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पाठ ७
दशवैकालिक
नारिं वा सुअलंकियं भक्खरं पिव दट्ठणं दिट्ठि पट्ठि समाहरे ॥५५ ॥ हत्थ पाय पडिछिन्नं कण्ण नास विग्गप्पियं । अवि वाससयं नारिं बंभयारि विवज्जए॥५६॥ विभूसा इत्थि संसग्गि पणीय रस्स भायेणं । नरस्सत्त गवेसिस्स विसं तालउड जहा ॥ ५७ ॥ अंग पच्चंग संठाणं चारुल्ल विय पेहियं । इत्थीणं तं न निज्झाए काम राग विवद्ण ॥ ५८ ॥ विसएसु मणुण्णेसु पेमं नाभि निवेसए । अणिच्चं तेसिं विण्णाय परिणामं गालायं ॥ ५९ ॥ पुगालाण परिण्णाम्मं तेस्सि नच्चा जहा तहा। विणीयतण्हो विहरे सीईभुएण अप्पणा ॥ ६० ॥ जाए सद्धाए निक्खंतो परियायट्ठाण मुत्तमं तमेव अणुपालिज्जा गुणे आयरियसमये ॥ ६१ ॥ तवं चिमं संजमं जोगयं च सज्झाय जोग च सया अहिट्ठिए। सुरे व सेणाए सम्मत्तमाउहे अलमप्पणो होइ अलं परेसिं ॥ ६२ ॥ सज्झाय सज्झाणरयस्स ताइणो अप्पावभावास्स तवे रयस्स । विसुडज्झई जं सि मलं पुरेकडं समीरियं रूप्पमलं व जोइणो ॥ ६३ ॥ से तारिसे दुक्खसहेजिइंदिए सुएण ज्जुत्तेअममे अकिंचणे । विरायईक्कमघणंमि अवगए कसिणब्भपुरावगमेवचंदि तित्थेमि॥६४॥ (आयार पणिहि अज्झयणं सम्मत्तं ८ । )
थंभा व कोहा व मयप्पमाया गुरुसगासे विणयं न सिक्खे। सोचेवओत्तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जे यावि मंदिति गुरू व इज्जा डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छं पडिवज्जमाणा करेंति आस्सायण ते गुरुणं ॥ २ ॥ पगईए मंदा विभवंति एगे डहराचिय जे सुयबुद्धोववेया । आयारमंतागुण सुद्धि अप्पा जेहिलिया सिहिरि व भास कुजा ॥३ ॥ जे यावि नागं डहरंति न वा आसायए से अहियाय होइ। एवायरिय पिहुहि लयंतो नियव्वइ जाइ पहं खुमंदो ॥४ ॥ आसीविसोवावि परंसुरुट्ठो किं जीव नासाओ परंतु कुज्जा । आयरिय पाया पुण अप्पसुना अबोहिया सायण नत्थि मुक्खो ॥५ ॥ जो पावगं जलियमव्वक
प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका
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