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________________ पाठ६ अष्टपाहुड सा होइ वंदणीया॥ णिग्गंथा संजदा पडिमा ॥११॥ दंसण अणंत णाणं। अणंतवीरिय अणंतसुक्खा य। सासयसुक्ख अदेहा। मुक्का कम्मट्ठबंधेहिं ॥१२॥ णिरुवममचलमखोहा। णिम्मविया जंगमेण रुवेण। सिद्धठाणम्मि ठिया। वोसरपडिमा धुवो सिद्धा॥१३॥ ॥पडिमा ३॥ दंसेइ मोक्खमग्गं। सम्मत्तं संजमं सुधम्मं च। णिग्गंथं णाणमयं। जिणमग्गे दंसणं भणियं ॥१४॥ जह फुल्लं गंधमयं । भवदि हु खीरं स धियमयं चावि। तह दंसणम्मि सम्म। णाणमयं होइ रुवत्थं ॥१५॥ ॥दसणं ४॥ जिणबिंबणाणमयं। संजमसुद्धं सुवीयरायं च। जं देइ दिक्खसिक्खा । कम्मक्खयकारणे सुद्धा ॥१६॥ तस्स य करहु पणाम। सव्वं पुजं च विणयवच्छल्लं। जस्स य दंसणणाणं अत्थि धुवं चेयणा भावो॥१७॥ तववयगुणेहिं सुद्धो। जाणदि पिच्छेइ सुद्धसम्मत्तं । अरहंतमुद्ध एसा। दायारी दिक्खसिक्खा य॥१८॥ जिणविंवं ॥ ५॥ दढसंजममुद्धाए। इंदियमुद्धा कसायदढ़मुदा। मुद्धा इह णाणाए। जिणमुद्धा एरसा भणिया॥१९॥ जिणमुद्धा ॥६॥ संजमसम्मत्तस्स य। सुज्झाणजोयस्स मोक्खमग्गस्स। णाणेण लहदि लक्खं तम्हा णाणं च णायव्वं ॥२०॥ जह ण वि लहदि हु लक्खं। रहिओ कंडस्स वेज्झयविहीणो। तह ण वि लक्खदि लक्खं। अण्णाणी मोक्खमग्गस्स ॥२१॥ णाणं पुरिसस्स हवदि। लहदि सुपुरिसो वि विणयसंजुत्तो णाणेण लहदि लक्खं। लक्खंतो मोक्खमग्गस्स ॥२२॥ मइधणुहं जस्स थिरं। सुइगुण वाणा सुअस्थि रयणत्तं परमत्थबद्धलक्खो ण वि चुक्कदि मोक्खमग्गस्स ॥णाणं ॥७॥ सो देवो जो अत्थं । धम्म कामं सुदेइ णाणं च। सो देइ जस्स अत्थि दु। अत्थो धम्मो य पव्वज्जा ॥ धम्मो दयाविसुद्धो। पव्वजा सव्वसंगपरिचत्ता। देवो ववगयमोहो। उदयकरो भव्वजीवाणं ॥२५॥ देवं ॥८॥ वयसम्मत्तविसुद्धे। पंचेंदियसंजदे णिरावेक्खो। ण्हाएउ मुणी तित्थे। दिक्खासिक्खासुण्हाणेण ॥२६॥ जं णिम्मलं सुधम्म। सम्मत्तं संजमं तवं णाणं। तं तित्थं जिणमग्गे। हवेइ जदि संतिभावेण ॥२७॥ तित्थं ॥ णामे ठवणे हि य सं। दव्वे भावे य सगुणपज्जाया। चउणायदि संपदिमे। भावा भावंति अरहंतं ॥२८॥ दंस (७४) प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002730
Book TitlePrakrit Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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