना
सयम,विवर्शनही महानिमतिम महतोपरसह नवनियानिस्कायरियाणपरिचयंतोयुकोनोविश्लेशातजादिांबापरीसरे।। पिनषानोपरीमल्स •mYIREM उजामनोपरिका माममास्किरीकपीपी कोटामगोपतवन सी प्रकारेमोमासचिा प्रकारेम३ सर्वप्रकारेमो मानोसप्रकासहिचउरमात्रसमलवलनायूमन बामपाव
विप्नेपरिसद विषम पवासापेरिस सीसपरीसहानसिणपरीमहोदसमस्ययरीसाधेलपरिसर धारपानीमा यमनविषेत्र प्रामादिकविवर Pिoswimदिस्वामिम मियाश्रयममेनारामाचा त्रिलिपसिह लाल्याने गोनेरियापसिह जिमणाननेवासार नितेशाश्मिा मानना "हियात निमाहियापीम"
"मकरतिमा रश्चरसहारस्यापरीसदेवरियापरिसहोनिसास्मिापरीसह सिजापराशनकोसपा कोशप व-वधातार noriदिविश्या अमावसभापति शे फोटप्रमुष मेरो तयारिसनेकर अधिकार रासतमाकरवीन नाकालाजमहालसदनकरवानलाल सायद्यपीएफलारिकामरानामाफर
परिस ' यात्रापशमस्बिर ५ परितह करावैरोगपरिमह५ सनोपरिसह ७ रासहवारी महाजायणाय सहेलापारिसोरेशमशमहोतफासपरीसहान
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(४८)
in Education Intematon
For Private & Personal use only
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज०मइलो मन्वादिकमंत्री
यनाथ कर्णपरो तलने श्रीलयरों करीब दं० सामकीन पपपरी वो वश्तीयार्वेकरीहर्षादिनकर नकरें प्रज्ञायरिसह २० घनादन करनेत्रां परिसह साघुरिसह २२ मरिससकारयुकारपरीसहे: यत्नापरीस हे चळा परीस हे दंसणयरी महोपरी
सहारा
१००
बीसनो स्वरूप ० क ० कारण मंगोची महान प्रतिनि० उम्मते उ कहिए अनुक्रमे बानी सपरिमहा १ दिग्मू मस्वरूपपलड रदेवपपरी महाश्ररुणा धर्मास्वामी इंज बूझतें सु.सभिलि मे. मुगनै कहता माध्ये सणांय विभत्ती कामांप बेश्यातिने उदाहरिस्सा मियुचिकरो हमे || 2:22 दि थ देशाने निगला 70 पनंनालिसायान. फिलाट्किनले स्वयमेव नमः कालादिकमचें नहीं २ काংকत परिसमाहिषोपरि यमनेविमबलब परिम पहिलो साहिबोदो हिलो माटे नविनेश पाने ठेदाचेंफला स्वयंमेव न पापं ज पान हा माधनी कलो = |मिठापरि । तवेसी निस्कूथाभव)नचिदेन छिंदा व एएनएन पया वरागः काली | संघाप्रमुख कि० साधून इवले शरीरमाहारनिमत्रानो जांच में कुल परे रहतचि समशी नसा चाले माह के दूध श्रनादिकपा० पाणी न नान करें एवम को च लेही पण मममार्गनविनाले
उदक
पचंयंका से किसवम संत मायनेचसए पारण स्माच्च दिए मए से चरें.... 16ག་ काकः कहना। एक दाने हमें नार्यानामरथी वैराग्यक्रम न तिवारी हतमित्र पुत्र सहित दीक्षाली वी/निरती चारमेयमपाहलें । एकदम्मा के साथ विहार करतानी पा ति हस्तिमितने कांगोल्या लि नाचममर्थमेश मा भांनें को हो साथ तुम्हें श्राधायॐ ॐ : पी
१६
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
(४९)
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
किरीकमा
एरापमा पश्मिएकर पाजीवप्रा
करी नविरकतावासास संश्मनोमपामा निीिराजाजायज्याजना
मानविषा नानिमामाविस्ता राजमानहजाणाम मापालिगोकम्मकिविमाननविज्ञतिसंसागसबमवरकलिया वन निबंधसं घायकोरायणाचार मनुमनायोनिविनानोरनिर विसिषer पाम अतिशमुटषनाव सरारकिदवानोगत पर
पादेयतारिकमायोननश्वष.
लर प्राणमधom पाकिस्मगहिसंमूटा रिक्याचवेयानमाणसासजोगाविसहमतिमारणे H मनुशातिनमाधान अथिमादिकारलार माजावयोशाकर्मनो आपपोतरम
कारिकर्मनिराकर अनुमक कहाधिनकिवाद विश्वपापोमपामतिनाव ... मापती कमण्डपाणुयुधयानवामोहिमणुपताश्रभ्यमंतिमणुस्सा मासंबंधामोविदा समालोम धर्ममोमलान नपाएमया avi रिकमाas., नो
५०पनि माणुसंविगल्लुग्धांमधम्ममालमोनामिकताम्वतिमहिमायोडा कवि मसाजतलासमपर्म मोसोलन मयमा घणमालाप्रमुपश्चा - पान
मारुविकसि.yलनसम्पलारिमाका इबसवणं सहायरमखमासीबानयाभर
।
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(५०)
For Private & Personal use only
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १३ उत्तराध्ययन
लिग्राणानाधानकरणमा मामायावंतयि चार3 नोवतीयकोत छपातम माम मे यमुना मेमघारिक र रवातानुभवादमाफर्त,
जोगाए महिवालमुसाबाशीमाइनेपिसणे
सियथतिमा कामयाकरिमयाथानापश्येच विविनितवननविषनिग विकाराषमा मिनालs निHABHINE |
करकापसापोताना गुपकहिच मा .स्त्रीनविच कर्मरूपायामल चरक कथाउपरिपामारामारडीनिजी करान-मालेमदांच
रकर कप... समकारकर्मनाया कायमाबसामित्ताविनेशियाछियानमालविणसिमानामुमक्ष्यि 1. तारकाविधानियारपुः मिशायाम्पोथगिलोm पतिहीवारतो. कफर्ममा देषाहारनकस
पाकौलारेगार नापस० षट्पान परलोकया जोमानापमा Managोनायकेवागिरलागोपvिarasपरमाणुमहिलामा anm397 | समाजाभिमानरमीकि नास्तिजावनि ना ना मानानात समता १.अतिहासातटालाना | वेदना नास्थानिकाम
सयामनराकारणासीलाणचजागामालाएकरकम्मायशादजवयman Maaनविषपानी जेनिमनिममे मSA कोतेपकिरीनना गतिलायसो तिनाकामारकर्मकरणहरप.मराणकan.in नुजा ..
मलंग महानिरिककर्मीकरिभानप यानाकारको जयपहात
दत्तमशास्सयाआहारहिगछनोमोयलापरितम्यगा। निकमा समाससम्मापावाटिकरहित विपामरिकमाहिमामानि माकरीभापजिमविकाससम्म Homलहसमान समाज जापानमो.रूपमकिक जहासडिजागसमहिजामहापाविसमा
निकालिनेपिएसनिलीat:३
N
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
१० सं०० ०० एकेकानि० परमा गागृहस्थ सं० देशविति गागृहम्पस सपलाई मायासविरत्तिरुपसंयम पचारित्रकरित्रयीन रेशनताको
प्रधान
निम्नतुथी
5
(4) मंत्तिएगे हिंनिस्कू हिरडा मंत्रमत्तरारथे इस चे हिंसा हवा मंथमुत्तरार चार जे.जटाधारिमलकंथारंभ एक्प्रेषधारी पपिएल उ· कुराचाररूपप• अमाग *मृतिर्मनि नयपरा मुक्तक रुप दुर्गतिज्ञानाचा एमरन हुई प्रापितवान वीराति शांति शिजमी संघा मिहिर गएँया निर्वित्रतायेतीलमरियागया२१॥ एनादिकमात्र निकिता वा नागि निरक्तित्वा खत अंगारा २२ श्राग जीव काकराचानुचली नरकथकान से गृहस्था अथवा रुगण्जा इदि देवलेोकडू पिमोलेर कार्ड म्सीलान गाउनच शनिखाएवामिह ठेवा मञ्च भईदिवांशा माणिकनार मकार(नासम्म क सथर्मकर राशीचकर नई पो पोषक ते २. एक रजिनापौ भनी निक असमायिक सामान काण्याई करिफा व आठ प्रदितिथि पोषक कदाचार्य कुमार इंट्रियम इ माधिक करदेसनिरतिरूपसा= दोन रामकविणकर २ हो र १२३ रामन हो वशी मु.मुकाइला चर्मभयप· राचएम 10जायन • देवलेोकइ निधि एवं कदारि कसरि रतै स्थी
मा. स
बंगालम्पु रिसामाभ्यगाय समीका एकास एपिस एकासिम गि-हसानासल इंपिएफ. फित्ताकरीस साहिल ते
फ
एवंशिखासमान ने गिहवा से बिक चमुच इनिवाडाजख स्लोगसं
प्राकृत - पाण्डुलिपि चयनिका
9m
(५२)
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
ए. इसमनिपराध समादिक हिंसादिक्षत्रधर्मपन्न वामानमरण करिनmsuriaसतशोवति शविधयतिधमा विचाकीनाकारकरीना दिन मुमुखापुरुनाथको माझासामरणमुपास ५ एवंधामविश्वम्मीदम्पतिधजियाबालेममहंपत्तोरवेनगोषसोयशारा तीतबारपासपतेरो चावासमानिसमा भनिभतिजमाइकएकदाचोएकरमाब शिमरणम्य नाबानाया उमानिनिमार्णधहरुपएहापातिरपा ६
तापकर जामजावभवष्पनशाना सेमरगतंमिावालेसंस्थानमा काममरमरकतेवाकलिमाजिक ए एकाकाम पाहापानिनfrj काममरएकटापली पंमिताभुमालिके मरण
