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पाठ ३ अष्टपाहुड
ॐ नमः सिद्धेभ्यः॥ काऊण णमोयारं। जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स॥ दंसणमग्गं वोच्छामि। जहाकम्मं समासेण ॥१॥ दंसणमूलो धम्मो॥ उवइटुं जिणवरेहि सिस्साणं॥ तं सोऊण सकण्णे॥ दंसणहीणो ण वंदिव्वो॥२॥दसणभट्ठा भट्ठा ॥ दंसणभट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं ॥ सिझंति चरियभट्ठा ॥दसणभट्ठा ण सिझंति ॥३॥ सम्मत्तरयणभट्ठा ॥ जाणंता बहुविहाइ सत्थाइ॥ आराहणविरहिया। भमंति तत्थेव तत्थेव।।४॥ सम्मत्तविरहिया णं। सुटु वि उग्गं तवं चरंता णं॥ ण लहंति वोहिलाहं॥ अवि वाससहस्सकोडीहिं॥५॥ सम्मत्तणाणदंसण॥ वलवीरिय वड्डमाण जे सव्वे॥ कलिकलुसपावरहिया॥ वरणाणी हुंति अइरेण॥६॥ सम्मत्तसलिलपवहो॥ णिच्चं हियए ण पवहए जस्स॥ कम्मं वालुयवरणं॥ बंधुच्चिय णासए तस्स ॥७॥ जे दंसणेसु भट्ठा॥ णाणे भट्ठा चरित्तभट्ठा य॥ एदे भट्ठ वि भट्ठा॥ सेसं पि जणं विणासंति ॥८॥ जो को वि धम्मशीलो॥ संजमतवणियमजोगगुणधारी॥ तस्स य दोस कहता भग्गा भग्गत्तणं दिति॥९॥ जह मूलम्मि विणद्वे दुम्मस्स परिवार णत्थि परिवड्डी॥ तह जिणदसणभट्ठा मूलविणट्ठा ण सिझंति ॥१०॥जह मूलाओ खंधो। साहापरिवार बहुगुणो होइ॥ तह जिणदंसणु मूलो॥ णिद्दिट्ठो मोक्खमग्गस्स ॥११॥ जे दंसणेसु भट्ठा ॥ पाए पाडंति दंसणधराणं ॥ ते होंति लुल्लमूया ॥ वोही पुणु दुल्लहा तेसिं॥१२॥ जे वि पडंति न तेसिं॥ जाणंता लजागारवभएण॥ तेसिं पणत्थि वोही। पावं अणुमोयमाणाणं ॥१३॥ दुविहं पि गंथिचाए। तीसु वि जोएसु संजम ठादि। णाणम्मि करणसुद्धे ॥ अब्भसणे दंसणं होइ ॥१४॥ सम्मत्तादो णाणं ॥ णाणादो सव्वभावउवलद्धी॥ उवलद्धिपयत्थे पुणु॥ सेयासेयं वियाणेहिं ॥१५॥ सेयासेयविदण्हू उद्बुददुस्सील सीलवंतो वि॥ सीलफलेणब्भुदयं ॥ तत्तो पुणु लहइ णिव्वाणं ॥१६॥ जिणवयणओसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमियभूयं ॥ जरमरणवाहिहरणं ॥ खयकरणं सव्वदुक्खाणं ॥१७॥ एवं जिणस्स रूवं ॥ विदियं उक्किट्ठसावयाणं तु। अवरट्ठियाय तइयं ॥ चउत्थ पुणु लिंग दंसणं णत्थि ॥१८॥ छदव्वणवपयत्था॥ पंचत्थी सप्त तच्च नि॥
प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
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