________________
पाठ ४ अष्टपाहुड
परिहर धम्मे अहिंसाए॥१५॥ पव्वज संगचाए॥पयट्ट सुतवे सुसंजमे भावे॥ होइ सुविसुद्धब्भणं॥णिम्मोहे वीयरायत्ते॥१६॥ मिच्छादसणमग्गे॥ मलिणे अणाणमोहदोसेहिं॥ वज्झंति मूढजीवा॥ मिच्छत्ताबुद्धिउदयेण ॥१७॥ सम्मदंसण पस्सदि॥ जाणदि णाणेण दव्वपज्जाय॥ सम्मेण य सद्दहदि य॥ परिहरदि चरित्तजे दोसा ॥१८॥ एए तिण्ण विभाव ॥ हवंति जीवस्स मोहरहियस्स॥ णियगुणआराहतो। अचिरेण वि कम्म परिहरइ ॥१९॥ संखिजमसंखिजं ॥ गुणं च संसारिमेरुमित्ता णं ॥ सम्मत्तमणुचरंता ।। करंति दुक्खक्खयं धीरा ॥२०॥ दुविहं संजमचरणं । सायारं तह हवे णिरायारं॥ सायारं सग्गंथे॥ परिग्गहरहियं णिरायारं ॥२१॥ दंसणवय सामाइय॥ पोसह सच्चित्त रायभत्ते य॥ वंभारंभपरिग्गह अणुमणु उदिट्ट देसविरदो य॥२२॥ पंचेव अणुवयाइ॥ गुणव्वयाइ तहेव तिणेय॥ सिक्खावेय चत्तारि॥ संयमचरणं च सायारं ॥२३॥थूले तसकायवहे॥थूले मोसे तितिक्ख थूले य॥ परिहारो परपिम्मे परिग्गहारंभ परिमाणं ॥२४॥ दिसिविदिसिमाण पढमं॥ अणत्थदंडस्स वज्जणं विदियं ॥ भोगोपभोयपरिमा॥ इयमेव गुणव्वया तिण्णि ॥२५॥ सामाइयं च पढमं॥ विदियं च तहेव पोसहं भणियं । तइयं च अतिहिपुजं ॥ चउत्थं सल्लेहणा अंते॥२६॥ एवं सावयधम्मं॥ संजमचरणं उदेसियं सयलं॥ सुद्धं संजमचरणं॥ जइधम्मे॥ णिक्कलं वोत्थे ॥२७॥ पंचेंदियसंवरणं॥ पंचवयापंचविंसकिरिया सु॥ पंच समिदि तय गुत्तिं संजम चरण णिरायारं ॥२८॥ अमणुण्णे य मणुण्णे॥ सजीवदव्वे अजीवदव्वे य॥ण करोदि रायदेसो॥ पंचेंदियसंवरो भणिओ॥२९॥ हिंसाविरइ अहिंसा ॥ असच्चविरइ अदत्तविरई य॥ तुरियं अवंभविरइ। पंचम संगम्मि विरदी य॥३०॥ साहंति जं महल्ला आयरियं जं महल्लपुव्वेहिं ॥ जं च महल्लाणि तदो॥ महल्लया इंतहेयाई॥३१॥ वयगुत्ती मणगुत्ती॥ इरियासमदी सुदाणणिक्खेवो॥। अवलोय भोयणाए हिंसाए भावणा होंति ॥३२॥ कोहभयहासलोहा॥ मोहाविवरीयभावणा चेव॥ विदियस्स भावणाए। ए पंचेव य तहा होंति ॥३३॥ सुण्णायारणिवासो विमोचियावास जं परोधं च॥ एसणसुद्धिस
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
(७२)
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org