नगन हिवासम्ममरण शिनिवमुमनकल्लाका ७ मा एयंकानमरण वालाजमवेश्यास्तोसकामनरायझियाfarmi, माएपिएनशिकारम-गरूममप्रतिक विकारनाममनावमा करिम संयमnादि नवाई एपवासानं मुनालcakarमरणयापएमक लषनाकरवलालपणारहितचि मनालापन
मरा शेरेव वासु निमर्नुभैकनीमराणालानोलयात्रामानुपात- मनोमरण मारणंपियुनाराजहामेतमाम्मयांविष्यमनमा धायासंजयाधुसीमा नइ एपंक्तिमरएम. arasएमितमरणास मानिनिधिना. विनासिरामाचारमनीकारिक सर्व निविन विभइ सर्बयनविन ब स्याइ रहवास्विमिसबलामधुनुसयुमही - संमधेसलिमासमुरिनामालागारयाविसमेमालायत्रिको
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(५३)
For Private & Personal use only
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
च॰ स्विश्जेस श्राश्रनुजेएाईरुमा विगतमहित्र अनेरीएक स• सर्वस्वपं-रहित सियाई अनुत्तर विमाननादे बताना उनि हनुमान शतिमि· ॐडू नाममहिविकिदेव साहु
२५
हमे शिरकुत्राय रेसिया सच्चखप हि वा देने नाविमहिदि 2 उत्तर विमाननादेव · देवताजतन्त्रमनुक्रमे धर्मा देवचुलाका विमानन जसवंत देवता विविका रमा र इमोहर उत्तरविमानली देवता कुस• माता देवता करि इकस्मिहिल उत्तरा इनिमो हनुमंताच्च सोमा इन हिज खे दिया वासा इंजर्स सि
हिदायताका मूतिमानात कालना ऊपमा · घानीपरिपं वैकियरूपककरिया समर्थ इवन लेरेवतासं सरियाले नवनकुडू 0 कॉलिंगी अधिका रहदी हायारमितामा काम विशेोधवत्र मंका सानुजेोच्च विमास नातेजा 600 देवताना सा मी सेवीन इंस• राजे सांय शंसाका लागि गृह जेजे नकञिलब इतिहांग. जाई a. स्मैशपः माता लागउतिः मिखित्ता संनमंत्रनानिखाएवा गिजेबाने मंति शीतलीचन तेन्नावुनिज्ञानगति कुलेसो) का सं संतान जाहि-वाहांम मात्तिभरण देवलाई २० लीन समलिपूज्यना कर्जगति श्रीमानस्थल जेन इहवा मं प्रतिनागतिखेर याकडू परिनिवुम || २०|त्तेसिसच्चा सयुजाएं। संजयाल खुसी मनसंत संत्तिमरणांते|*
उपसम करि०
दर्घायुषा
मंतकुई
प्राकृत पाण्डुलिपि चयनिका
स्यवाश्रथवा
( ५४
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
राजस्थान में प्राकृत-अपभ्रंश पाण्डुलिपियाँ : परिचय [राजस्थान के जैन शास्त्र-भण्डारों की ग्रन्थ सूची]
डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल
पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ राजस्थान प्राचीन काल से ही साहित्य का केन्द्र रहा है। इस प्रदेश के शासकों से लेकर साधारण जनों तक ने इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य किया है। कितने ही राजा-महाराजा स्वयं साहित्यिक थे तथा साहित्य निर्माण में रस लेते थे। उन्होंने अपने राज्यों में होने वाले कवियों एवं विद्वानों को आश्रय दिया तथा बड़ी-बड़ी पदवियाँ देकर सम्मानित किया। अपनी-अपनी राजधानियों में हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहालय स्थापित किये तथा उनकी सुरक्षा करके प्राचीन साहित्य की महत्त्वपूर्ण निधि को नष्ट होने से बचाया। यही कारण है कि आज भी राजस्थान में कितने ही स्थानों पर विशेषत: जयपुर, अलवर, बीकानेर आदि स्थानों पर राज्य के पोथीखाने मिलते हैं जिनमें महत्त्वपूर्ण साहित्य संगृहीत किया हुआ है। यह सब कार्य राज्य-स्तर पर किया गया।
इसके विपरीत राजस्थान के निवासियों ने भी पूरी लगन के साथ साहित्य एवं साहित्यिकों की उल्लेखनीय सेवायें की हैं और इस दिशा में जैन यतियों एवं गृहस्थों की सेवा अधिक प्रशंसनीय रही है। उन्होंने विद्वानों एवं साधुओं से अनुरोध करके नवीन साहित्य का निर्माण करवाया। पूर्व निर्मित साहित्य के प्रचार के लिये ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ करवायी तथा उनको स्वाध्याय के लिये शास्त्र भण्डारों में विराजमान की। प्राचीन साहित्य का संग्रह किया तथा जीर्ण एवं शीर्ण ग्रंथों का जीर्णोद्धार करवा कर उन्हें नष्ट होने से बचाया। जैन संघ की इस अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय साहित्य सेवा के फलस्वरूप राजस्थान के गाँवों, कस्बों एवं नगरों में ग्रंथ संग्रहालय स्थापित किये गये तथा उनकी सुरक्षा एवं संरक्षण का सारा भार उन्हीं स्थानों पर रहने वाले जैन श्रावकों को दिया गया।
साहित्य संग्रह की दिशा में राजस्थान के अन्य स्थानों की अपेक्षा जयपुर, नागौर, जैसलमेर आदि स्थानों की भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषय-वैचित्र्य आदि की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। राजस्थान के इन भण्डारों में ताड़पत्र, कपड़ा और कागज इन तीनों पर ही ग्रंथ मिलते हैं किन्तु ताड़पत्र के ग्रंथ तो जैसलमेर के भण्डारों में ही मुख्यतया संगृहीत हैं। अन्य स्थानों में उनकी संख्या नाममात्र की है। कपड़े पर लिखे हुये ग्रंथ भी बहुत कम संख्या में मिलते हैं। अभी जयपुर के
(५५)
For Private & Personal use only
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
पार्श्वनाथ ग्रंथ भण्डार में कपड़े पर लिखा हुआ संवत् १५१६ का एक ग्रंथ मिला है। इसी तरह के ग्रंथ अन्य भण्डारों में भी मिलते हैं लेकिन उनकी संख्या भी बहुत कम है। सबसे अधिक संख्या कागज पर लिखे हुये ग्रन्थों की है जो सभी भण्डारों में मिलते हैं तथा जो १३वीं शताब्दी से मिलने लगते हैं।
जयपुर नगर सम्वत् १७८४ में बसाया गया था। यहाँ के शास्त्र-भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषय वैचित्र्य आदि सभी दृष्टियों से उत्तम हैं। वैसे तो यहाँ के प्रायः प्रत्येक मन्दिर में शास्त्र संग्रह किया हुआ मिलता है; किन्तु जैनविद्या संस्थान का शास्त्र भण्डार, बड़े मंदिर का शास्त्र भण्डार, ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, पं. लूणकरणजी पांड्या के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, पाटोदी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार आदि कुछ ऐसे शास्त्र भण्डार हैं जिनमें प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं के महत्त्वपूर्ण साहित्य का संग्रह है। अपभ्रंश का जितना अधिक साहित्य जयपुर के इन भण्डारों में संगृहीत है उतना राजस्थान के अन्य भण्डारों में संभवत: नहीं है।
यहाँ के शासक एवं जनता दोनों ने ही मिल कर अथक प्रयासों से साहित्य की अमूल्य निधि को नष्ट होने से बचा लिया। इसलिये यहाँ के शासकों ने जहां राज्य स्तर पर ग्रंथ संग्रहालयों एवं पोथीखानों की स्थापना की, वहीं यहाँ की जनता ने अपनेअपने मन्दिरों एवं निवास स्थानों पर भी पाण्डुलिपियों का अपूर्व संग्रह किया। जयपुर का पोथीखाना जिस प्रकार प्राचीन पाण्डुलिपियों के संग्रह के लिये विश्वविख्यात हैं उसी प्रकार नागौर, जैसलमेर एवं जयपुर के जैन ग्रंथालय भी इस दृष्टि से सर्वोपरि हैं। बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार -
