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पाठ ५ अष्टपाहुड
हु सो मुणेयव्वो ॥ खेडे वि ण कायव्वं । पाणिपत्तं सचेलस्स ॥७ ॥ हरिहरतुल्लो वि णरो । सग्गं गच्छेइ एइ भवकोडी । तह वि ण पावइ सिद्धिं। संसारत्थो पुणो भणिदो ॥८ ॥ उक्किट्ठसीहचरियं । बहुपरिकम्मो य गरुय भारो य । जो विहरइ सच्छंदं पावं गच्छेदि हवदि मिच्छत्तं ॥९॥ णिच्चेलपाणिपत्तं। उवइट्टं परमजिणवरिंदेहिं । इक्को वि मुखमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ॥ १० ॥ जो संजमेसु सहिओ | आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि। सो होइ वंदणिज्जो। ससुरासुरमाणसे लोए ॥११॥ जे वावीसपरीसह । सहंति सत्तीसएहिं संजुत्ता । ते हुंति वंदणीया । कम्मक्खयणिज्जरा साहू ॥१२॥ अविसेसी जे लिंगी । दंसणणाणेणं सम्म संजुत्ता ॥ चेलेण परिग्गहिया । ते भविया इच्छणिज्जाया ॥ १३ ॥ इच्छायारगिहत्थं । सुत्तत्थिओ जो हु छिंदए कम्मं । ठाणे ठियसम्मत्तं । परलोइ सुहंकरो होइ ॥ १४ ॥ अह पुण अप्पा णच्छदि । धम्मंसु करेदि णिरवसेसाइ । तह वि ण पावदि सिद्धिं। संसारत्थो पुणो भणिदो ॥ १५ ॥ एएण कारणेण य । तं अप्पा सद्धहेह तिविहेण । जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण ॥१६ ॥ वालग्गकोडिमित्तं परिग्गहगहणं ण होइ साहूणं । भुंजेइ पाणिपत्ते । दिण्णणं इकठाणम्मि ॥१७॥ जहजाइरुवसरिसो । तिलतुसमित्तं ण गिहदि हत्थेसु । जइ लेइ अप्पबहुयं । तत्तो पुणु जाइ णिग्गोयं ॥ १८ ॥ जस्स परिग्गहगहणं । अप्पा बुहुयं च हवइ लिंगस्स । सो गरहिउ जिणवयणे। परिगह रहिओ णिरायारो ॥१९॥ पंचमहव्वयजुत्तो । तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होइ । णिग्गंथमुक्खमग्गो । सो होदि हु वंदिणिज्जो य ॥ २० ॥ दुइयं च वृत्त लिंगं । उक्किट्टं अवरसावयाणंतु। भिक्खं भमेह पत्ते । समिदीभासेण मोणेण ॥ २१ ॥ लिंगं इत्थीण हवदि । भुंजइ पिंडं सुएयकालम्मि । अज्जिय वि इक्कवत्था । वड्डावरणेण भुंजेइ ॥२२॥ णवि सिज्झदि वत्थधरो । जिणसासण जइ वि होइ तित्थयरो णग्गो विमुक्खमग्गो सेसा उम्मग्गयासणं ॥ २३ ॥ लिंगंम य इत्थीणं। थणंतरे णहिकक्खदेसेसु । भणिओ सुहुमो काओ । तेसिं कह होइ पव्वज्जा ॥ २४ ॥ जइ दंसणेण सुद्धा उत्तम मग्गेण सावि संजुत्ता | घो
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प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
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