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पाठ ८
कुम्मापुत्तचरियं
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||णानत्वारश्री जयप्रदीपर्क क्रमात्र चरित्रस्प स्तिबुका तिनाम्पहै (तिमहावीर कहें स्वामिह वा कमकमले कचरक नमस्कार करिनें महावीर दिसु निदायक असुरनाय मऊ माएँ असुरिंदरदायकमकमल कुम्म कऊंबु ऋहेक ऊंमाणिक्यगुणजे १ रायगिहिक हिडेन बलीरानं मीनाकपुरस्वर पायर्मागि चरित्र हामि हं समासे ॥१॥ रायगिदे वरनयरे नयने हालसा शो चलीकनपर तेराजगृहनें परिस तेवनकेल समाटोक० वर्षमा जिलोक देवतास विधानवाद र समासस्पति श्रीमहावीर २ लपुरिसचरे गुण सिनए गुएनिल समोसा वहमाए जिये||२॥ दिवेदि स मोसरणमीरच तेसमोर एकेहनने घणापापकर्मन विनाश व विदेसमोसर एके वेगवान रुपा नाक कारकडे धर्मपि चातुखाने बोनस मोसरणी विदियं बऊ पण वकम्मन सरेल मणिकयर वयसार व्यकि समीरणने विष श्री ने नगवत के हवा बेव निपरिदेदीप्यम ते कन्दर हुनी कविता महावीर स्वामिबेवाले नवे शरीर जेसन परे भीरब जसमाारण रियांतच निविडोवीरो कणय्य सर्सिरीसमुद्दगंभीरो बाणाच
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प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका
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