बधीचन्दजी का दिगम्बर जैन मन्दिर जयपुर में जौहरी बाजार के घी वालों के रास्ते में स्थित है। यहाँ प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं के ग्रन्थों का उत्तम संग्रह किया हुआ मिलता है। कुछ ग्रन्थों की ऐसी प्रतियां भी यहाँ है जो ग्रन्थ निर्माण के काफी समय के पश्चात् लिखी होने पर भी महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसी प्रतियों में स्वयम्भूका हरिवंशपुराण, महाकवि वीर कृत जम्बूस्वामीचरित्र, कवि सधारू का प्रद्युम्नचरित आदि उल्लेखनीय है। भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति वड्डमाणकाव्य की वृत्ति की है जो संवत् १४८१ की लिखी हुई है।
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(५६)
For Private & Personal use only
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
ठोलियों के दिगम्बर जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार -
ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार ठोलियों के दिगम्बर जैन मन्दिर घी वालों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर में स्थित है । भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति ब्रह्मदेव कृत द्रव्यसंग्रह टीका की है जो संवत् १४१६ (सन् १३५९ ) की लिखी हुई है। इसके अतिरिक्त योगीन्द्रदेव का परमात्मप्रकाश सटीक, हेमचन्द्राचार्य का शब्दानुशासनवृत्ति एवं पुष्पदन्त का आदिपुराण आदि रचनाओं की भी प्राचीन प्रतियां उल्लेखनीय हैं।
शास्त्र भण्डार पंडित लूणकरणजी पांड्या -
यह लूणा पांड्या के मन्दिर के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। पंडित लूणकरणजी जैन यति थे, जो पांड्या कहलाते थे। सबसे प्राचीन प्रति इस भण्डार में अपभ्रंश के परमात्मप्रकाश की है जो संवत् १४०७ में लिखी गयी थी ।
शास्त्र भण्डार श्री दिगम्बर जैन मन्दिर बड़ा तेरापंथियों का -
जयपुर नगर बसने के कुछ समय बाद ही इस मन्दिर का निर्माण हुआ। इस मन्दिर में स्थित शास्त्र भण्डार जयपुर के अन्य शास्त्र भण्डारों की अपेक्षा उत्तम एवं वृहद् है । भण्डार में उपलब्ध अपभ्रंश साहित्य महत्त्वपूर्ण है। अपभ्रंश एवं प्राकृत के ग्रन्थों की प्राचीन प्रतियों के अतिरिक्त कुछ ऐसी भी रचनायें हैं जो केवल इसी भण्डार में सर्व प्रथम उपलब्ध हुई हैं। प्राचीन प्रतियों में कुन्दकुन्दाचार्य कृत प्राकृत पञ्चास्तिकाय की संवत् १३२९ की प्रति मिली है जो भण्डार में उपलब्ध प्रतियों में सबसे प्राचीन प्रति है। महाकवि पुष्पदन्त विरचित आदिपुराण की यहाँ एक सचित्र प्रति भी उपलब्ध हुई है। यह प्रति संवत् १५९७ की है। इसमें ५०० से भी अधिक रंगीन चित्र हैं। (इसका प्रकाशन जैनविद्या संस्थान से सन् २००६ में कर दिया गया है।) अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों में वारक्खरी दोहा, दामोदर कृत णेमिणाह चरिउ तथा तेजपाल कृत संभवणाह चरिउ उल्लेखनीय हैं। अपभ्रंश भाषा की महाकवि धवल कृत हरिवंशपुराण की एक प्राचीन एवं सुन्दर प्रति भी यहाँ है।
शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मंदिर पाटोदि -
इस मंदिर का निर्माण जयपुर नगर की स्थापना के साथ हुआ था और उसी समय यहाँ शास्त्र भण्डार की भी स्थापना हुई। इसलिये यह शास्त्र भण्डार २०० वर्ष से भी अधिक पुराना है। भंडार में अपभ्रंश महाकवि पुष्पदन्त कृत जसहर चरिउ की
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
(५७)
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रति सबसे प्राचीन है जो सम्वत् १४०७ में चन्द्रपुर दुर्ग में लिखी गई थी। यहाँ प्राकृत के गोम्मटसार जीवकांड, समयसार आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध है। अपभ्रंश भाषा के ग्रंथों में लक्ष्मण देव कृत णेमिणाह चरिउ, नरसेन की जिनरात्रिविधान कथा, मुनिगुणभद्र का रोहिणी विधान एवं दशलक्षण कथा तथा विमल सेन की सुगंधदशमीकथा यहाँ उपलब्ध है।
जयपुर से बाहर के शास्त्र भण्डार
शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, डीग -
भण्डार में प्राकृत की भगवती आराधना सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि है। जिसका लेखन काल संवत् १५११ है । इसके अतिरिक्त अपभ्रंश काव्य भविसयत्त चरिउ ( श्रीधर ) की प्रति भी यहाँ उपलब्ध है।
शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर पार्श्वनाथ, टोडारायसिंह -
यहाँ अपभ्रंश के णायकुमार चरिउ ( सम्वत् १६१२) जम्बू स्वामी चरिउ ( सम्वत् १६१०) आदि ग्रन्थों के नाम उल्लेखनीय है।
शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर संभवनाथ, उदयपुर -
यहाँ अपभ्रंश का यश कीर्ति द्वारा रचित हरिवंशपुराण ग्रन्थ उपलब्ध है।
शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर, बसवा -
महाकवि श्रीधर की अपभ्रंश कृति भविसयत्त चरिउ की संवत् १४६२ की पाण्डुलिपि यहाँ उपलब्ध है।
शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर, करौली -
यहाँ दो मंदिर है और दोनों में ही शास्त्रों का संग्रह है। दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर एवं दिगम्बर जैन सोगाणी मन्दिर । अपभ्रंश भाषा की वरांग चरित्र की पाण्डुलिपि यहाँ उपलब्ध है।
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(५८)
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन तेरहपंथी मन्दिर, दौसा -
अधिकांश ग्रन्थ अपभ्रंश एवं हिन्दी के है। अपभ्रंश ग्रन्थों में जिणयत्त चरिउ (लाखू), सुकुमाल चरिउ (श्रीधर), वड्ढमाणकहा (जयमित्तहल), भविसयत्तकहा (धनपाल) एवं महापुराण (पुष्पदंत) के नाम उल्लेखनीय है।
उपर्युक्त सामग्री राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों की ग्रन्थ सूची' से संकलित की गई है। प्राकृत-अपभ्रंश की बहुलता के लिए अन्य शास्त्र भण्डार निम्न है:
शास्त्र भण्डार जैनविद्या संस्थान, जयपुर; भट्टारकीय शास्त्र भण्डार, नागौर; एवं जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार, जैसलमेर। इन तीनों का यहाँ परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है :शास्व भण्डार जैनविद्या संस्थान, जयपुर -
यहाँ अपभ्रंश के बहुत ग्रन्थ संगृहीत हैं। कुछ के नाम इस प्रकार है : महापुराण-पुष्पदंत (संवत् १४६१)
अमरसेण चरित्र-माणिक्क (संवत् १५७७) पास पुराण-पद्मकीर्ति (संवत् १४९४)
श्रीपाल मैनासुंदर चरिय नरसेन (संवत् १५७९) सुदंसण चरिय-णयणंदि (संवत् १५०४)
श्रेणिय चरिउ-जयमित्त हल्ल (संवत् १५८०) जंबू सामि चरित-कविवीर (संवत् १५१६) श्री बाहुबलि देव चरिय-बुह धणवाल (संवत् १५८४) पउमचरिउ-स्वयंभू (संवत् १५४१)
प्रद्युम्न चरित्र-कवि सिंह (संवत् १५८६) करकण्ड चरिउ-मुनि कनकामर (संवत् १५६३) सुलोयणा चरिय-गणिदेवसेन (संवत् १५८७) रयणकरण्ड-श्रीचन्द (संवत् १५६३)
भविसयत्त चरिय-धणवाल (संवत् १५८८) मयण पराजय-चरिउ-हरिदेव (संवत् १५७६) दोहापाहुड-महयन्दु (संवत् १६०२)
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(५९)
Jain Education Intematon
For Private & Personal use only
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
पण्डुपुराण-जसकित्ति (संवत् १६०२)
जसहर चरिय-पुष्पदन्त (संवत् १६८७) चन्दप्पह चरिय-जसकित्ति (संवत् १६०३) मृगावती चरित्र-समय सुन्दरगणि (संवत् १६८७) अप्पसंवोह कव्व (संवत् १६०७)
वर्द्धमान काव्य-जयमित्त हल्ल (संवत् १८१२) जिणयत्त कहा-लहखू (संवत् १६११)
मल्लि चरिउ-जयमित्त हल्ल णायकुमार चरिउ-पुष्पदंत (संवत् १६१२) भविसयत्त चरित-विवुह सिरिहर मेहेसर चरिय-रइधू (संवत् १६१९)
परमिट्ठपयाससार-सुदकित्ति धणकुमार चरिय-रइधू (संवत् १६३६)
पास-चरित-तेजपाल अपभ्रंश भाषा के अतिरिक्त प्राकृत भाषा की भी यहाँ महत्त्वपूर्ण पाण्डुलिपियाँ है : भगवती आराधना-आचार्य शिवकोटि (संवत् १५१४) मूलाचार (संवत् १७८८) प्रवचनसार-आचार्य कुन्दकुन्द (संवत् १५४७) अष्टपाहुड-आचार्य कुन्दकुन्द (संवत् १८०१) त्रिलोकसार-आचार्य नेमिचन्द्र (संवत् १५६०) जंबूचरित्र (संवत् १८१५) णायाधम्म कहा (संवत् १६००)
त्रिलोकसार-आचार्य नेमिचंद (संवत् १८५९) पंचास्तिकाय-आचार्य कुन्दकुन्द (संवत् १६२७) स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा-स्वामीकार्तिकेय (संवत् १८६६) तत्त्वसार-देवसेन (संवत् १६२९)
कुम्मापुत्त-चरित्तं-माणिक्य सुन्दर (संवत् १८६९) षडावश्यक (संवत् १६७४)
द्रव्य संग्रह-आचार्य नेमिचन्द्र (संवत् १९२२) उवएसमाला-धम्मदास गणि (संवत् १७१४) उपदेश-रत्नमाला - पदम जिणसरसूरि
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
बारहणुवेक्खा - आचार्य कुन्दकुन्द
आराधनासार- देवसेन
गोम्मटसार कर्मकाण्ड आचार्य नेमिचन्द्र
समयसार - आचार्य कुन्दकुन्द
पंचसंग्रह - सुमतिकीर्ति
भट्टारकीय ग्रन्थ भण्डार, नागौर :
यह भण्डार प्राकृत-अपभ्रंश के ग्रन्थों के लिए महत्त्वपूर्ण है। यहाँ अपभ्रंश के बहुत ग्रन्थ संगृहीत है, कुछ के नाम इस
प्रकार है:
परमात्मप्रकाश योगीन्दुदेव (संवत् १४४०)
वरांग चरित्र - पं. तेजपाल (संवत् १६०७)
इष्टोपदेश- अमरकीर्ति (संवत् १४६८ )
सम्यक्त्व कौमुदी रइधू ( संवत् १६०९)
आत्म सम्बोध काव्य- इधू ( संवत् १६१२ )
श्रीपाल चरित्र - पं. नरसेन (संवत् १५७१) सकल विधि विधान काव्य- नयनन्दि (संवत् १५७७) ऋषभनाथ चरित्र - पुष्पदन्त (संवत् १६१६)
चन्द्रप्रभ चरित्र - यश: कीर्ति (संवत् १५८१)
भविष्यदत्त चरित्र - धनपाल (संवत् १६२८)
मदनपराजय-हरिदेव (संवत् १५८७ )
मिनाह चरित्र - पं. दामोदर
वर्द्धमान काव्य- जयमित्तहल्ल (संवत् १५९२)
यहाँ प्राकृत के भी कई ग्रन्थ संगृहीत है। कुछ के नाम इस प्रकार है :
जीव प्ररूपण - गुणरयण भूषण ( संवत् १५११ )
भगवती आराधना- शिवार्य (संवत् १५६८)
भावसंग्रह - देवसेन (संवत् १६०४)
-
बाहुबली चरित्र - पं. धनपाल
-
सप्ततत्त्वादि वर्णन (संवत् १६१४)
भगवतीसूत्र (संवत् १६०९)
उपासकाध्ययन-आचार्य वसुनन्दि (संवत् १६४८)
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
(६१)
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
लघु प्रतिक्रमण (संवत् १६५१)
आराधना सार-देवसेन कल्पसूत्र बालावबोध (संवत् १७१७) जिनभद्रसुरि ज्ञान भण्डार, जैसलमेर :
इस प्रसिद्ध भण्डार में प्राकृत के जैनआगम एवं आगमेतर ग्रन्थों का विशाल-संग्रह है। कुछ के नाम प्रस्तुत हैं: आचारांग-सुधर्मा (संवत् १५००)
भगवती सूत्र (व्याख्या प्रज्ञप्ति)-सुधर्मा (संवत् १५००) सूत्रकृतांग-सुधर्मा (संवत् १५००)
सूत्रकृतांग की नियुक्ति-भद्रबाहु (संवत् १५७२) स्थानांग-सुधर्मा (संवत् १५००)
आचारांग की नियुक्ति-भद्रबाहु (संवत् १६७१) आदि जैन आगम साहित्य संगृहीत है। लोकनालि-जिनवल्लभ (संवत् १३००)
हरिबल चरित्र (संवत् १६००) प्रवचन संदोह (संवत् १३००)
पउमचरियं-विमलसूरि (संवत् १६२५) अष्ट प्रकारी पूजा कथानक (संवत् १४००) कुर्मापुत्रकथा-जिणमाणिक्यसूरि (संवत् १६६४) पुष्पमाला (संवत् १४७८)
अंगविद्या (संवत् १६६९) धर्मोपदेश माला-जयसिंह सूरि (संवत् १४००-१५००) पंच अणुव्रत (संवत् १७००) महिपाल चरित्र-वीरदेव गणि (संवत् १५००) नवतत्त्व (संवत् १७००) गौतमपृच्छविचार (संवत् १५००)
वजालग्गं (संवत् १७००) श्रीपाल चरित्र (संवत् १५७०)
तत्त्वतरङ्गिणि-तेजसागरगणि (संवत् १८००) प्रवचनसारोद्धार – नेमिचन्दसूरि (संवत् १५८७)
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
Jain Education Interation
For Private & Personal use only
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश के कुछ ग्रन्थ इस प्रकार है: योगशास्त्र का बालावबोध (संवत् १६००) ऋषभ विवाहलौ (संवत् १६०६) सुदर्शनकथा (संवत् १७००) पूरणश्रेष्ठी कथा (संवत् १७००) रत्नपरीक्षा समुच्चय (संवत् १८००) महावीर बत्तीसी (संवत् १९००)
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(६३)
For Private & Personal use only
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तुत आधुनिक रूपान्तरण पाण्डुलिपि का अक्षरशः रूपान्तरण है। इसका उद्देश्य विद्यार्थी को पाण्डुलिपि के अक्षर पहचानना एवं पाण्डुलिपि पढ़ना सिखाना है। संपादित पुस्तक एवं दिये गए आधुनिक रूपान्तरण के अक्षरों में कहीं-कहीं अन्तर हो सकता है। विद्यार्थी को चाहिए कि वह केवल पाण्डुलिपि के अक्षर एवं शब्दों को पहचानने का प्रयास करे ।
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
For Private & Personal use only
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १ भगवती आराधना
रस्स जह दवारं महस्स चक्खं तरुस्स जिह मूलं ॥ तह जाण सुसम्मत्तं णाणचरणवीरियांततवाणं ॥३६॥ भावाणुरागपेमाणुरागमज्जाणुरागरत्तो व्वं ॥ धम्माधम्माणुरागरत्तो य होहि जिणसासणे णिच्चं ॥३७॥ दंसणभट्ठो भट्ठो दंसणभट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं ॥ सिझंति चरियभट्ठा दंसणे भट्ठा ण सिझंति ॥३८॥ दंसणभट्ठो भट्ठो ण हु भट्ठो होइ चरणभट्ठो हु दंसणममुयंतस्स हु परिवडणं णत्थि संसारे ॥३९॥ सुद्धे सम्मत्ते अविरदो वि अज्जेदि तित्थयरणाम। जादो हु सेणिगो आगमेसि अरहो अविरदो वि॥४०॥ कल्लाणपरपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता॥ सम्मइंसणरयणं णग्घदि ससुरासुरो लोओ॥४१॥ सम्मत्तस्स य लंभो तेलोकस्स य हवेज जो लंभो॥ सम्मइंसणलंभो वरं खु तेलोक्कलं ॥ भादो॥४२॥ लढूण वि तेलोकं परिवडदि हु परिमिदेण कालेण। लहूण य सम्मत्तं अक्खयसुक्खं लह दि मोक्खं ॥४२॥ सम्मत्तं ॥ अरहंतसिद्धचेदियपवयणआयरियसव्वसाधूसु। तिव्वं करेहि भत्ती णिव्विदिगिच्छेण भावेण ॥४३॥ संवेगजणिदकरणा णिस्सल्ला मंदरोव्व ण्णिकंपा। जस्स दढा जिणभत्ती तस्स भवं णत्थि संसारे॥४४॥ एया वि सा समत्था जिणभत्ती दुगाई णिवारेढुं। पुणाणि य तरेदुं आसिद्धिपरंपरसुहाणं ॥४५॥ तह सिद्धचेदिए पवयणे य आयरियसव्वसाधूसु। भत्ती होदि समत्था संसारुछेदणे तिव्वा ॥४६॥ विजा वि भत्तिवंतस्स सिद्धिमुवयादि होदि सफला य। किह पुण णिव्वुदिबीजं सिज्झिहदि अभत्तिमंतस्स ॥४७॥ तेसिं आराधणणायगाणं ण करेज जो णरो भत्तिं। धत्तिं पि संजमंतो सालिं सो ऊसरे ववदि॥४८॥ वीएण विणा सस्सं इच्छदि सो वा समब्भएण विणा। आराधणमिछंतो आराधगभत्तिमकरंतो॥४९॥ विधिणा कदस्स सस्सस्स जहा णिप्पादयं हवदि वासं। तह अरहादियभत्ती णाणचरणदसणतवाणं ॥५०॥ वंदणभत्तीमत्तेण चेवमिहिलाहिवो य पउमरहो। देविंदयाडिहेरं पत्तो जादो गणधरो या॥५१॥ भत्ती आराधणापुरस्सरमणण्णहिदओ विसुद्धलेसाओ। संसारस्स खयकरं मा मोचीओ णमोकारं ॥५२॥
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(६७)
For Private & Personal use only
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
अरहन्तणमोकारो एक्को वि हवेज जो मरणकाले। सो जिणवयणे दिट्ठो संसारछेदणसमत्थो ।५३॥ जे भावणमोक्कारेण विणा सम्मत्तणाणचरणतवा। ण हु ते होंति समत्था संसारुछेदणं कादं ॥५४॥ चउरंगाए सेणाए णायगो जह पवत्तओ होदि। तह भावणमोकारो मरणे तवणाणचरणाणं ॥५५॥ आराधणापडायं गेण्हतस्स हु करो णमोकारो। मल्लस्स जयपडायं जह हत्थो घेत्तुकामस्स॥५६॥ अणाणी वि य गोवो आराधित्ता मदो णमोक्कारं। चम्पाए सेट्ठिकुले जादो पत्तो य सामण्णं ॥५७॥ णमोक्कारं ॥ णाणोवउगरहिदेण॥ ण सक्का चित्तणिग्गहो काउं। णाणं अंकुसभूदं मत्तस्स हु वित्तहत्थिस्स।।५८॥ विज्जा जहा पिसायं सुटु वउत्ता करेदि पुरिसवसं णाणं हिदयपिसायं सुट्ट वउत्तं तह करेदि॥५९॥ उवसमई कण्हसप्पो जह मंतेण विधिणा पउत्तेण। तह हिदयकिण्हसप्पो सुट्ठवउत्तेण णाणेण ॥६० ॥ आरण्णओ वि मत्तो हत्थी णियमिजदे वरत्ताए। जह तहा णियमिज्जदि सो णाणवरत्ताए मणहत्थी॥६१॥ जह मक्कडओ खणमवि मज्झत्थो अछिर्दु ण सक्केइ। तह खणमवि मज्झत्थो विसएहिं विणा ण होइ मणो॥६२॥ तम्हा सो उड्डहणो मणमक्कडओ जिणोवएसेण। रामेदव्वो णियदं तो सो दोसं ण काहिदि सो॥६३॥ तम्हा णाणुवओगो खवयस्स विसेसओ सदा भणिदो। जह विंधणोवओगो चंदयवेझं करितस्स ॥६४॥ णाणपदीवो पज्जलइ जस्स हियए विसुद्वलेसस्स। जिणदिट्ठमोक्खमग्गे पणास
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(६८)
For Private & Personal use only
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ २ भगवती आराधना
ण भयं ण तस्सत्थि ॥६५॥ णाणुज्जोवो णाणुज्जोवस्स णत्थि पडिघादो। दीवोहि खेत्तमप्पं सूरो णाणं जगमसेसं॥६६॥णाणं ययासओ सो धओ तवो संजमो य गुत्तियरो। तिण्हंपि समाओगे मोक्खो जिणसासणे दिट्ठो ६७॥णाणं करणविहूणं लिंगगाहणं च दंसणविहूणं। संजमहीणो य तवो जो कुणदि णिरत्थयं कुणदि॥६८॥णाणुज्जोएण विणा जो इच्छदि मोक्खसग्गमुवगंतुं। गंतुं कडिल्लमिच्छदि अंधलओ अंधयारम्मि॥६९॥ जइदा खंडसिलोगेण जमो मरणा दु फिडिओ राया। पत्तो य सुसामण्णं किं पुण जिणउत्तसुत्तेण ॥७० ॥ दढ़सुप्पो सूलहदो यंचणमोक्कारमेत्त सुदणाणे। उवजुत्तो कालगदो देवो जाओ महढीउ॥ ७१॥ ण य तंमि देसयाले सव्वो वारसविधो सुदक्खंधो। सक्को अणुचिंते, वलिणा वि समत्थवित्तेण ॥७२॥ एक्कमि वि जंमि पदे संवेगं वीदरागमगामि। गछदि णरो अभिक्खं तं मरणंते ण मोत्तव्वं ॥७३॥ णाणंगदं॥ परिहर छज्जीवणिकायवहं मणवयणकायजोगेहिं । जावज्जीवं कदकारिदाणुमोदेहिं उवउत्तो॥७४॥ जह ते ण पियं दुक्खं तहे तेसिपि जाण जीवाणं। एवं णच्चा अप्पोवम्मिओ जीवेसु होहि सदा ॥७५ ॥ तण्हाछुहादिपरिदाविदो जीवाणं घादणं किच्चा। पडिकारं काहुँ जे मात्त चिंतेसु लभसु सदिं॥७६ ॥ रदिअरदिहरिसभयउस्सुगत्तदीणत्तणादिजुत्तो वि। भोगपरिभोगहे, मा कुविचिंतेहि जीववहं ॥७७॥ मधुकरिसमजिपमहुं व संजमं थोव थोव संगलियं। तेलोक्कसव्वसारं णा वान्नरेहिं मा जहसु ॥७८ ॥ दुक्खणभदि माणुस्सजादिमदिसवणदंसणचरित्तं। दुक्खजियसामण्णं मा जहसु तणं व अगणंतो॥७९॥ तेलोक्कजीविदादो वरेहिं एक्कदर गत्ति देवेहिं । भणिदो को तेलोकं वरेज संजीविदं मुच्चा८० ॥ जं एवं तेलोक्कं णम्घदि सव्वस्स जीविदं तम्हा। जीविदघादो जीवस्स होदि तेलोक्कघादसमो॥८१॥ णत्थि अणूदो अप्पं आयासादो अणूणयं णत्थि। जह तह जाण महल्लं ण वयमहिंसासमं अत्थि।२। जह पव्वएसु मेरू उच्चाओ होइ सव्वलोयंमि। तह जाणसु उच्चायं सीलेसु वदेसु य अहिंसा ।।८३ ॥ सव्वो वि
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
जहायासे लोगो भूमीए सव्वदीवुदधी । तह जाण अहिंसाए वदगुणसीलाणि तिद्वंति ॥ ८४ ॥ कुव्वंतस्स वि जत्तं तुंवेण विणा ण ठन्ति जह अरया ॥ अरएहिं विणा य जहा णट्टं णेमी दुं चक्कस्स ॥८५ ॥ तह जाण अहिंसाए विणा ण सीलाणि उंति सव्वाणि । तिस्सेव रक्खणट्टं सीलाणि वदीव सस्सस्स ॥८६॥ सीलं वदं गुणो वा णाणं णिस्संगदा सुहच्चाओ। जीवेहिंसंतस्स हु सव्वे वि णिरछया होंति ॥ ८७ ॥ सव्वेसिमासमाणं हिदयं गब्भो व सव्वसत्थाणं । सव्वेसि वदगुणाणं पिंडो सारो अहिंसा हु ॥ ८८ ॥ जम्हा असत्ववयणादिएहिं दुक्खं परस्स होदित्ति । तप्परिहारो तम्हा सव्वे वि गुणा अहिंसाए॥८९ ॥ गोवंभणित्थिवधमेत्तणियत्ती यदि भवे परमधम्मो । परमो धंमो किह सो ण होइ जा सव्वभूददया ॥९० ॥ जं जीवणिकायवधेण विणा इंदियकदं सुहं णत्थि । तम्मि सुहे णिस्संगो तम्हा सो रक्खदि अहिंसं ॥ ९१ ॥ जीवो कसायबहुलो संतो जीवाण घादणं कुणदि । सो जीववधं परिहरंदि सदा जो जिदकसाओ ॥ ९२ ॥ आदाणे णिक्खेवे वोसरणे ठाणगमणसयणेसु । सव्वत्थ अप्पमत्ते दयावरे होदि हु अहिंसा ॥ ९३ ॥ कासु णिरारंभे फासुगभोजिम्मि णाणरदिगम्मि । मणवयणकायगुत्तम्मि होदि सयला अहिंसा दु ॥ ९४ ॥ आरंभे जीववहो अप्पासुगसेवणे य अणुमोदो । आरंभादीसु मणो णाणरईए विणा चरदि ॥ ९५ ॥ सव्वे वि य संवंधा पत्ता सव्वेण सव्वजीवेहिं। वो मारंतो जीवो
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
( ७० )
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ३ अष्टपाहुड
ॐ नमः सिद्धेभ्यः॥ काऊण णमोयारं। जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स॥ दंसणमग्गं वोच्छामि। जहाकम्मं समासेण ॥१॥ दंसणमूलो धम्मो॥ उवइटुं जिणवरेहि सिस्साणं॥ तं सोऊण सकण्णे॥ दंसणहीणो ण वंदिव्वो॥२॥दसणभट्ठा भट्ठा ॥ दंसणभट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं ॥ सिझंति चरियभट्ठा ॥दसणभट्ठा ण सिझंति ॥३॥ सम्मत्तरयणभट्ठा ॥ जाणंता बहुविहाइ सत्थाइ॥ आराहणविरहिया। भमंति तत्थेव तत्थेव।।४॥ सम्मत्तविरहिया णं। सुटु वि उग्गं तवं चरंता णं॥ ण लहंति वोहिलाहं॥ अवि वाससहस्सकोडीहिं॥५॥ सम्मत्तणाणदंसण॥ वलवीरिय वड्डमाण जे सव्वे॥ कलिकलुसपावरहिया॥ वरणाणी हुंति अइरेण॥६॥ सम्मत्तसलिलपवहो॥ णिच्चं हियए ण पवहए जस्स॥ कम्मं वालुयवरणं॥ बंधुच्चिय णासए तस्स ॥७॥ जे दंसणेसु भट्ठा॥ णाणे भट्ठा चरित्तभट्ठा य॥ एदे भट्ठ वि भट्ठा॥ सेसं पि जणं विणासंति ॥८॥ जो को वि धम्मशीलो॥ संजमतवणियमजोगगुणधारी॥ तस्स य दोस कहता भग्गा भग्गत्तणं दिति॥९॥ जह मूलम्मि विणद्वे दुम्मस्स परिवार णत्थि परिवड्डी॥ तह जिणदसणभट्ठा मूलविणट्ठा ण सिझंति ॥१०॥जह मूलाओ खंधो। साहापरिवार बहुगुणो होइ॥ तह जिणदंसणु मूलो॥ णिद्दिट्ठो मोक्खमग्गस्स ॥११॥ जे दंसणेसु भट्ठा ॥ पाए पाडंति दंसणधराणं ॥ ते होंति लुल्लमूया ॥ वोही पुणु दुल्लहा तेसिं॥१२॥ जे वि पडंति न तेसिं॥ जाणंता लजागारवभएण॥ तेसिं पणत्थि वोही। पावं अणुमोयमाणाणं ॥१३॥ दुविहं पि गंथिचाए। तीसु वि जोएसु संजम ठादि। णाणम्मि करणसुद्धे ॥ अब्भसणे दंसणं होइ ॥१४॥ सम्मत्तादो णाणं ॥ णाणादो सव्वभावउवलद्धी॥ उवलद्धिपयत्थे पुणु॥ सेयासेयं वियाणेहिं ॥१५॥ सेयासेयविदण्हू उद्बुददुस्सील सीलवंतो वि॥ सीलफलेणब्भुदयं ॥ तत्तो पुणु लहइ णिव्वाणं ॥१६॥ जिणवयणओसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमियभूयं ॥ जरमरणवाहिहरणं ॥ खयकरणं सव्वदुक्खाणं ॥१७॥ एवं जिणस्स रूवं ॥ विदियं उक्किट्ठसावयाणं तु। अवरट्ठियाय तइयं ॥ चउत्थ पुणु लिंग दंसणं णत्थि ॥१८॥ छदव्वणवपयत्था॥ पंचत्थी सप्त तच्च नि॥
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(७१)
For Private & Personal use only
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ४ अष्टपाहुड
परिहर धम्मे अहिंसाए॥१५॥ पव्वज संगचाए॥पयट्ट सुतवे सुसंजमे भावे॥ होइ सुविसुद्धब्भणं॥णिम्मोहे वीयरायत्ते॥१६॥ मिच्छादसणमग्गे॥ मलिणे अणाणमोहदोसेहिं॥ वज्झंति मूढजीवा॥ मिच्छत्ताबुद्धिउदयेण ॥१७॥ सम्मदंसण पस्सदि॥ जाणदि णाणेण दव्वपज्जाय॥ सम्मेण य सद्दहदि य॥ परिहरदि चरित्तजे दोसा ॥१८॥ एए तिण्ण विभाव ॥ हवंति जीवस्स मोहरहियस्स॥ णियगुणआराहतो। अचिरेण वि कम्म परिहरइ ॥१९॥ संखिजमसंखिजं ॥ गुणं च संसारिमेरुमित्ता णं ॥ सम्मत्तमणुचरंता ।। करंति दुक्खक्खयं धीरा ॥२०॥ दुविहं संजमचरणं । सायारं तह हवे णिरायारं॥ सायारं सग्गंथे॥ परिग्गहरहियं णिरायारं ॥२१॥ दंसणवय सामाइय॥ पोसह सच्चित्त रायभत्ते य॥ वंभारंभपरिग्गह अणुमणु उदिट्ट देसविरदो य॥२२॥ पंचेव अणुवयाइ॥ गुणव्वयाइ तहेव तिणेय॥ सिक्खावेय चत्तारि॥ संयमचरणं च सायारं ॥२३॥थूले तसकायवहे॥थूले मोसे तितिक्ख थूले य॥ परिहारो परपिम्मे परिग्गहारंभ परिमाणं ॥२४॥ दिसिविदिसिमाण पढमं॥ अणत्थदंडस्स वज्जणं विदियं ॥ भोगोपभोयपरिमा॥ इयमेव गुणव्वया तिण्णि ॥२५॥ सामाइयं च पढमं॥ विदियं च तहेव पोसहं भणियं । तइयं च अतिहिपुजं ॥ चउत्थं सल्लेहणा अंते॥२६॥ एवं सावयधम्मं॥ संजमचरणं उदेसियं सयलं॥ सुद्धं संजमचरणं॥ जइधम्मे॥ णिक्कलं वोत्थे ॥२७॥ पंचेंदियसंवरणं॥ पंचवयापंचविंसकिरिया सु॥ पंच समिदि तय गुत्तिं संजम चरण णिरायारं ॥२८॥ अमणुण्णे य मणुण्णे॥ सजीवदव्वे अजीवदव्वे य॥ण करोदि रायदेसो॥ पंचेंदियसंवरो भणिओ॥२९॥ हिंसाविरइ अहिंसा ॥ असच्चविरइ अदत्तविरई य॥ तुरियं अवंभविरइ। पंचम संगम्मि विरदी य॥३०॥ साहंति जं महल्ला आयरियं जं महल्लपुव्वेहिं ॥ जं च महल्लाणि तदो॥ महल्लया इंतहेयाई॥३१॥ वयगुत्ती मणगुत्ती॥ इरियासमदी सुदाणणिक्खेवो॥। अवलोय भोयणाए हिंसाए भावणा होंति ॥३२॥ कोहभयहासलोहा॥ मोहाविवरीयभावणा चेव॥ विदियस्स भावणाए। ए पंचेव य तहा होंति ॥३३॥ सुण्णायारणिवासो विमोचियावास जं परोधं च॥ एसणसुद्धिस
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(७२)
For Private & Personal use only
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ५ अष्टपाहुड
हु सो मुणेयव्वो ॥ खेडे वि ण कायव्वं । पाणिपत्तं सचेलस्स ॥७ ॥ हरिहरतुल्लो वि णरो । सग्गं गच्छेइ एइ भवकोडी । तह वि ण पावइ सिद्धिं। संसारत्थो पुणो भणिदो ॥८ ॥ उक्किट्ठसीहचरियं । बहुपरिकम्मो य गरुय भारो य । जो विहरइ सच्छंदं पावं गच्छेदि हवदि मिच्छत्तं ॥९॥ णिच्चेलपाणिपत्तं। उवइट्टं परमजिणवरिंदेहिं । इक्को वि मुखमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ॥ १० ॥ जो संजमेसु सहिओ | आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि। सो होइ वंदणिज्जो। ससुरासुरमाणसे लोए ॥११॥ जे वावीसपरीसह । सहंति सत्तीसएहिं संजुत्ता । ते हुंति वंदणीया । कम्मक्खयणिज्जरा साहू ॥१२॥ अविसेसी जे लिंगी । दंसणणाणेणं सम्म संजुत्ता ॥ चेलेण परिग्गहिया । ते भविया इच्छणिज्जाया ॥ १३ ॥ इच्छायारगिहत्थं । सुत्तत्थिओ जो हु छिंदए कम्मं । ठाणे ठियसम्मत्तं । परलोइ सुहंकरो होइ ॥ १४ ॥ अह पुण अप्पा णच्छदि । धम्मंसु करेदि णिरवसेसाइ । तह वि ण पावदि सिद्धिं। संसारत्थो पुणो भणिदो ॥ १५ ॥ एएण कारणेण य । तं अप्पा सद्धहेह तिविहेण । जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण ॥१६ ॥ वालग्गकोडिमित्तं परिग्गहगहणं ण होइ साहूणं । भुंजेइ पाणिपत्ते । दिण्णणं इकठाणम्मि ॥१७॥ जहजाइरुवसरिसो । तिलतुसमित्तं ण गिहदि हत्थेसु । जइ लेइ अप्पबहुयं । तत्तो पुणु जाइ णिग्गोयं ॥ १८ ॥ जस्स परिग्गहगहणं । अप्पा बुहुयं च हवइ लिंगस्स । सो गरहिउ जिणवयणे। परिगह रहिओ णिरायारो ॥१९॥ पंचमहव्वयजुत्तो । तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होइ । णिग्गंथमुक्खमग्गो । सो होदि हु वंदिणिज्जो य ॥ २० ॥ दुइयं च वृत्त लिंगं । उक्किट्टं अवरसावयाणंतु। भिक्खं भमेह पत्ते । समिदीभासेण मोणेण ॥ २१ ॥ लिंगं इत्थीण हवदि । भुंजइ पिंडं सुएयकालम्मि । अज्जिय वि इक्कवत्था । वड्डावरणेण भुंजेइ ॥२२॥ णवि सिज्झदि वत्थधरो । जिणसासण जइ वि होइ तित्थयरो णग्गो विमुक्खमग्गो सेसा उम्मग्गयासणं ॥ २३ ॥ लिंगंम य इत्थीणं। थणंतरे णहिकक्खदेसेसु । भणिओ सुहुमो काओ । तेसिं कह होइ पव्वज्जा ॥ २४ ॥ जइ दंसणेण सुद्धा उत्तम मग्गेण सावि संजुत्ता | घो
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(७३)
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ६ अष्टपाहुड
सा होइ वंदणीया॥ णिग्गंथा संजदा पडिमा ॥११॥ दंसण अणंत णाणं। अणंतवीरिय अणंतसुक्खा य। सासयसुक्ख अदेहा। मुक्का कम्मट्ठबंधेहिं ॥१२॥ णिरुवममचलमखोहा। णिम्मविया जंगमेण रुवेण। सिद्धठाणम्मि ठिया। वोसरपडिमा धुवो सिद्धा॥१३॥ ॥पडिमा ३॥ दंसेइ मोक्खमग्गं। सम्मत्तं संजमं सुधम्मं च। णिग्गंथं णाणमयं। जिणमग्गे दंसणं भणियं ॥१४॥ जह फुल्लं गंधमयं । भवदि हु खीरं स धियमयं चावि। तह दंसणम्मि सम्म। णाणमयं होइ रुवत्थं ॥१५॥ ॥दसणं ४॥ जिणबिंबणाणमयं। संजमसुद्धं सुवीयरायं च। जं देइ दिक्खसिक्खा । कम्मक्खयकारणे सुद्धा ॥१६॥ तस्स य करहु पणाम। सव्वं पुजं च विणयवच्छल्लं। जस्स य दंसणणाणं अत्थि धुवं चेयणा भावो॥१७॥ तववयगुणेहिं सुद्धो। जाणदि पिच्छेइ सुद्धसम्मत्तं । अरहंतमुद्ध एसा। दायारी दिक्खसिक्खा य॥१८॥ जिणविंवं ॥ ५॥ दढसंजममुद्धाए। इंदियमुद्धा कसायदढ़मुदा। मुद्धा इह णाणाए। जिणमुद्धा एरसा भणिया॥१९॥ जिणमुद्धा ॥६॥ संजमसम्मत्तस्स य। सुज्झाणजोयस्स मोक्खमग्गस्स। णाणेण लहदि लक्खं तम्हा णाणं च णायव्वं ॥२०॥ जह ण वि लहदि हु लक्खं। रहिओ कंडस्स वेज्झयविहीणो। तह ण वि लक्खदि लक्खं। अण्णाणी मोक्खमग्गस्स ॥२१॥ णाणं पुरिसस्स हवदि। लहदि सुपुरिसो वि विणयसंजुत्तो णाणेण लहदि लक्खं। लक्खंतो मोक्खमग्गस्स ॥२२॥ मइधणुहं जस्स थिरं। सुइगुण वाणा सुअस्थि रयणत्तं परमत्थबद्धलक्खो ण वि चुक्कदि मोक्खमग्गस्स ॥णाणं ॥७॥ सो देवो जो अत्थं । धम्म कामं सुदेइ णाणं च। सो देइ जस्स अत्थि दु। अत्थो धम्मो य पव्वज्जा ॥ धम्मो दयाविसुद्धो। पव्वजा सव्वसंगपरिचत्ता। देवो ववगयमोहो। उदयकरो भव्वजीवाणं ॥२५॥ देवं ॥८॥ वयसम्मत्तविसुद्धे। पंचेंदियसंजदे णिरावेक्खो। ण्हाएउ मुणी तित्थे। दिक्खासिक्खासुण्हाणेण ॥२६॥ जं णिम्मलं सुधम्म। सम्मत्तं संजमं तवं णाणं। तं तित्थं जिणमग्गे। हवेइ जदि संतिभावेण ॥२७॥ तित्थं ॥ णामे ठवणे हि य सं। दव्वे भावे य सगुणपज्जाया। चउणायदि संपदिमे। भावा भावंति अरहंतं ॥२८॥ दंस
(७४)
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
For Private & Personal use only
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ७
दशवैकालिक
नारिं वा सुअलंकियं भक्खरं पिव दट्ठणं दिट्ठि पट्ठि समाहरे ॥५५ ॥ हत्थ पाय पडिछिन्नं कण्ण नास विग्गप्पियं । अवि वाससयं नारिं बंभयारि विवज्जए॥५६॥ विभूसा इत्थि संसग्गि पणीय रस्स भायेणं । नरस्सत्त गवेसिस्स विसं तालउड जहा ॥ ५७ ॥ अंग पच्चंग संठाणं चारुल्ल विय पेहियं । इत्थीणं तं न निज्झाए काम राग विवद्ण ॥ ५८ ॥ विसएसु मणुण्णेसु पेमं नाभि निवेसए । अणिच्चं तेसिं विण्णाय परिणामं गालायं ॥ ५९ ॥ पुगालाण परिण्णाम्मं तेस्सि नच्चा जहा तहा। विणीयतण्हो विहरे सीईभुएण अप्पणा ॥ ६० ॥ जाए सद्धाए निक्खंतो परियायट्ठाण मुत्तमं तमेव अणुपालिज्जा गुणे आयरियसमये ॥ ६१ ॥ तवं चिमं संजमं जोगयं च सज्झाय जोग च सया अहिट्ठिए। सुरे व सेणाए सम्मत्तमाउहे अलमप्पणो होइ अलं परेसिं ॥ ६२ ॥ सज्झाय सज्झाणरयस्स ताइणो अप्पावभावास्स तवे रयस्स । विसुडज्झई जं सि मलं पुरेकडं समीरियं रूप्पमलं व जोइणो ॥ ६३ ॥ से तारिसे दुक्खसहेजिइंदिए सुएण ज्जुत्तेअममे अकिंचणे । विरायईक्कमघणंमि अवगए कसिणब्भपुरावगमेवचंदि तित्थेमि॥६४॥ (आयार पणिहि अज्झयणं सम्मत्तं ८ । )
थंभा व कोहा व मयप्पमाया गुरुसगासे विणयं न सिक्खे। सोचेवओत्तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जे यावि मंदिति गुरू व इज्जा डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छं पडिवज्जमाणा करेंति आस्सायण ते गुरुणं ॥ २ ॥ पगईए मंदा विभवंति एगे डहराचिय जे सुयबुद्धोववेया । आयारमंतागुण सुद्धि अप्पा जेहिलिया सिहिरि व भास कुजा ॥३ ॥ जे यावि नागं डहरंति न वा आसायए से अहियाय होइ। एवायरिय पिहुहि लयंतो नियव्वइ जाइ पहं खुमंदो ॥४ ॥ आसीविसोवावि परंसुरुट्ठो किं जीव नासाओ परंतु कुज्जा । आयरिय पाया पुण अप्पसुना अबोहिया सायण नत्थि मुक्खो ॥५ ॥ जो पावगं जलियमव्वक
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
(७५)
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ८
कुम्मापुत्तचरियं
नमिऊण वड्ढमाणं असुरिंदसुरिंदपणयकमकमलं । कुम्मापुत्तचरित्तं वच्छामि अहं समासेण ॥१ ॥ रायगिहे वरनयरे नयरेहापत्तसयलपुरिसवरे । गुणसिलए गुणनिलए समोसढो वड्ढमाणजिणो ॥२॥ देवेहिं समोसरणं विहियं बहुपावकम्मओसरणं । मणिकणयरवयसारंप्पाकरपरिफुरियं ॥३॥ तच्छ निविच्छो वीरो कणयससिरीसमुद्धगंभीरो । दाणाइचउप्पयारं कहेइ धम्मं परमरम्मं ॥४॥ दाणसीलतवभावाणभेएहिं चउविहो हवइ धम्मो । सव्वेसु तेसु भावो महप्पभावो मुणेअव्वो ॥५ ॥ भावो भवुदहितरणि भावो सग्गापवग्गपुरसरणी । भविआणं मणचिंतिअअचिंतचिंतामणी भावो ॥६॥ भावेण कुम्मपुत्तो अवगयतत्तो अगहि आचरित्तो । गिहवासे वि वसंतो संपत्तो केवलं नाणं ॥ ७ ॥
इच्छंतरे इंदभूई नामं अणगारे भगवओ महावीरस्स जिट्टे अतेवासी ग्गेयमगुत्तो समचउरंससरीरे वज्जरिसहनारायसंघयणें कणयपुलगनिघसम्मग्रे उग्गत्तवे दित्ततवे महितेवे घोरतवे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छुढसरीरे संखित्तविउलतेउलेसे चउदसपूव्वी चउणाणोवगए पंचेहिं अणग्गरसएहिं सद्धि संपरिवुडे छटुंछट्टेणं अप्पाणं भावेमाणे उट्ठाए उट्ठेइ उट्ठित्ता भगवं महावीरं तिक्खुत्तो अर्याहिणंपयहिणं करेइ करिता वंदइ मंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी भगवं को नाम कुम्मापुत्तो कहं व तेण गिहवासे वसंतेणं भावणं भावंतेणं अनंतं अणुत्तरं निव्वाघायं निरावरणं कसिणं पडिपुनं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडिअं तए णं समणे भगवं महावीरे जोयणग्गमिणीए सुधासमाणीएं वाणीए वागरेइ ग्गेयम जं मे पुच्छंसि कुम्मापुत्तस्स चरिअत्थरियं । एगग्गमणो होउ समग्गमवि तं निसामेसू ॥८ ॥ तथाही ॥ जंबुद्दीवे देवे भरहखित्तस्स मब्भयारंमि । दुग्गमपुराभिहाणं जगप्पहाणं पुरं अच्छि ॥९ ॥ तच्छ य दोणनरिदो पयावलच्छिइ निज्जिअदिणंदो । निच्च अरिअण्णवज्जं पालइ निक्कंटयं रज्जं ॥१०॥
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
(७६)
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ९
कुम्मापुत्तचरियं
तं निणिअ भद्दी भद्दमुही नाम जक्खिणी हिट्ठा | माणवईरूवधरा कुमरसमीवंमि संपत्ता ॥ २० ॥ दट्ठणं त कुमारं बहुकुमरुच्छालणिक्क तल्लिछं। सा जंपई हसिऊणं किमिमेणं वंकरमणेणं ॥ २१ ॥ जइ ताव तुब्भ चित्तं विचित्तचित्तंमि चंचलं हेइ । ता मब्भं अणुधावसु वयणमिणं सुणिय सो कुमरो ॥ २२ ॥ तं कन्नं अणुधावइ तन्मयणंकउहलाकुलिअचित्तो । तप्पुरओ धावंति सा वि हु तं नियवणं नेइ ॥ २३ ॥ बहुसालवडस्स अहो पण पायालमब्भमाणीओ । सो पासइ कणयमयं सुरभवणमईव रमणीयं ॥ २४ ॥ तं च केरिसं रयणमयथंभपंतीकंतीभरब्भरिअभिंतरपएसं । मणिमयतोरणधोरणितरुणपहाकिरणकबुरिअं ॥ २५ ॥ मणिमयथंभअहिट्ठि अपुत्तलिआकेलिखोभिअजणोहं । बहुभत्तिवित्तिचित्तिअगवखसंदोहकयसोहं ॥२६ ॥ एअमवलोइऊणं सुरभुवणं भुवणचित्तवृद्यकरं । अइ विम्हयमावन्नो कुमरो इअ चिंतिउं लग्गो ॥ २७ ॥ किं इंदजालमेअं सुमिणं सुसणंमि दीसइएइच्छ। अहयं निअ नयरीओ इह भवणो केण आणीओ ॥ २८ ॥ इअ संदेहाकुलिअं कुमरं विनिवेसिऊण पल्लंके। विन्नवइ वंतरवहू सामिअवयणं निसामेसु ॥ २९ ॥ अच्छमए अच्छमए चिरेण कालेण नाह दिट्ठो सि । सुरभिवणे सुरभुवणे निअकज्जे आणिओ सि तुमं ॥ ३० ॥ अद्यं चिअ मब्भ मणो मणोरहो कप्पपायवो फलिओ । जं सुकसुकयवसओ अच्छ तुमं मब्भ मिलिओ सि ॥ ३१ ॥ ई अव
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(७७)
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १० कुम्मापुत्तचरियं
री तस्सरीरंमि॥३५॥ पुव्वभवंतरभजा लज्जाइ विमुत्तु भुंजए भोए। एवं विसयसूहाई दुन्नि वि विलसंति तच्छ ठिआ॥३६॥
चतुर्विधभोगस्वरूपं स्थानांगेप्युक्तं चउहिं ठाणेहि ठाणेहि देवाणं संवासपन्नत्तेतं जहा। देवे नामं एगे देवीए सद्धिं संवासंमागछिज्जा १. देवे नामं एगे छवीए सद्धिं संवसंमागछिजा २. छवीए नाम एगे देवीए सद्धिं संवासंमागछिज्जा ३. छवीए नामं एगे छवीए सद्धिं संवासंमागछिज्जा ४. इओ अह तस्स अम्मापिअरो पुत्तविओगेण दुक्खिया णिच्वं । सव्वच्छ वि सोहंति अ लहंति न हि सुद्धिमत्तं पि॥३७॥ देवेहि अवहरियं इअर नरेहि पाविछए कहं चत्थु । जेण नराण सुराणं सत्तीए अंतरं गुरुअं॥३८॥ अह तेहिं दुक्खिएहिं अम्मापिअरेहि केवली पुट्ठो। भयवं कहेह अम्हं सो पुत्तो अत्थि कत्थ गओ॥३९॥ तो केवली पयंपइ णेह सवणेहिं सावहाणमणो। तुम्हाणं सो पुत्तो अवहरिओ वंतरिए अ॥४०॥ ते केवलिवयणेणं अइव अछरिअविम्हिआ जाया। साहंति कहं देवा अपवित्तनरं अवहरंति ॥४१॥ ॥ यदुक्तमागमे॥ चत्तारि पंच जोयणसयाइ गंधो अ मणुअलोगस्स। उड्ढे वच्चइ जेणं न हु देवा तेण आवति ॥४२॥ तओ केवलिना भणियं पंचसू जिणल्लाणेसु चेव महरिसितवाणुभावाओ। जम्मंतरणेहेण य आगछंति सूराइहयं ॥४३॥ तो केवलिणा कहियं तीसे जम्मंतरसिणेहाइ। ते बिंति तओ सामिअ अइबलिओ कम्मपरिणामो॥४४॥ भयवं कया वि होहि अम्माणं कुमारसंगमो कह वी। तेणुतं होहि पुण जयेइ हवमागमिसामो ॥४५॥ इय संबंधं सूणिओ संविग्गा कुमरमा अपि अपिअरो अ। लहूपुत्त ठविअ रज्जे तयंतिए चरणमावन्ना ॥४६॥ दुक्करं तवचरणपरा परा
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(७८)
Jain Education Internat
For Private & Personal use only
www.ainelibrary
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ११
उत्तराध्ययन
डगं चइत्ताणं । विटुं भुंजइ सूयरे॥ एवं सीलं चइत्ताणं ॥ दुस्सीले रमइ मिए।५॥ सुणियाभावं साणस्स ॥ सूयरस्स नरस्स य॥ विणए ठवेज अप्पाणं ॥ इच्छंतो हियमप्पणो॥६॥ तम्हा विणयमेसेज्जा॥ सीलं पडिलभे जओ। बुद्ध पुत्त नियागट्ठी॥ न निक्कसिज्जइ कण्हुई॥७॥ निस्संते सियामुहरी। वुद्धाणं अंतिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा। निरढाणि ओ वजए ।।८ ॥ अणुसासिओ न कुप्पिजा। खंतिं सेवेज पंडिए। खुड्डेहिं सह संसग्गिं। हासं कीडं च वज्जए॥९॥ मा य चंडालियं कासी। बहुयं मा य आलवे। कालेण य अहिज्झित्ता ॥ तओ झाएज एगओ॥१०॥आहच्च चंडालियं कहु॥ न निण्हवेज कयाइ वि। कडं कडे त्ति भासिज्जा। अकडं तो कडि त्ति य॥११॥ मा गलियस्सेव कसं॥ वयणमिछे पुणो पुणो। कसं व दट्ठमाइण्णे॥ पावगं परिवजए॥१२॥ अणासवा थूलवया कुसीला। मिउंपि चंडं पकरंति सीसा॥ चित्ताणुया लहु दक्खोववेया। पसायए ते हु दुरासयं पि॥१३॥ पिडं व संजए॥ पाए पसारिए वावि। न चिट्ठ गुरुणंतिए॥१९॥ आयरिएहिं वाहित्तो॥ तुसिणीओ न कयाई वि। पसायपेही नियागट्ठी। उवचिढे गुरु सया॥२०॥ आलवंते लवंते वा। न निसीएज कयाइ वि। चइऊण आसणं धीरो। जओ जुत्तं पडिस्सुणे ॥२१॥
आसणगओ न पुच्छिज्जा ॥ नेव सेजा गओ कयाइ वि। आगम्मुक्कडुओ संतो। पुच्छिज्जा पंजलीउडो॥२२॥ एवं विणय जुत्तस्स। सुत्तं अत्थं च तदुभयं। पुच्छमाणस्स सीसस्स। वागरेज जहासुयं ॥२३॥ मुसं परिहरे भिक्खू। न य ओहारिणिं वए॥ भासा दोसं परिहरे। मायं च वजए सया ॥२४॥ न लवेज पुठो सावजं । न निरटुं त मम्मयं । अप्पणट्ठा परट्ठा वा। उभयस्संतरेण वा ॥२५॥ समरेसु अगारेसु। संधीसु य महापहे॥ एगो एगित्थिए सद्धिं । नेव चिट्टे न संलवे ॥२६॥ जं मे बुद्धाणुसासन्ति। सीएण फरुसेण वा। मम लाभो त्ति पेहाए। पयउत्तं पडिस्सुणे ॥२७॥ अणुसासणमोवायं। दुक्कडस्स य चोयणं । हिवं तं मन्नइ पन्नो। वेसं होइ असाहुणो॥२८॥
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(७९)
For Private & Personal use only
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १२ उत्तराध्ययन
सुयं मे आउसं तेणं। भगवया एवमक्खायं। इह खलु वावीसं परीसहा। समणेण। भगवया। महावीरेणं। कासवेणं पवेइया। जे भिक्खु सोच्चा। नच्चा। जिच्चा। अभिभूय। भिक्खायरियाए। परिव्वयंतो। पुट्ठो नो विहन्नेज्जा॥
कयरे खल। ते वावीसं परीसहा। समणेणं भगवया महावीरेणं। कासवेणं पवेइया। जे भिक्खु। सोच्चा। नच्चा। जिच्चा। अभिभूय॥ भिक्खायरियाए। परिव्वयंतो। पुट्ठो नो विहन्नेजा।
इमे खलु ते वावीसं परीसहा। समणेणं भगवया। महावीरेणं । कासवेणं पवेइया। जे भिक्खू। सोच्चा। नच्चा। अभिभूय। भिक्खायरियाए। परिव्वयन्तो। पुट्ठो नो विहन्नेज्जा। तज्जहा। दिगंछा परीसहे। पिवासा परिसहे। सीय परीसहे। उसिण परीसहे। दंसमसय परीसहे। अचेल परिसहे। अरइ परीसहे। इत्थी परीसहे। चरिया परिसहे। निसीहिया परीसहे। सिज्जा परीसहे। अकोस परीसहे। वह परीसहे। जायणा परीसहे। अलाभ परिसहे। रोग परीसहे। तण फास परीसहे। जल्ल परिसहे। सक्कार पुक्कार परीसहे। पन्ना परीसहे। अन्नाण परीसहे। दंसण परीसहे। परीसहाणं पविभत्ती। कासवेणं पवेइया। तं भे उदाहरिस्सामि। आणुपुव्विं सुणेह मे ॥१॥ दिगिछा परिगए देहे। तवेसी भिक्खू थामवं। न छिदे न छिंदावए। न पए, न पयावए॥२॥ काली पव्वंग संकासे। किसे धमणि संतए। मायन्ने असण पाणस्स। अदिण मणसो चरें॥३॥ एवमावट्ट जोणीसु। पाणिणो कम्मकिब्बिसा। न नविजंति संसारे। सव्वढेसु व्व खत्तिया॥४॥ कम्म संगेहि संमूढा। दुखिया वहु वेयणा। अमाणुसासु जोणीसु। विणीहम्मति पाणिणो ॥५॥ कम्माणं तु पहाणाए। आणुप्व्वी कयाइ उ। जीवा सोहिमणुपत्ता। आययंति मणुस्सयं ॥६॥ माणुस्सं विगहं लुग्धं। सुइ धम्मस्स दुल्लहा। जं सोच्चा पडिवजंति। तव खंतिमहिंसयं ॥७॥ आहच्च सवणं लुधं । सद्धा परमदुल्लहा। सोच्चा नेयाउयं मग्गं। वहबे परिभवस्सइ ॥८॥
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(८०)
For Private & Personal use only
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १३ उत्तराध्ययन
हिंसे बाले मुसावाई। माइल्ले पिसणे सढे। भुंजमाणे सुरं मस्सं। सेय मेयं ति मन्नइ ॥९॥ कायसा वयसा मित्ते। चित्ते गिद्धे य इत्थिसु दुहओ मल संचिणइ। सिसुणागु ब्व मदियं ॥१०॥ तओ पुट्ठो अयंकेण। गिलाणो परितप्पइ पभाओ परलोगस्स। कम्मणुप्पेहि अप्पणो॥११॥ सुया मे नरए ठाणा॥ असीलाणं च जा गइ॥ बालाणं कूर कम्माणं। पगाढ़ा जत्थ वेयणा ॥१२॥ तत्थोवआहुयं वाण। जह मेतमणुस्सुयं। आहाकम्मेहि गछंतो। सो पच्छा परितप्पइ॥१३॥ जहा सागडिउ जाणं। समहिच्च च्चा महापहं। विसम मगामोइन्नो अक्खे भणमि सोयइ ॥१४॥ एवं धम्म विउक्कमं। अहम्मं पडिवजिया। वाले मच्चु मुहं पत्ते। अक्खे भग्गे व सोयइ ॥१५॥ तओ से मरणंतंमि। वाले संतस्सइ भया। अकाम मरणं मरइ धुत्ते वा कलिणा जिए॥१६॥ एवं अकाम मरणं । बालाणं तु प्पवेइयं । इत्तो सकाम मरणं । पंडियाणं सुणेहम्मे ॥१७॥ मरणं पि सपुन्नाणं। जहा मेत्तमणुस्सुयं। विप्पसन्नमणाघाय। संजयाणं वुसीमओ ॥१८॥ न इमं सव्वेसु भिक्खुसु। न इमं सव्वेसु गारिसु। नाणा सीला अगारत्था। विसमेसीला य भिक्खुणो॥१९॥ संति एगेहिं भिक्खूहिं। गारत्था संजमुत्तरा। गारथे इह सव्वेहिं । साहवो संयमुत्तरा ।।२०।। वीराजिणंति गणिणं। जडी संघाडि मुडिणं। एयाणि विन्न तायंत्ति। दुस्सीलं परियागये ॥२१॥ पिडोलंए वा दुस्सीले। नरगाउ न मुच्चई । भिक्खाए वा गिहत्थे वा सुव्वइ गमई दिवं॥२२॥ अगारि सामाइयंगाय। सड्डी काएण फासए। पोसहं दुहवो पक्खं। एगराय न हावए ॥२३॥ एवं शिखा समावने। गिहवासे वि सुव्वए। मुच्चइ छवि पव्वाओ। गछे जखस्सलोगयं ॥२४॥ अह जे संवुडे भिक्खु। दुण्हं अण्णयरे सिया। सव्वदुख पहिणेवा। देवे वावि महिड्डिए॥२५॥ उत्तराइ विमोहाइ। जुइमंताणुपुव्वसो। समाइंनांहिं जखेहिं। आवासाइं जसंसिणो॥२६॥ दीहाउया इड्डिमन्ता। समीद्धा काम रुविणो। अहुणोववन्न संकासा भुजो अच्चिमासमयभा॥२७॥ ताणि वाणणि गच्छंति सिक्खित्ता संजमं तवं। भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे संति परिनिवुडा ॥२८॥ तेसि सुच्चा सपुजाणं संजयाण वुसीमओ। न संत संति मरणंते॥
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(८१)
For Private & Personal use only
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
For Private & Personal use only
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
_